केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने मंगलवार को कहा कि भारत 2020 में चंद्रयान-3 को लांच करेगा। उन्होंने कहा कि इस अभियान पर चंद्रयान-2 से भी कम लागत आएगी।
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने इसरो के चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की लैंडिंग साइट की तस्वीर ट्वीट की है। तस्वीर में नासा ने उस स्पॉट को दिखाया है जहां पर लैंडर की हार्ड लैंडिंग हुई थी।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने गुरुवार को कहा कि भारत अगले साल संभवत: नवंबर में एक बार फिर चंद्रमा पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ का प्रयास कर सकता है।
ऐसा कहा गया था कि ‘विक्रम’ की हार्ड लैंडिंग के कारण जमीनी स्टेशन से इसका संपर्क टूट गया। इसरो ने आठ सितंबर को कहा था कि ‘चंद्रयान-2’ के ऑर्बिटर ने लैंडर की थर्मल तस्वीर ली है, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद इससे अब तक संपर्क नहीं हो पाया।
गत सात सितंबर को चंद्रयान-2 के रोवर प्रज्ञान से लैंडर विक्रम को चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी लेकिन अंतिम चरण में चंद्रमा की सतह से महज 2.1 किलोमीटर ऊपर इसका इसरो से संपर्क टूट गया। तभी से लैंडर से संपर्क साधने के प्रयास किये जा रहे थे लेकिन कोई सफलता नहीं मिली।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के तथ्यों के मुताबिक पिछले छह दशक में शुरू किए गए चंद्र मिशन में सफलता का अनुपात 60 प्रतिशत रहा है।
वर्ष 1986 से 2001 तक पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित रूसी अंतरिक्ष केंद्र मीर में लिनेंगर पांच महीने तक रहे थे। वह शुक्रवार को नेशनल जियोग्राफिक चैनल पर चंद्रयान-2 की लैंडिंग के सजीव प्रसारण में शामिल हुए।
लैंडर का यह नाम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम ए साराभाई पर दिया गया था। इसे चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के लिए डिजाइन किया गया था और इसे एक चंद्र दिवस यानी पृथ्वी के 14 दिन के बराबर काम करना था।
चंद्रयान-2 मिशन के तहत चांद पर भेजे गए विक्रम लैंडर का संपर्क भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिकों से लैंडिंग से पहले टूट गया है। इस पूरे मिशन के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो के कंट्रोल सेंटर से देश को संबोधिति किया।
एक साल मिशन अवधि वाला ऑर्बिटर चंद्रमा की कई तस्वीरें लेकर इसरो को भेज सकता है। अधिकारी ने कहा कि ऑर्बिटर लैंडर की तस्वीरें भी लेकर भेज सकता है, जिससे उसकी स्थिति के बारे में पता चल सकता है।
लैंडर विक्रम से मिले आंकड़ों की समीक्षा की जा रही है। मॉरीशस और मैड्रिड में लैंडर विक्रम के भेजे गए संदेश भी मिले थे लेकिन इसरो इनकी समीक्षा कर रहा है। इस पूरे मिशन में अभी भी एक बहुत ही पावरफुल सैटेलाइट आर्बिटर चांद की कक्षा में चक्कर लगा रही है जो चांद पर कई तरह के प्रयोग करने में सक्षम है।
चांद पर चंद्रयान 2 भेजकर भारत इतिहास रचने जा रहा है और दुनियाभर में भारत ऐसा चौथा देश होगा जो यह उपलब्धि प्राप्त करेगा।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा कि यह प्रक्रिया अपराह्न 12 बजकर 45 मिनट पर शुरू हुई और एक बजकर 15 मिनट पर ऑर्बिटर से ‘विक्रम’ अलग हो गया।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के. सिवन ने कहा कि मंगलवार को चंद्रयान-2 को चंद्रमा की कक्षा में स्थापित करते समय हमारे दिल की धड़कनें लगभग थम सी गई थीं।
इसरो के मुताबिक ये स्टेज मिशन के सबसे मुश्किल स्टेज में से एक था क्योंकि अगर सेटेलाइट चंद्रमा पर तेज गति वाले वेग से पहुंचता, तो वो इसे उछाल देता और ऐसे में वो गहरे अंतरिक्ष में खो जाता ।
चंद्रयान-2 में तीन हिस्से हैं - ऑर्बिटर, लैंडर 'विक्रम' और रोवर 'प्रज्ञान'। ऑर्बिटर करीब सालभर चांद की परिक्रमा कर शोध को अंजाम देगा। वहीं, लैंडर और रोवर चांद की सतह पर उतरकर प्रयोग का हिस्सा बनेगा।
दुनिया इस साल मानव के चांद पर कदम रखने की 50वीं वर्षगांठ मना रही है, इसी आलोक में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि वह एक अन्य कार्यक्रम के तहत इस दिशा में एक बार फिर बड़ी उपलब्धि हासिल करने को तैयार है।
अनुसंधान ने स्पेस में भी युवाओं के लिए करियर के रास्ते खुल गए हैं।
भारत अंतरिक्ष में बड़ी छलांग लगाने जा रहा है। भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (ISRO) अपने महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 को लॉन्च करने जा रही है।
इसरो के मुताबिक इस अभियान का उद्देश्य चंद्रमा की उत्पत्ति और क्रमिक विकास को समझने के लिये विस्तृत अध्ययन करना है। आइए आपको बताते हैं चंद्रयान-2 से भारत को होंगे क्या फायदे।
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