Sunday, April 28, 2024
Advertisement

अयोध्या के फैसले में किसी न्यायाधीश के नाम का क्यों नहीं हुआ उल्लेख? CJI चंद्रचूड़ ने बता दी असल वजह

अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो रहा है। चार साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के विवादित भूमि पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। इस फैसले पर किसी भी न्यायाधीश के नाम का उल्लेख नहीं किया गया। इस मामले पर अब सीजेआई चंद्रचूड़ ने बयान दिया है।

Avinash Rai Edited By: Avinash Rai @RaisahabUp61
Published on: January 01, 2024 20:01 IST
CJI Chandrachud told the real reason WHY judgeS NAME mentioned in the Ayodhya decision- India TV Hindi
Image Source : PTI CJI चंद्रचूड़

अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चार साल पहले ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। इस मामले पर अब चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को एक बयान दिया। अपने बयान में उन्होंने कहा कि अयोध्या में विवादित स्थल पर एक ट्रस्ट द्वारा राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में निर्णय सुनाने वाले पांच न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया था कि इसमें फैसला लिखने वाले किसी भी न्यायाधीश के नाम का उल्लेख नहीं किया जाए। बता दें कि 9 नवंबर 2019 को राम मंदिर मामले में ऐतिहासिक फैसला आया था। उस वक्त के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने पांच जंजों वाली संवैधानिक पीठ की अध्यक्षता की थी। साथ ही यह भी फैसला सुनाया गया था कि मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या में किसी और स्थान पर सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ भूमि दी जाए।

Related Stories

अयोध्या के फैसले पर क्या बोले सीजेआई चंद्रचूड़

इस संबंध में फैसला सुनाने वाली पीठ का हिस्सा रहे न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक विशेष साक्षात्कार में फैसले में किसी न्यायाधीश के नाम का उल्लेख न करने के बारे में खुलकर बात की और कहा कि जब न्यायाधीश एक साथ बैठे, जैसा कि वे किसी घोषणा से पहले करते हैं, तो सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि यह "अदालत का फैसला" होगा। वह इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि फैसला लिखने वाले न्यायाधीश का नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया। सीजेआई ने कहा, "जब पांच न्यायाधीशों की पीठ फैसले पर विचार-विमर्श करने के लिए बैठी, जैसा कि हम सभी निर्णय सुनाए जाने से पहले करते हैं, तो हम सभी ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि यह अदालत का फैसला होगा। और, इसलिए, फैसले लिखने वाले किसी भी न्यायाधीश के नाम का उल्लेख नहीं किया गया।’’ उन्होंने कहा, "इस मामले में संघर्ष का एक लंबा इतिहास है, देश के इतिहास के आधार पर विविध दृष्टिकोण हैं और जो लोग पीठ का हिस्सा थे, उन्होंने फैसला किया कि यह अदालत का फैसला होगा। अदालत एक स्वर में बोलेगी और ऐसा करने के पीछे का विचार यह स्पष्ट संदेश देना था कि हम सभी न केवल अंतिम परिणाम में, बल्कि फैसले में बताए गए कारणों में भी एक साथ हैं।" 

इंटरव्यू में किया खुलासा

उन्होंने कहा, ‘‘मैं इसके साथ अपना उत्तर समाप्त करूंगा।’’ देश को ध्रुवीकृत करने वाले मामले में सर्वसम्मत निर्णय सुनाते हुए शीर्ष अदालत की पीठ ने 2019 में कहा था कि हिंदुओं की इस आस्था को लेकर कोई विवाद नहीं है कि भगवान राम का जन्म संबंधित स्थल पर हुआ था, और प्रतीकात्मक रूप से वह संबंधित भूमि के स्वामी हैं। न्यायालय ने कहा था कि फिर भी, यह भी स्पष्ट है कि हिंदू कारसेवक, जो वहां राम मंदिर बनाना चाहते थे, उनके द्वारा 16वीं शताब्दी की तीन गुंबद वाली संरचना को ध्वस्त किया जाना गलत था, जिसका "समाधान किया जाना चाहिए"। शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसका आस्था और विश्वास से कोई लेना-देना नहीं है तथा इसके बजाय मामले को तीन पक्षों - सुन्नी मुस्लिम वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा, एक हिंदू समूह और राम लला विराजमान के बीच भूमि पर स्वामित्व विवाद के रूप में लिया। उच्चतम न्यायालय के 1,045 पन्नों के फैसले का हिंदू नेताओं और समूहों ने व्यापक स्वागत किया था, जबकि मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि वह फैसले को स्वीकार करेगा, भले ही यह त्रुटिपूर्ण है।

(इनपुट-भाषा)

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement