उन्होंने मैचों के टीवी पर सीधे प्रसारण की महत्ता समझी। जरूरत पड़ने पर प्रसार भारती से भी भिड़े और जीत हासिल की थी। मैने अपने कैरियर में ढेरों खेल अधिकारियो को जो देखा, उनमें जग्गू बेजोड़ और अतुलनीय रहे हैं। 1996 में आयोजन से सह मेजबानों पाकिस्तान और श्रीलंका को भी मालामाल कर देने वाले यह डालमिया ही थे कि उद्घाटन समारोह के लिए लेजर का उन्होंने पहली बार प्रयोग किया था।
75 बरस के डालमिया का जाना मेरे लिए निजी संताप भी है। वह खेल की बेहतरी के लिए किस कदर आकुल रहा करते थे, इसकी भी कोई मिसाल नहीं। इधर, वह काफी अशक्त हो गये थे। हालत दिन ब दिन बिगड़ती चली गयी और अंतत: यम का वार उन पर हो ही गया पर वह जब तक भारतीय क्रिकेट है तब तक जीवित रहेंगे। इसमें दो राय नहीं। जग्गू दादा, हम तुमको न भूल पाएंगे।
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