Sunday, April 28, 2024
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‘सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया था कि…’, CJI ने बताई अयोध्या केस से जुड़ी ये अहम बात

देश को ध्रुवीकृत करने वाले मामले में सर्वसम्मत निर्णय सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 2019 में कहा था कि हिंदुओं की इस आस्था को लेकर कोई विवाद नहीं है कि भगवान राम का जन्म संबंधित स्थल पर हुआ था, और प्रतीकात्मक रूप से वह संबंधित भूमि के स्वामी हैं।

Vineet Kumar Singh Edited By: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Published on: January 02, 2024 6:58 IST
DY Chandrachud, DY Chandrachud Interview, CJI Interview- India TV Hindi
Image Source : PTI CJI डीवाई चंद्रचूड़।

नई दिल्ली: अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के 4 साल से अधिक समय बाद CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ ने सोमवार को कहा कि अयोध्या में विवादित स्थल पर एक ट्रस्ट द्वारा राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में निर्णय सुनाने वाले 5 जजों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया था कि इसमें फैसला लिखने वाले किसी जज के नाम का जिक्र नहीं किया जाएगा। 9 नवंबर, 2019 को एक सदी से भी ज्यादा समय से चले आ रहे एक विवादास्पद मुद्दे का निपटारा करते हुए तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली 5 जजों की बेंच ने मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया था और अयोध्या में मस्जिद के लिए 5 एकड़ वैकल्पिक भूमि देने का भी निर्णय सुनाया था।

‘यह फैसला सर्वसम्मति से लिया गया था’

इस केस में फैसला सुनाने वाली बेंच का हिस्सा रहे जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसले में किसी जज के नाम का जिक्र न करने के बारे में खुलकर बात की और कहा कि जब जज एक साथ बैठे, जैसा कि वे किसी घोषणा से पहले करते हैं, तो सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि यह ‘कोर्ट का फैसला’ होगा। वह इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि फैसला लिखने वाले जज का नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया। CJI ने कहा, ‘जब 5 जजों की बेंच फैसले पर विचार-विमर्श करने के लिए बैठी, जैसा कि हम सभी निर्णय सुनाए जाने से पहले करते हैं, तो हम सभी ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि यह अदालत का फैसला होगा। और, इसलिए, फैसले लिखने वाले किसी भी जज के नाम का जिक्र नहीं किया गया।’

केस में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था ये निर्णय

CJI ने कहा, ‘इस मामले में संघर्ष का एक लंबा इतिहास है, देश के इतिहास के आधार पर विविध दृष्टिकोण हैं और जो लोग बेंच का हिस्सा थे, उन्होंने फैसला किया कि यह अदालत का फैसला होगा। अदालत एक स्वर में बोलेगी और ऐसा करने के पीछे का विचार यह स्पष्ट संदेश देना था कि हम सभी न केवल अंतिम परिणाम में, बल्कि फैसले में बताए गए कारणों में भी एक साथ हैं। मैं इसके साथ अपना उत्तर समाप्त करूंगा।’ देश को ध्रुवीकृत करने वाले मामले में सर्वसम्मत निर्णय सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 2019 में कहा था कि हिंदुओं की इस आस्था को लेकर कोई विवाद नहीं है कि भगवान राम का जन्म संबंधित स्थल पर हुआ था, और प्रतीकात्मक रूप से वह संबंधित भूमि के स्वामी हैं।

कोर्ट ने केस पर स्वामित्व विवाद के रूप में लिया

कोर्ट ने कहा था कि फिर भी, यह भी स्पष्ट है कि हिंदू कारसेवक, जो वहां राम मंदिर बनाना चाहते थे, उनके द्वारा 16वीं शताब्दी की 3 गुंबद वाली संरचना को ध्वस्त किया जाना गलत था, जिसका ‘समाधान किया जाना चाहिए।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसका आस्था और विश्वास से कोई लेना-देना नहीं है तथा इसके बजाय मामले को तीन पक्षों - सुन्नी मुस्लिम वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा, एक हिंदू समूह और राम लला विराजमान के बीच भूमि पर स्वामित्व विवाद के रूप में लिया। सुप्रीम कोर्ट के 1,045 पन्नों के फैसले का हिंदू नेताओं और समूहों ने व्यापक स्वागत किया था, जबकि मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि वह फैसले को स्वीकार करेगा, भले ही यह त्रुटिपूर्ण है। (PTI)

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