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Amarnath Yatra: जम्मू कश्मीर में मिली बारुदी सुरंग, जानिए क्या है अमरनाथ यात्रा से कनेक्शन?

जम्मू कश्मीर के सांबा जिले के चक फकीरा में बीएसएफ को एक सुरंग मिली। यह इलाका पड़ोसी देश पाकिस्तान की सीमा से करीब है। अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाने के नापाक आतंकी मंसूबों का इतिहास काफी पुराना है। अमरनाथ यात्रा 1990 के बाद से लगातार आतंकियों के निशाने पर रही है। 

Edited by: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Published : May 05, 2022 13:42 IST
Amarnath Yatra - India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO Amarnath Yatra 

Amarnath Yatra: जम्मू कश्मीर के सांबा जिले के चक फकीरा में बीएसएफ को एक सुरंग मिली। यह इलाका पड़ोसी देश पाकिस्तान की सीमा से करीब है। सूत्रों का कहना है कि कुछ दिन पहले जम्मू कश्मीर में आतंकियों की घुसपैठ इसी सुरंग से हुई थी। सूत्रों के मुताबिक, यह सुरंग अंतरराष्ट्रीय सीमा से सिर्फ 150 मीटर की दूरी पर है। यह पाकिस्तान पोस्ट चमन खुर्द से भी सिर्फ 900 मीटर की दूरी पर है। 30 जून से शुरू होने वाली अमरनाथ यात्रा के बीच इस बारुदी सुरंग का मिलना चौंकाने वाला है। बीएसएफ ने कहा है कि आतंकियों का इस तरह का मंसूबा अमरनाथ यात्रा को बाधित करने का है। दरअसल, अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाने के नापाक आतंकी मंसूबों का इतिहास काफी पुराना है। अमरनाथ यात्रा 1990 के बाद से लगातार आतंकियों के निशाने पर रही है। 

1990 में जब घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ था, उस वर्ष सिर्फ चार हजार लोगों ने अमरनाथ यात्रा की। जबकि दो वर्ष पूर्व 1988 में 96,000 श्रद्धालुओं ने बाबा बर्फानी के दर्शन किए थे। यात्रा का जो स्वरूप आज हम देखते हैं, उसके पीछे कहीं न कहीं 1994 में आतंकी संगठन हरकत-उल-अंसार के द्वारा यात्रा पर लगाई गई रोक थी। कश्मीर मामलों के जानकार बताते हैं कि पहले अमरनाथ यात्रा कश्मीरी पंडितों की एक स्थानीय यात्रा के रूप में प्रचलित थी और अधिक से अधिक एक सप्ताह चलती थी। 

पहले भी आतं​की संगठनों ने की थी रोक की कोशिश, पर जारी रही यात्रा

1994 की धमकी के बाद पूरे देश के हिंदुओं को ये संदेश दिया गया कि हमें ज्यादा से ज्यादा संख्या में बर्फानी बाबा के दर्शन करके आतंकियों को करारा जवाब देना चाहिए। इस संदेश को जन-जन तक पहुंचाने में हिंदू संगठनों की भूमिका रही। आतंकी संगठनों ने 1994 के बाद वर्ष 1995 और 1998 में भी यात्रा पर रोक लगाने की घोषणा की थी, लेकिन यात्रा अनवरत जारी रही। यह भी एक कटु सत्य है कि यात्रा शुरू होने से पहले और यात्रा के दौरान घाटी में हमले बढ़ जाते हैं। 

अमरनाथ यात्रियों पर पहले हो चुके हैं आतंकी हमले

इतना ही नहीं, वर्ष 2000, 2001, 2002 और 2017 में तो यात्रा पर आतंकी हमले भी हुए, जिनमें तीर्थयात्रियों के साथ स्थानीय नागरिकों की भी जान चली गई। इन हमलों से आतंकी संगठन श्रद्धालुओं को भयभीत करना चाहते हैं, लेकिन इस वर्ष ऐसा होता नहीं दिख रहा है। उसका एक बड़ा कारण है कि कश्मीर में सक्रिय सभी आतंकी संगठनों के प्रमुख कमांडर मारे जा चुके हैं। लोगों में आतंकियों का खौफ समाप्त हो रहा है। इस वर्ष अब तक 5 दर्जन से अधिक आतंकी मारे गए हैं, जिनमें 15 विदेशी थे। 

जानिए इस बार क्यों खास है अमरनाथ यात्रा?

  • वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 हटने और दो वर्ष की कोरोना महामारी के बाद इस वर्ष 30 जून से शुरू होने वाली श्री अमरनाथ यात्रा कई मामलों में खास है। एंटी ड्रोन प्रणाली के इस्तेमाल से लेकर आधार शिविरों तक हेलीकाप्टर सेवा और मुफ्त बैटरी कार की सुविधा के साथ स्वास्थ्य सेवाओं में विस्तार करके जम्मू-कश्मीर सरकार तथा श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड इस यात्रा को विशेष बनाना चाहते हैं। राज्य और केंद्र सरकार संदेश देने की कोशिश करेंगी कि यहां का सुरक्षा परिदृश्य बेहतर हुआ है। 
  • सुरक्षा एजेंसियों को बताया गया है कि इस बार करीब आठ लाख श्रद्धालु आने की संभावना है। यदि ऐसा हुआ, तो यह संख्या इस तीर्थयात्रा के इतिहास की सबसे बड़ी संख्या होगी। इससे पहले सर्वाधिक यात्री वर्ष 2011 में आए थे, जब इनकी संख्या 6,36,000 थी। 2019 के अगस्त माह में अनुच्छेद 370 हटाने के कुछ दिन पूर्व यात्रा को स्थगित कर दिया गया था। 

 

 

 

 

 

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