“1977 के बाद से हमारे सैन्य प्रशासन पर ज़िया उल हक़ के समर्थक अफ़सरों ने कब्ज़ा कर रखा है। उनकी सोच राजनीतिक नेतृत्व की सोच से बिल्कुल अलग है। उन्हें लगता है कि अफ़ग़ानिस्तान में कठपुतली सरकार होनी चाहिए ताकि हमारी पहुंच अमूर नदी तक हो सके।”
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