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पाकिस्तान पर क्यों मेहरबान है अमेरिका, सामने आई ट्रंप और असीम मुनीर से जुड़ी ये सीक्रेट डील!

पाकिस्तान पर अमेरिकी प्रशासन का रुख इस बार इतना लचीला क्यों है, इस रहस्य से पर्दा उठ गया है। पाकिस्तान के आर्मी चीफ असीम मुनीर और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के परिवार से जुड़ी एक सीक्रेट डील को इसकी वजह माना जा रहा है। लिहाजा ट्रंप -1 और ट्रंप-2 के कार्यकाल में पाकिस्तान के प्रति रवैये में जमीन-आसमान का फर्क है।

Written By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published : May 16, 2025 11:00 IST, Updated : May 16, 2025 11:46 IST
पाकिस्तान सेना के अध्यक्ष असीम मुनीर और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप।
Image Source : AP पाकिस्तान सेना के अध्यक्ष असीम मुनीर और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप।

वाशिंगटनः अमेरिका आजकल पाकिस्तान पर इतना मेहरबान क्यों है, यह सोचकर आप ही नहीं हर कोई हैरान है। मगर अब इसकी कलई खुल गई। पाकिस्तान पर अमेरिका की बड़ी मेहरबानी की वजह पाक आर्मी चीफ असीम मुनीर और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से जुड़ी एक सीक्रेट डील है। अब इस सीक्रेट डील से पर्दा उठ गया है। इस डील के बारे में जानकर आप भी चौंक जाएंगे। मगर इसे समझने के बाद आप आसानी से जान जाएंगे कि पाकिस्तान पर अमेरिका इस बार इतना अधिक उदार क्यों बना है?...तो आइये पाक आर्मी चीफ असीम मुनीर और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से जुड़ी इस सीक्रेट डील का राजफाश करते हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका की एक निजी क्रिप्टोकरेंसी कंपनी और पाकिस्तान की महज एक महीने पुरानी गठित क्रिप्टो काउंसिल के बीच एक बड़ा सौदा हुआ। पाकिस्तान में हुआ यह नया सौदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के परिवार और पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर से जुड़ा हुआ है, जो कि अब जांच के घेरे में आ गया है। इस सौदे में कई उच्च-प्रोफ़ाइल व्यक्तियों की संलिप्तता देखी गई है। यह कंपनी "वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल" है जो कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के परिवार से जुड़ी हुई है।

कंपनी का ‘ट्रंप कनेक्शन’

यह फिनटेक कंपनी क्रिप्टोकरेंसी और ब्लॉकचेन निवेश से संबंधित है, जिसमें राष्ट्रपति ट्रंप के बेटे एरिक और डोनाल्ड जूनियर व दामाद जैरेड कुश्नर की सामूहिक रूप से 60 प्रतिशत हिस्सेदारी है। अप्रैल में इस कंपनी ने पाकिस्तान क्रिप्टो काउंसिल के साथ एक लेटर ऑफ इंटेंट (इच्छा पत्र) पर हस्ताक्षर किए थे। रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान क्रिप्टो काउंसिल ने  गठन के कुछ ही दिनों के भीतर बिनांस के संस्थापक चांगपेंग झाओ को सलाहकार के रूप में नियुक्त किया। ताकि इस नए संगठन को विश्वसनीयता मिल सके। बिनांस विश्व का सबसे बड़ा क्रिप्टो एक्सचेंज है। इसके लॉन्च के दौरान पाकिस्तान की काउंसिल ने कहा कि उसका लक्ष्य इस्लामाबाद को दक्षिण एशिया की "क्रिप्टो राजधानी" बनाना है।

‘असीम मुनीर ने कराई थी डील’

बताया जा रहा है कि इस अहम सौदे पर हस्ताक्षर करने के लिए अमेरिका से एक उच्च-स्तरीय टीम इस्लामाबाद पहुंची थी, जिसका नेतृत्व कंपनी के संस्थापक ज़ैकरी विटकॉफ़ ने किया, जो डोनाल्ड ट्रंप के लंबे समय से व्यवसायिक साझेदार और वर्तमान में अमेरिका के मध्य पूर्व के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ़ के बेटे हैं। इस टीम का व्यक्तिगत स्वागत पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर ने किया और एक बंद कमरे में बैठक आयोजित हुई, जिसमें प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और असीम मुनीर दोनों मौजूद थे। उसके बाद यह डील फाइनल हुई।

‘सौदे की शर्तें’

पाकिस्तान की क्रिप्टो काउंसिल और वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल द्वारा जारी एक संयुक्त बयान के अनुसार, इस समझौते के तहत वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल को पाकिस्तान के वित्तीय संस्थानों में ब्लॉकचेन तकनीक को एकीकृत करने की अनुमति दी गई है। इसमें संपत्तियों का टोकनाइजेशन, विभिन्न प्रकार की स्टेबलकॉइन का विकास और विकेंद्रीकृत वित्त (DeFi) परियोजनाओं के लिए रेगुलेटरी सैंडबॉक्स की सुविधा शामिल है। सौदे का उद्देश्य पाकिस्तान में "वित्तीय समावेशन और डिजिटल परिवर्तन" को बढ़ावा देना बताया गया है।

पहलगाम में आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद इस सौदे पर कड़ी नजर

पाहलगाम में हुए आतंकवादी हमले और भारत की सैन्य कार्रवाई 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद इस सौदे पर कड़ी नजर रखी जा रही है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल ने एक प्रेस नोट जारी कर कहा कि इस समझौते के पीछे "कोई राजनीतिक मंशा नहीं" है। हालांकि ट्रंप परिवार और व्हाइट हाउस ने अब तक इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की है। मगर ट्रंप के परिवार से जुड़ी इस कंपनी की डील पाकिस्तान की सरकार के साथ कराने वाले असीम मुनीर के बीच होने को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं।

पाकिस्तान के प्रति अमेरिका का कैसे बदला नजरिया

माना जा रहा है कि अमेरिका की पाकिस्तान पर मेहरबानी शायद इसी लिए है। क्योंकि इससे पहले ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिकी प्रशासन पाकिस्तान पर काफी सख्त था। इतना ही नहीं, अमेरिका ने पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स(एफएटीएफ) की ग्रे लिस्ट में डाल दिया था। इससे पाकिस्तान को मिलनी वाली आतंकी फंडिंग और मनी लांड्रिंग पर रोक लग गई थी। फलस्वरूप पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की कमर टूट गई। हालत ये हो गई कि पाकिस्तान दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया। पाकिस्तान के लोगों को खाने-पीने के लाले पड़ने लगे। पाकिस्तान को कई देशों से भीख तक मांगनी पड़ गई। अभी भी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ढीली चल रही है। 

यह भी हुए खुलासे

वॉशिंगटन पोस्ट ने भी मानी 'ऑपरेशन सिंदूर' की कामयाबी, कहा- पाकिस्तान को पहुंचा भारी नुकसान

 

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