जकार्ता: बांग्लादेश में पिछले साल हुए विरोध-प्रदर्शनों की याद अभी भी ताजा है। उन विरोध प्रदर्शनों की वजह से प्रधानमंत्री शेख हसीना को न सिर्फ अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी, बल्कि जान बचाने के लिए भारत में शरण लेनी पड़ी। अभी बांग्लादेश में लगी आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि इंडोनेशिया भी कुछ ऐसे ही प्रदर्शनों की चपेट में आ गया है। इंडोनेशिया में पिछले एक हफ्ते से चल रहे विरोध प्रदर्शनों ने देश को हिलाकर रख दिया है। इन प्रदर्शनों में कम से कम 8 लोगों की मौत हो चुकी है, सैकड़ों घायल हुए हैं, और सरकारी इमारतों को आग के हवाले कर लूटपाट की गई है।
इंडोनेशिया के लोगों में गुस्सा क्यों भड़का?
प्रदर्शन की शुरुआत 25 अगस्त को जकार्ता में संसद के बाहर हुई, जब हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। इनका गुस्सा सांसदों को दिए जाने वाले मोटे आवास भत्ते (हाउसिंग अलाउंस) के खिलाफ था, जो जकार्ता में न्यूनतम मजदूरी से लगभग 10 गुना ज्यादा है। एक सांसद को हर महीने 10 करोड़ रुपिया (लगभग 6150 डॉलर या 5.5 लाख भारतीय रुपये ) तक का भत्ता मिल रहा था, जिसने जनता में रोष पैदा कर दिया। इसके अलावा, राष्ट्रपति प्रबोवो की सख्त आर्थिक नीतियों, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और सार्वजनिक कार्यों में कटौती, ने भी लोगों का गुस्सा भड़काया।
डिलीवरी ड्राइवर की मौत ने आग में डाला घी
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि प्रबोवो की सरकार में सेना का दखल नागरिक जीवन में बढ़ रहा है, जो चिंता का विषय है। प्रदर्शन उस समय और उग्र हो गए जब 28 अगस्त को जकार्ता में एक 21 साल के डिलीवरी ड्राइवर की मौत हो गई। एक वीडियो में दिखा कि पुलिस की एक विशेष टुकड़ी ने अपनी बख्तरबंद गाड़ी से प्रदर्शनकारियों के बीच मौजूद ड्राइवर को कुचल दिया। इस घटना ने जनता का गुस्सा और भड़का दिया। इसके बाद प्रदर्शन जकार्ता से निकलकर सुलावेसी, जावा, सुमात्रा और बोर्नियो जैसे द्वीपों पर फैल गया। गोरोंतालो, बांडुंग, पालेमबांग, बंजरमासिन, योग्याकार्ता और मकासर जैसे शहरों में सरकारी इमारतों और पुलिस मुख्यालयों को आग लगा दी गई।
कई इलाकों में बेकाबू भीड़ ने की हिंसा
मकासर में शुक्रवार को एक सरकारी इमारत में आग लगने से 3 लोगों की मौत हो गई। उसी दिन एक अन्य व्यक्ति को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला, क्योंकि उन्हें गलती से खुफिया अधिकारी समझ लिया गया। योग्याकार्ता में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प में एक छात्र की मौत हो गई। सोलो शहर में एक आंसू गैस के संपर्क में आने से 60 साल के एक रिक्शा चालक की तबीयत खराब हो गई, और बाद में अस्पताल में उसकी मौत हो गई। वित्त मंत्री श्री मुल्यानी इंद्रावती का घर लूट लिया गया, हालांकि वह उस समय घर पर नहीं थीं। कई सांसदों के घरों में भी तोड़फोड़ और लूटपाट की खबरें हैं।

इंडोनेशिया में प्रदर्शनों के पीछे कौन है?
