Wednesday, May 01, 2024
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चुनाव Flashback: जब नारों ने बदल दिया था चुनावी फिजा का रुख, दिलचस्प हैं इनके किस्से

चुनाव Flashback: देश की सियासत में जुमले गढ़ने और नारेबाजी का इतिहास पुराना रहा है। कई बार नारों ने सियासी हवा का रुख भी बद दिया है।

Niraj Kumar Edited By: Niraj Kumar @nirajkavikumar1
Updated on: April 18, 2024 14:58 IST
चुनाव Flashback:- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV चुनाव Flashback:

चुनाव Flashback: लोकसभा चुनाव को लेकर पहले चरण का चुनाव प्रचार बुधवार को खत्म हो गया और शुक्रवार को वोटिंग होने वाली है। इस बीच बाकी के 6 चरणों के लिए सियासी दलों ने अपने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक रखी है। चुनावों में तरह-तरह की नारेबाजी सियासी दलों द्वारा की जाती रही है। 'अबकी बार, 400 पार' की गूंज बीजेपी और सहयोगी दलों की तरफ से सुनाई दे रही है। वहीं विपक्षी दल भी तरह-तरह के नारों से सत्ताधारी दल को किनारे लगाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। 

भारत की सियासत में नारे काफी अहम साबित हुए हैं। शहर से लेकर गांव तक इन नारों से सियासी दल अपने पक्ष में माहौल बनाते हैं। सरकारों को पलटने में इन नारों ने उत्प्रेरक का भी काम किया है। 

खा गई राशन पी गई तेल..

नारों से सियासी फिजा के बदलने की बात करें तो सबसे अहम मौका था 1977 के लोकसभा चुनाव का। इमरजेंसी के बाद हुए इस चुनाव में विपक्ष की ओर से यह नारा दिया गया-खा गई राशन पी गई तेल, ये देखो इंदिरा का खेल...। इस नारे का चुनाव पर खासा असर हुआ था। कई जगह कांग्रेस के प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा। 1977 के चुनाव में बुलंद किए गए इस नारे के चलते केंद्र से कांग्रेस को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी थी।

पहले चुनाव से जारी है नारों के सिलसिला

हालांकि नारों का सिलसिला लोकसभा के पहले चुनाव से ही शुरू हो गया था। 1952 में जनसंघ की स्थापना हुई थी। पहले लोकसभा में जनसंघ का चुनाव चिह्न दीपक था। उस वक्त यह नारा दिया गया था- हर हाथ को काम, हर खेत को पानी.. घर-घर दीपक जनसंघ की निशानी।

 बच्चा-बच्चा अटल बिहारी..

1967 को लोकसभा चुनाव की बात करें तो उस समय जनसंघ की ओर से नारा दिया गया-उज्जवल भविष्य की है तैयारी.. बच्चा-बच्चा अटल बिहारी...। फिर 1977 की नारेबाजी और जुमले की बात हम उपर कर चुके हैं। इसके बाद 1980 में ऐसा दौर आया जब कांग्रेस के कई नेताओं ने दूसरी पार्टी का दामन थाम लिया। इसको लेकर भी नारे गढ़े गए। नारा था-दलबदलू फंसा शिकंजे में, मोहर लगेगी पंजे में...

चीनी मिलेगी सात पर, जल्दी पहुंचोगे खाट पर

 इसी तरह 1985 में चीनी की कीमत बढ़ने पर विपक्षी दलों ने चुनाव में नारों के जरिए कांग्रेस पर खूब निशाना साधा था। पहले चीनी की कीमत तीन रुपये प्रति किलो थी लेकिन 1985 में चीनी की कीमत 7 रुपये किलो पहुंच गई थी। इस पर विपक्ष ने नारा दिया-चीनी मिलेगी सात पर, जल्दी पहुंचोगे खाट पर..। इस तरह से हर चुनाव में तरह-तरह के नारों को इस्तेमाल कर सियासी दल जनता के बीच अपना पक्ष मजबूत करने की कोशिश करते हैं।

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