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Sparrow Day: अब नहीं नहीं चेते तो वह होगी 'गूगल गौरैया'

इंसान के बेहद करीब रहने वाली कई प्रजाति के पक्षी और चिड़िया आज हमारे बीच से गायब है। उसी में एक है 'स्पैरो' यानी नन्ही सी गौरैया। गौरैया हमारी प्रकृति और उसकी सहचरी है। गौरैया की यादें आज भी हमारे जेहन में ताजा हैं।

India TV Lifestyle Desk
Published : Mar 20, 2017 05:07 pm IST, Updated : Mar 20, 2017 05:09 pm IST
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नई दिल्ली: विज्ञान और विकास के बढ़ते कदम ने हमारे सामने कई चुनौतियां भी खड़ी की हैं, जिससे निपटना हमारे लिए आसान नहीं है। विकास की महत्वाकांक्षी इच्छाओं ने हमारे सामने पर्यावरण की विषम स्थिति पैदा की है, जिसका असर इंसानी जीवन के अलावा पशु-पक्षियों पर साफ दिखता है।

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इंसान के बेहद करीब रहने वाली कई प्रजाति के पक्षी और चिड़िया आज हमारे बीच से गायब है। उसी में एक है 'स्पैरो' यानी नन्ही सी गौरैया। गौरैया हमारी प्रकृति और उसकी सहचरी है। गौरैया की यादें आज भी हमारे जेहन में ताजा हैं। कभी वह नीम के पेड़ के नीचे फूदकती और अम्मा की तरफ से बिखेरे गए चावल या अनाज के दाने को चुगती।

नवरात्र में अम्मा अक्सर मिट्टी की हांडी नीम के पेड़ तले गाड़ती और चिड़िया के साथ दूसरे पक्षी अपनी प्यास बुझाते। लेकिन बदलते दौर और नई सोच की पीढ़ी में पर्यावरण के प्रति कोई सोच ही नहीं दिखती है। अब बेहद कम घरों में पक्षियों के लिए इस तरह की सुविधाएं उपलब्ध होती हैं।

प्यारी गौरैया कभी घर की दीवाल पर लगे ऐनक पर अपनी हमशक्ल पर चोंच मारती तो की कभी खाट के नजदीक आती। बदलते वक्त के साथ आज गौरैया का बयां दिखाई नहीं देता।

एक वक्त था, जब बबूल के पेड़ पर सैकड़ों की संख्या में घोंसले लटके होते और गौरैया के साथ उसके चूजे चीं-चीं-चीं का शोर मचाते। सब कुछ कितना अच्छा लगता। बचपन की यादें आज भी जेहन में ताजा हैं, लेकिन वक्त के साथ गौरैया एक कहानी बन गई है। उसकी आमद बेहद कम दिखती है। गौरैया इंसान की सच्ची दोस्त भी है और पर्यावरण संरक्षण में उसकी खास भूमिका भी है।

दुनियाभर में 20 मार्च गौरैया संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् मो. ई. दिलावर के प्रयासों से इस दिवस को चुलबुली चंचल गौरैया के लिए रखा गया। 2010 में पहली बार यह दुनिया में मनाया गया।

प्रसिद्ध उपन्यासकार भीष्म साहनी जी ने अपने बाल साहित्य में गौरैया पर बड़ी अच्छी कहानी लिखी है, जिसे उन्होंने 'गौरैया' ही नाम दिया है। हलांकि जन में जागरूकता की वजह से गौरैया की आमद बढ़ने लगी है। हमारे लिए यह शुभ संकेत है।

गौरैया को पसंद है साथियों का झुंड :

गौरैया का संरक्षण हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी है। इंसान की भोगवादी संस्कृति ने हमें प्रकृति और उसके साहचर्य से दूर कर दिया है। विज्ञान और विकास हमारे लिए वरदान साबित हुआ है। लेकिन दूसरा पहलू कठिन चुनौती भी पेश किया है। गौरैया एक घरेलू और पालतू पक्षी है। यह इंसान और उसकी बस्ती के पास अधिक रहना पसंद करती है।

पूर्वी एशिया में यह बहुतायत पाई जाती है। यह अधिक वजनी नहीं होती है। इसका जीवन काल दो साल का होता है। यह पांच से छह अंडे देती है।

आंध्र विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में गौरैया की आबादी में 60 फीसदी से अधिक की कमी आई है। ब्रिटेन की 'रायल सोसाइटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस' ने इस चुलबुली और चंचल पक्षी को 'रेड लिस्ट' में डाल दिया है। दुनियाभर में ग्रामीण और शहरी इलाकों में गौरैया की आबादी घटी है।

गौरैया की घटती आबादी के पीछे मानव विकास सबसे अधिक जिम्मेदार है। गौरैया पासेराडेई परिवार की सदस्य है, लेकिन इसे वीवरपिंच परिवार का भी सदस्य माना जाता है। इसकी लंबाई 14 से 16 सेंटीमीटर होती है। इसका वजन 25 से 35 ग्राम तक होता है। यह अधिकांश झुंड में ही रहती है। यह अधिकतम दो मील की दूरी तय करती है। गौरैया को अंग्रेजी में पासर डोमेस्टिकस के नाम से बुलाते हैं।

मानव जहां-जहां गया गौरैया उसका हम सफर बन कर उसके साथ गई। शहरी हिस्सों में इसकी छह प्रजातियां पाई जाती हैं, जिसमें हाउस स्पैरो, स्पेनिश, सिंउ स्पैरो, रसेट, डेड और टी स्पैरो शामिल हैं। यह यूरोप, एशिया के साथ अफ्रीका, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया और अमेरिका के अधिकतर हिस्सों में मिलती है। इसकी प्राकृतिक खूबी है कि यह इंसान की सबसे करीबी दोस्त है।

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