इंडोनेशिया में इन प्रदर्शनों की शुरुआत छात्र संगठनों, जैसे ऑल इंडोनेशियन स्टूडेंट्स एग्जीक्यूटिव बॉडी, ने की थी, लेकिन अब यह आंदोलन बेकाबू हो गया है। कोई एक मुख्य नेतृत्व नहीं दिख रहा जिसके इशारे पर प्रदर्शनकारी चल रहे हों। कुछ प्रदर्शनकारी पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ गुस्से में हैं, तो कुछ अपने स्थानीय मुद्दों को लेकर सड़कों पर हैं। इंडोनेशिया की 28 करोड़ आबादी में ज्यादातर लोग न्यूनतम मजदूरी पर गुजारा करते हैं।
प्रबोवो की 2026 की 234 अरब डॉलर की बजट योजना में क्षेत्रीय फंडिंग को 25% घटाकर 40 अरब डॉलर कर दिया गया है, जो एक दशक में सबसे कम है। इसकी वजह से स्थानीय सरकारों को टैक्स बढ़ाने पड़े। दूसरी ओर, रक्षा बजट में 37% की बढ़ोतरी और प्रबोवो के मुफ्त स्कूल भोजन कार्यक्रम के लिए 20.5 अरब डॉलर का आवंटन किया गया है।
राष्ट्रपति प्रबोवो ने रद्द की अपनी चीन यात्रा
जकार्ता के गवर्नर प्रामोनो अनुंग के मुताबिक, प्रदर्शनकारियों ने बसों, मेट्रो और अन्य बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाया, जिससे 55 अरब रुपिया (लगभग 33 लाख डॉलर) का नुकसान हुआ। राष्ट्रपति प्रबोवो ने इन प्रदर्शनों को गंभीरता से लिया है। उन्होंने चीन की एक महत्वपूर्ण सैन्य परेड में जाने की अपनी यात्रा रद्द कर दी और रविवार को सुरक्षा बलों को सख्त कार्रवाई करने का आदेश दिया। उन्होंने कहा, 'प्रदर्शन में गैरकानूनी हरकतें, यहां तक कि देशद्रोह और आतंकवाद के संकेत दिख रहे हैं। पुलिस और सेना को सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने, लूटपाट और आर्थिक केंद्रों पर हमले के खिलाफ सख्त से सख्त कदम उठाने का आदेश है।'

जनता के दबाव के आगे झुकते दिखे प्रबोवो
हालांकि, जनता के दबाव के सामने प्रबोवो को झुकना पड़ा। उन्होंने सांसदों के भत्तों और विदेशी यात्राओं पर रोक लगाने की घोषणा की। साथ ही, डिलीवरी ड्राइवर की मौत के कारणों का पता लगाने के लिए 7 पुलिसकर्मियों के खिलाफ जांच शुरू की गई है। प्रबोवो ने कहा कि जांच पारदर्शी होगी और पीड़ित के परिवार को आर्थिक मदद दी जाएगी। सोमवार को प्रबोवो ने फिर सख्त रुख अपनाया। उन्होंने प्रदर्शनों में घायल हुए 40 पुलिसकर्मियों को पदोन्नति देने की घोषणा की। उन्होंने कहा, 'हो सकता है कुछ पुलिसकर्मियों ने गलती की हो, लेकिन हमें उन दर्जनों अधिकारियों को नहीं भूलना चाहिए जिन्होंने बलिदान दिया।'
इंडोनेशिया में प्रदर्शनों पर दुनिया का रुख
संयुक्त राष्ट्र ने सोमवार को प्रदर्शनों में अत्यधिक बल प्रयोग की जांच की मांग की। ह्यूमन राइट्स वॉच ने इंडोनेशियाई अधिकारियों पर 'गैर-जिम्मेदाराना' रवैया अपनाने का आरोप लगाया। संगठन की एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, 'प्रदर्शनों को देशद्रोह या आतंकवाद कहना चिंताजनक है, खासकर जब सुरक्षा बलों का प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अत्यधिक बल प्रयोग का लंबा इतिहास रहा है।' अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, कनाडा और अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों ने अपने नागरिकों को प्रदर्शन वाले इलाकों और बड़ी भीड़ से दूर रहने की सलाह दी है।
प्रबोवो के लिए बड़ी चुनौती के रूप में उभरे प्रदर्शन
राजधानी जकार्ता से शुरू होकर देश के कई हिस्सों में फैल गए ये प्रदर्शन प्रबोवो के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं, जिन्हें पिछले साल भारी बहुमत से राष्ट्रपति चुना गया था। उनकी सरकार में लगभग सभी पार्टियां शामिल हैं, जिसकी वजह से विपक्ष कमजोर है, लेकिन ये प्रदर्शन उनकी लोकप्रियता पर सवाल उठा रहे हैं। प्रबोवो, जो पूर्व तानाशाह सुहार्तो के दामाद और विशेष सैन्य कमांडर रह चुके हैं, 1998 में सुहार्तो के पतन के समय हुए प्रदर्शनों से वाकिफ हैं। उनकी प्रतिक्रिया यह तय करेगी कि यह आंदोलन कितना लंबा चलेगा और भविष्य में फिर से भड़केगा या नहीं।



