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Amit Shah In DU Seminar: लोग कहते थे कि 370 हटाया तो खून की नदियां बह जाएंगी, लेकिन कंकड़ भी नहीं चला- शाह

अमित शाह ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में छात्रों और प्रोफेसर्स को संबोधित करते हुए देश की रक्षा नीति का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार बनने से पहले देश की कोई रक्षा नीति नहीं थी। विदेश नीति को ही रक्षा नीति मानते थे। इस देश पर सालों से हमारे पड़ोसी देशों द्वारा प्रछन्न रूप से हमले होते थे, आतंकवादी भेजे जाते थे।

Edited by: Khushbu Rawal @khushburawal2
Published : May 19, 2022 20:07 IST
Amit Shah- India TV Hindi
Image Source : PTI Amit Shah

Highlights

  • DU में 'स्वराज से नव-भारत तक भारत के विचारों का पुनरावलोकन' विषय पर संगोष्ठी का उद्घाटन
  • गृहमंत्री अमित शाह ने किया अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन

Amit Shah In DU Seminar: दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों और शिक्षाविदों के बीच मौजूद रहे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुटकी में अनुच्छेद 370 खत्म कर दिया। लोग कहते थे कि अनुच्छेद 370 हटाने पर खून की नदियां बह जाएंगी, लेकिन खून की नदियां छोड़ो मोदी सरकार की नीतियों के कारण कंकड़ चलाने की भी किसी की हिम्मत नहीं हुई। केंद्रीय गृह मंत्री का कहना है कि विश्व विद्यालयों को विचारों के आदान-प्रदान का मंच बनना चाहिए, न कि वैचारिक संघर्ष का स्थान। गृहमंत्री ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में छात्रों और प्रोफेसर्स को संबोधित करते हुए देश की रक्षा नीति का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार बनने से पहले देश की कोई रक्षा नीति नहीं थी। विदेश नीति को ही रक्षा नीति मानते थे। इस देश पर सालों से हमारे पड़ोसी देशों द्वारा प्रछन्न रूप से हमले होते थे, आतंकवादी भेजे जाते थे।

'उरी, पुलवामा का भारत ने दिया मुंहतोड़ जवाब'

उन्होंने कहा कि उरी और पुलवामा में इन 8 सालों में भी जब ये प्रयास हुए तो भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक कर मुंहतोड़ जवाब घर में घुसकर दिया तब पूरी दुनिया के सामने भारत की रक्षा नीति क्या है, यह स्पष्ट हो गई। हम विश्व भर के देशों के साथ अच्छे रिश्ते रखना चाहते हैं, हम सबको साथ में लेकर चलना चाहते हैं, हम शांति चाहते हैं और शांति के पुजारी भी हैं, लेकिन जो हमारी सेना और सीमा के साथ छेड़खानी करेगा उसको उसी की भाषा में जवाब देने के लिए हम दृढ़ निश्चयी भी हैं। पहली बार देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के मामले में देश के एक नेता ने निर्णायक भाषा के साथ विश्व को अपना परिचय कराया है कि भारत की सीमाओं का कोई अपमान नहीं कर सकता।

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रक्षा के क्षेत्र में दो ही देशों का नाम आता था एक अमेरिका और दूसरा इजरायल। लेकिन अब मोदी सरकार की नीतियों के कारण तीसरा नाम भारत का लिया जाने लगा है। भारत ने दुनिया को दिखा दिया है कि वह अपनी सीमाओं की रक्षा करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि आज उत्तर पूर्व के 75 फीसदी हिस्से से अफस्पा हटा दिया गया है। यहां कई संगठनों से बात की गई और ऐसा माहौल स्थापित किया गया जिसके कारण अधिकांश हिस्सों से अफस्पा हटाना संभव हो सका। केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि कुछ लोग आतंकियों के मानवाधिकारों की बात करते थे, लेकिन मैं उनसे कहना चाहता हूं कि जो लोग आतंकवाद के कारण मारे गए, उनके भी तो मानवाधिकार थे।

'स्वराज की व्याख्या में स्वदेशी स्वयं ही आता है'
उन्होंने कहा कि स्वराज की व्याख्या केवल शासन व्यवस्था पर सीमित कर दी गई जोकि सही नहीं है। स्वराज की व्याख्या में स्वदेशी स्वयं ही आता है। स्वराज की व्याख्या में स्वभाषा भी आता है। स्वराज की व्याख्या में स्वधर्म स्वयं ही आता है। स्वराज की व्याख्या में हमारी संस्कृति अपने आप ही आता है।

केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा 'स्वराज से नव-भारत तक भारत के विचारों का पुनरावलोकन' विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया। तीन दिवसीय इस संगोष्ठी का आयोजन दिल्ली विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग ने किया है। उद्घाटन समारोह में केन्द्रीय शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमशीलता मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान और दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह समेत अनेक गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए।

'DU ने अपने नेतृत्व के गुण को संजोकर रखा है'
केन्द्रीय गृहमंत्री ने कहा कि आज देश में इतने सारे विश्विद्यालयों के बीच भी दिल्ली विश्वविद्यालय ने ना केवल अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी है बल्कि अपने नेतृत्व के गुण को भी संजोकर रखा है। शाह ने विश्वास व्यक्त किया कि देश में 2014 से परिवर्तन का जो युग शुरू हुआ है इसकी वाहक भी दिल्ली यूनिवर्सिटी बने। अंग्रेजों ने वर्ष 1922 में देश की राजधानी बदल कर दिल्ली यूनिवर्सिटी की स्थापना की और कई ऐतिहासिक प्रसंगों का दिल्ली विश्वविद्यालय साक्षी रहा है। 1975 में देश के लोकतंत्र को बचाने के आंदोलन में भी दिल्ली यूनिवर्सिटी का बहुत बड़ा योगदान रहा। देश के अनेक आंदोलनों का साक्षी और उन्हें परिणाम तक पहुंचाने का माध्यम दिल्ली विश्वविद्यालय रहा है।

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