नई दिल्ली: नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) ने TRAPPIST-1 e नाम के एक सुदूर एक्सोप्लैनेट पर अपनी सबसे विस्तृत नजर डाली है। वैज्ञानिक इस ग्रह को 'अर्थ 2.0' यानी कि 'दूसरी धरती' का मजबूत दावेदार मान रहे हैं, क्योंकि यहां जीवन के लिए सही हालात हो सकते हैं। इस खोज ने अंतरिक्ष में जीवन की संभावना को लेकर नई उम्मीदें जगा दी हैं। बता दें कि TRAPPIST-1 e पृथ्वी के आकार का एक ग्रह है, जो 40 प्रकाश वर्ष दूर एक ठंडे लाल बौने तारे (रेड ड्वार्फ) TRAPPIST-1 की परिक्रमा करता है। इस तारे के इर्द-गिर्द पृथ्वी जैसे कुल 7 ग्रह घूमते हैं।
रोशनी के विश्लेषण से मिले रसायनों के संकेत
खास बात ये है कि TRAPPIST-1 e की कक्षा तारे के 'हैबिटेबल जोन' में है, जहां सतह पर पानी तरल रूप में मौजूद रह सकता है, न ज्यादा गर्म, न ज्यादा ठंडा। लेकिन इसके लिए ग्रह पर एक वायुमंडल का होना जरूरी है। JWST के शक्तिशाली इन्फ्रारेड सेंसरों ने ग्रह के तारे के सामने से गुजरने के दौरान स्टारलाइट को स्कैन किया। इससे ग्रह के वायुमंडल से गुजरने वाली रोशनी का विश्लेषण हो पाया, जिसमें रसायनों के संकेत मिले। स्पेस टेलीस्कोप साइंस इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर नेस्टोर एस्पिनोजा ने कहा, 'JWST के इन्फ्रारेड उपकरण हमें इतनी छोटी-छोटी डिटेल दे रहे हैं जो पहले कभी नहीं मिले। शुरुआती 4 जांचों से हमें पता चला कि आगे के डेटा से क्या उम्मीद रखी जा सकती है।'
मूल हाइड्रोजन-हिलियम लेयर गायब
इस रिसर्च के 2 साइंटिफिक पेपर एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स में छपे हैं, जो एक्सोप्लैनेट रिसर्च के नए दौर की शुरुआत बता रहे हैं। शुरुआती नतीजों से साफ है कि TRAPPIST-1 e का मूल वायुमंडल जो हाइड्रोजन और हिलियम से बना हुआ था, अब मौजूद नहीं है। इसका कारण तारे के तेज सोलर फ्लेयर्स (सूर्य की तरह की चमकदार विस्फोट) हैं, जिन्होंने हाइड्रोजन और हिलियम की परत को उड़ा दिया। लेकिन पृथ्वी की तरह कई ग्रह अपना दूसरा वायुमंडल बना लेते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि TRAPPIST-1 e के पास ऐसा वायुमंडल हो सकता है, या फिर ये पूरी तरह नंगा ग्रह या 'बेयर रॉक' हो सकता है जहां कोई वायुमंडल नहीं है।

'सूर्य से बिल्कुल अलग है TRAPPIST-1'
कोर्नेल यूनिवर्सिटी की निकोल लुईस ने कहा, 'TRAPPIST-1 एक ऐसा तारा है जो हमारे सूर्य से बिल्कुल अलग है, इसलिए इसके इर्द-गिर्द का ग्रह तंत्र भी अलग है।' रिसर्चर्स ने वीनस या मार्स जैसे मोटे कार्बन डाइऑक्साइड वाले वायुमंडल को यहां नामुमकिन बता दिया है। उन्होंने कहा कि इस ग्रह जैसा हमारे सोलर सिस्टम में कोई सटीक उदाहरण नहीं मिलता। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर TRAPPIST-1 e पर पानी है, तो ये एक बड़े से महासागर के रूप में हो सकता है, या ग्रह के उस हिस्से पर जमा हो सकता है जहां हमेशा दिन रहता है। ग्रह की टाइडल लॉकिंग की वजह से एक तरफ हमेशा तारे की रोशनी मिलती है, जबकि दूसरी तरफ अंधेरा रहता है और यह इलाका ठंडा है।
'हर ट्रांजिट के साथ साफ होता जा रहा है डेटा'
लुईस ने आगे कहा, 'एक मध्यम ग्रीनहाउस इफेक्ट तापमान को स्थिर रख सकता है, जहां कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें ग्रह को गर्म रखें। थोड़ा-सा ग्रीनहाउस इफेक्ट बहुत काम करता है। हमारे माप पर्याप्त कार्बन डाइऑक्साइड को नामुमकिन नहीं बताते, जो सतह पर पानी को बनाए रख सके।' पानी तारे के 'परपेचुअल नून' वाले इलाके में बर्फ से घिरा हो सकता है। ये संभावनाएं JWST के NIRSpec (नियर-इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोग्राफ) उपकरण से ट्रांजिट के दौरान स्टारलाइट स्पेक्ट्रम में हल्के बदलावों से आई हैं। हर ट्रांजिट के साथ डेटा साफ होता जा रहा है।
सोलर सिस्टम के रहस्य सुलझा रहा है मिशन
अभी 15 में से सिर्फ 4 ट्रांजिट्स का विश्लेषण हुआ है, इसलिए कई संभावनाएं खुली हैं। ये 4 ट्रांजिट JWST टेलीस्कोप साइंटिस्ट टीम के DREAMS (डीप रिकॉन्सेंस ऑफ एक्सोप्लैनेट एटमॉस्फेयर्स यूजिंग मल्टी-इंस्ट्रूमेंट स्पेक्ट्रोस्कोपी) कोलैबोरेशन से इकट्ठे किए गए। JWST दुनिया का सबसे बड़ा स्पेस साइंस ऑब्जर्वेटरी है, जो नासा, यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) और कैनेडियन स्पेस एजेंसी (CSA) का संयुक्त प्रोजेक्ट है। ये मिशन सोलर सिस्टम के रहस्य सुलझा रहा है, दूसरे तारों के इर्द-गिर्द दुनिया तलाश रहा है और ब्रह्मांड की उत्पत्ति समझा रहा है।




