Tuesday, December 23, 2025
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भारतीय संविधान से समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाने के सवाल पर बोले शिवराज सिंह, कहा- 'विचार जरूर होना चाहिए'

शिवराज सिंह ने कहा कि भारतीय संस्कृति किसी भी धर्म का अनादर करना नहीं सिखाती। हम सभी को अपना मानने वाले लोग हैं और सभी को साथ लेकर चलने वाले समाज में धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद जैसे शब्दों का संविधान में होना जरूरी नहीं है।

Edited By: Shakti Singh
Published : Jun 27, 2025 06:08 pm IST, Updated : Jun 27, 2025 06:09 pm IST
Shivraj Singh- India TV Hindi
Image Source : PTI शिवराज सिंह

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह ने देश में लगाए गए आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर इस दौरान संविधान में हुए बदलावों को खत्म करने की वकालत की। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति में समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष की भावना पहले से निहित है। ऐसे में संविधान में इन शब्दों की जरूरत नहीं है। शिवराज ने कहा कि इन दोनों शब्दों को संविधान से हटाने को लेकर विचार जरूरी किया जाना चाहिए।

शिवराज से पूछा गया कि भारतीय संविधान से समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाने की बात चल रही है, इस पर आपका क्या कहना है? इसके जवाब में उन्होंने प्राचीन ग्रंथों का हवाला देते हुए कहा कि दोनों शब्दों में निहित भावनाएं पहले से ही भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं। इन शब्दों को संविधान से हटाने को लेकर विचार जरूर किया जाना चाहिए।

शिवराज ने क्या कहा?

शिवराज सिंह ने कहा "पहले तो मैं ये कहना चाहता हूं कि बाबा विश्वनाथ की धरती पर बैठा हूं। भारत अत्यंत प्राचीन और महान राष्ट्र है और भारत का मूल भाव सर्वधर्म सद्भाव है। ये भारत है जिसने आज नहीं हजारों साल पहले कहा 'एकम सद्विप्रा बहुधा वदन्ति' सत्य एक है विद्वान उसे अलग-अलग तरीके से कहते हैं। ये भारत है जो कहता है 'मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना' अलग-अलग भाव का भी आदर करने वाला, उपासना पद्धति कोई हो। स्वामी विवेकानंद ने भी शिकागो में जाकर ये कहा था कि, किसी रास्ते चलो अंतत: पहुंचोगें परमपिता परमात्मा के ही पास। सर्वधर्म सद्भाव ये भारतीय संस्कृति का मूल है। धर्मनिरपेक्ष हमारी संस्कृति का मूल नहीं है और इसलिए इस पर जरूर विचार होना चाहिए कि आपातकाल में जिस धर्मनिरपेक्ष शब्द को जोड़ा गया उसको हटाया जाए। 

समाजवाद पर क्या बोले?

शिवराज सिंह ने कहा "समाजवाद की आत्मवत सर्वभूतेषु अपने जैसा सबको मानो ये भारत का मूल विचार है "अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्" यह सारी दुनिया ही एक परिवार है, यह भारत का मूल भाव है। जियो और जीने दो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो, सर्वे भवन्तु सुखिना सर्वे संतु निरामया ये भारत का मूल भाव है और इसलिए यहां समाजवाद की जरूरत नहीं है। हम तो वर्षों पहले से कह रहे हैं, सियाराम मय सब जग जानी, सबको एक जैसा मानो इसलिए समाजवाद शब्द की भी आवश्यकता नहीं है, देश को इस पर निश्चित तौर पर विचार करना चाहिए।

शिवराज ने याद किया आपातकाल का समय

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में शिवराज सिंह ने आपातकाल का समय याद कर कहा "मैंने जेल में इतने अमानवीय अत्याचार देखे। यह लोकतंत्र का इतना काला दौर था कि मैं अभी भी हैरान हूं कि ऐसा वास्तव में हुआ था। कोई इतना बड़ा पाप और अन्याय कैसे कर सकता है?" शिवराज ने बताया कि आपातकाल के समय वह 16 साल के थे और स्कूल में पढ़ते थे। वह आपातकाल के खिलाफ पर्चियां बांटते थे। एक दिन पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया था और उन्हें भोपाल सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया था।

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