Monday, May 06, 2024
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बच्चों के लिए 'गुड स्क्रीन टाइम बनाम बैड स्क्रीन टाइम'

कोरोनावायरस महामारी और इसके प्रसार को रोकने के लिए दुनिया भर में किए गए अभूतपूर्व उपायों ने बच्चों के जीवन के लगभग हर पहलू पर असर डाला है।

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: July 06, 2020 16:55 IST
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Image Source : FILE education

नई दिल्ली। कोरोनावायरस महामारी और इसके प्रसार को रोकने के लिए दुनिया भर में किए गए अभूतपूर्व उपायों ने बच्चों के जीवन के लगभग हर पहलू पर असर डाला है। देखभाल करने वाले और शिक्षक ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षण सामग्री विकसित करके बच्चों को सीखने के नए तरीके खोजने की कोशिश कर रहे हैं। इस बात की हालांकि चिंताएं बढ़ रही हैं कि बच्चों को एक गहन शिक्षा प्राप्त नहीं हो रही है और वे कंप्यूटर के सामने या मोबाइल फोन के साथ बहुत अधिक समय बिता रहे हैं।

फिक्की एराइज (एलायंस फॉर रि-इमेजिनिंग स्कूल एजुकेशन) ने 'गुड स्क्रीन टाइम बनाम बैड स्क्रीन टाइम' विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया, जिससे ऑनलाइन सीखने की प्रकृति और आवश्यकता का उचित मूल्यांकन किया जा सके। यानी वेबिनार के दौरान स्क्रीन के सामने बिताए गए अच्छे और बुरे समय के बारे में एक मूल्यांकन करके देखा गया।

वेबिनार में प्रख्यात वक्ताओं का एक पैनल शामिल रहा, जिसमें न्यूरोसाइंस मनोविज्ञान, चिकित्सा और साइबर सुरक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल थे। इस कार्यक्रम के दौरान कई सवालों को उठाया गया और उन पर गहन विमर्श हुआ। इस दौरान स्क्रीन टाइम और प्रौद्योगिकी के डर के मुद्दों को दूर करने पर भी बात हुई।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक पूर्व छात्र और मन एवं मस्तिष्क के विषयों में शिक्षित विष्णु कार्तिक ने सीखने के नुकसान को प्रबंधित करने, व्यावहारिक और दिनचर्या बनाए रखने तथा तनाव को प्रबंधित करने में सीखने की निरंतरता के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि स्क्रीन का समय मायने नहीं रखता है, बल्कि सामग्री (कंटेंट) महत्व रखती है। उन्होंने कहा कि स्क्रीन पर क्या देखा जा रहा है, यह बात किसी के अच्छे या भले को प्रभावित करती है।

कार्तिक ने कहा कि स्क्रीन पर बिताया समय (स्क्रीन टाइम) जहां दूसरी तरफ एक वयस्क है तो इस स्थिति को सीखने की प्रक्रिया में बच्चों के लिए हानिकारक के रूप में नहीं देखा जा सकता है। कार्तिक ने कहा कि इसके अलावा शिक्षकों को यह सुनिश्चित करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए कि ये एकतरफा व्याख्यान नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इसमें एक निश्चित स्तर की अन्तरक्रियाशीलता (इंटर एक्टिविटी) होना जरूरी है। कार्तिक ने कहा कि जो पाठ बच्चों को करने के लिए दिया जाता है, उसके बारे में भी पर्याप्त बात किए जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि स्क्रीन पर बिताए गए समय के बजाए बातचीत और सामग्री की गुणवत्ता अधिक मायने रखती है।

प्रसिद्ध शिक्षा मनोवैज्ञानिक और प्रशिक्षक रवींद्रन ने कहा, "दो साल से कम उम्र के बच्चों को स्क्रीन पर लेकर आना एक अच्छा विचार नहीं है। हालांकि तीन साल से ऊपर के बच्चों के लिए दो से तीन घंटे का समय स्क्रीन पर बिताने के लिए सुझाया गया है।"उन्होंने बच्चों के लिए ऑनलाइन सामाजिक इंटरैक्शन, दिनचर्या और उनके सामाजिक-भावनात्मक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव कैसे पड़ सकता है, इसके महत्व पर भी जोर दिया।

इसके साथ ही उन्होंने डिजिटल लनिर्ंग में माता-पिता के मार्गदर्शन की भूमिका के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा, "जब तक स्वस्थ आहार, पर्याप्त नींद, खेलने का समय और कोई अन्य चिंताजनक सामान्य लक्षण नहीं हैं, तब तक बहुत अधिक समय तक स्क्रीन पर बिताए समय पर कोई चिंता आवश्यक नहीं है।"उन्होंने शिक्षकों के प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित किए जाने पर जोर दिया, ऑनलाइन पढ़ाई के अनुभव को और अधिक आकर्षक बनाया जा सके।

अभिभावकों और बच्चों के बीच स्क्रीन टाइम के अलावा साइबर सुरक्षा के मुद्दे पर भी वेबिनार में विस्तृत बात की गई। इस बारे में साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ रक्षित टंडन ने अपने विचार रखे। वहीं कार्यक्रम के अंत में अत्यधिक स्क्रीन समय के कारण आंखों पर पड़ने वाले प्रभाव को मैक्स हेल्थकेयर में नेत्र विज्ञान की निदेशक और एचओडी पारुल शर्मा ने समझाया।

उन्होंने कहा कि स्क्रीन का आकार मायने रखता है और स्क्रीन से एक हाथ की लंबाई सही रहती है। इसलिए उन्होंने लैपटॉप और कंप्यूटर को टैबलेट, पुस्तक या मोबाइल फोन के मुकाबले अधिक उपयुक्त बताया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हानिकारक प्रभावों से निपटने का सबसे अच्छा तरीका पर्याप्त ब्रेक लेना है। उन्होंने ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान कुछ अंतराल पर आंखों को आराम देने के लिए कुछ मिनट तक एक ब्रेक लेने की सलाह दी।

उन्होंने यह भी पुष्टि की कि स्क्रीन समय आंखों को कोई दीर्घकालिक नुकसान नहीं पहुंचाता है।

अभिभावकों, छात्रों और शिक्षक से प्रश्नों पर पैनल चर्चा भी रखी गई। वेबिनार को देश भर में 30,000 से अधिक अभिभावकों, शिक्षकों और छात्रों द्वारा देखा गया।

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