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बिना हेलमेट-लाइसेंस के बाइक चलाने वाले युवक को कोर्ट ने सुनाई अनोखी सजा

नाबालिग युवक द्वारा बिना हेलमेट-लाइेसेंस के बाइक चलाने का मामला साल 2017 का है। तभी इस मामले पर एफआईआर दर्ज की गई थी। कोर्ट ने इस मामले पर अब जाकर युवक को अनोखी सजा सुनाई है।

Edited By: Dhyanendra Chauhan @dhyanendraj
Published : Jan 21, 2025 23:49 IST, Updated : Jan 21, 2025 23:58 IST
कोर्ट ने सुनाई अनोखी सजा
Image Source : META AI कोर्ट ने सुनाई अनोखी सजा

बंबई हाई कोर्ट ने 2017 में नाबालिग रहने के दौरान बिना हेलमेट और लाइसेंस के दोपहिया वाहन चलाने वाले एक व्यक्ति के खिलाफ मामला निरस्त कर दिया है, लेकिन उसे चार रविवार तक यहां एक अस्पताल में सामुदायिक सेवा करने का आदेश दिया है। कोर्ट के आदेश के अनुसार, बिना हेलमेट-लाइसेंस के बाइक चला रहे युवक को अब अस्पताल में मरीजों की सेवा भी करनी होगी। 

ड्राइविंग लाइसेंस जमा करने का भी निर्देश

इसके साथ ही हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति रवींद्र घुगे और राजेश पाटिल की पीठ ने 16 जनवरी को पारित अपने आदेश में व्यक्ति को तीन महीने के लिए शहर की पुलिस के पास अपना ड्राइविंग लाइसेंस जमा करने का भी निर्देश दिया। 

बाइक चलाते समय हमेशा पहनना होगा हेलमेट

हाई कोर्ट की पीठ ने व्यक्ति के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करते हुए इस तथ्य पर ध्यान दिया कि उसने अभी-अभी अपनी पढ़ाई पूरी की है और नौकरी की तलाश कर रहा है। पीठ ने व्यक्ति को एक शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया कि वह मोटरसाइकिल चलाते समय हमेशा हेलमेट पहनेगा। 

सरकारी नौकरी में पैदा हो सकती है रुकावट

प्राथमिकी के लंबित रहने से उसका भविष्य प्रभावित होने की बात करते हुए अदालत ने कहा, ‘अगर वह सार्वजनिक या निजी क्षेत्र में या किसी भी तरह की राज्य सरकार की सेवाओं में नौकरी करना चाहता है, तो उसके खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी से उसके लिए बाधा या रुकावट पैदा हो सकती है।’

साल 2017 में दर्ज हुई थी FIR

प्राथमिकी 21 अक्टूबर, 2017 को दर्ज की गई थी, जब उस व्यक्ति को औचक पुलिस जांच के दौरान बाइक चलाते हुए पकड़ा गया था। बाइक पर उसके साथ उसकी मां भी सवार थीं। घटना के वक्त वह व्यक्ति नाबालिग था। पुलिस ने पाया कि वह बिना लाइसेंस और हेलमेट के गाड़ी चला रहा था। जब पुलिस ने उनसे पूछताछ की, तो उसकी मां ने कथित तौर पर पुलिस के साथ बदसलूकी की। 

इस सरकारी अस्पताल में करनी होगी सेवा

अदालत ने उस व्यक्ति की मां के खिलाफ मामला भी खारिज कर दिया और उन्हें एनजीओ 'इन डिफेंस ऑफ एनिमल्स' को 25,000 रुपये का खर्च देने का निर्देश दिया। अदालत ने सामुदायिक सेवा के तहत, इस व्यक्ति को 26 जनवरी से चार रविवार को सुबह 10 बजे से अपराह्न 2 बजे तक मलाड के एसके पाटिल महानगरपालिका जनरल अस्पताल में काम करने का निर्देश दिया। अस्पताल अधीक्षक को उसे काम सौंपने का निर्देश दिया गया है। 

भाषा के इनपुट के साथ

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