देश भर में हवाई सफर करने वाले यात्रियों में हाहाकार मचा हुआ है। शनिवार (6 दिसम्बर) को इंडिगो ने दिल्ली, मुंबई, बैंगलुरु और कई एयरपोर्ट से अपनी 500 से ज्यादा उड़ाने रद्द कर दी। शुक्रवार को एक हजार से ज्यादा उड़ानें रद्द हुई थी। हजारों यात्री तमाम बड़े एयरपोर्ट पर परेशान नजर आये। दिल्ली और मुंबई से इंडिगो ने अपनी सारी उड़ाने रद्द कर दी। हर हवाई अड्डे पर अफरातफरी और कुप्रबंध दिखा। इस संकट से यात्री बेहाल हैं।
सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि उनकी बातें सुनने वाला कोई नहीं है। एक नई आफत भी आ गई। इंडिगो की उड़ाने रद्द होने का असर ये हुआ कि विमान किराये आसमान छूने लगे। दूसरी एयरलाइंस ने टिकटों के दाम बढ़ा दिए। दिल्ली से चेन्नई का किराया 81 हजार तक पहुंच गया। दिल्ली से कोलकाता जाने के लिए 4 से 6 हजार रुपये खर्च करने पड़ते थे लेकिन आज इकोनॉमी क्लास के टिकट के दाम बिजनेस क्लास के टिकट से ज्यादा रेट पर बिके।
दिल्ली से पुणे, मुंबई, गोवा, अहमदाबाद, पटना जैसे शहरों का विमान किराया इतना ज्यादा हो गया कि आम आदमी के लिए इसे खरीद पाना नामुमकिन हो गया। हवाई यात्रा करने वाले पैसेंजर्स पूछ रहे हैं कि उन्हें किस बात की सजा मिल रही है। जेब से पैसे खर्च किए। एयरपोर्ट पर पिछले 3 दिन से परेशानी उठाई। देश के कई हिस्सों में जाना विदेश जाने से महंगा साबित हो रहा है। जिस किराये पर लंदन का सफर हो जाता उससे दुगुना किराया चेन्नई या कोलकाता जाने के लिए लोगों ने खर्च किया।
जाहिर है समस्या इतनी बड़ी है तो सवाल भी उठेंगे और सियासत भी होगी। राहुल गांधी ने ट्वीट कर मोदी सरकार पर निशाना साधा। इस संकट को सरकार के monopoly मॉडल का नतीजा बताया। नागर विमानन मंत्री राम मोहन नायडू ने कहा कि इस संकट की जांच के लिए मंत्रालय ने एक कमेटी बना दी है। यात्रियों को हुई दिक्कत का जो भी जिम्मेदार होगा उस पर एक्शन लिया जाएगा।
अब जांच कमेटी बनाने से क्या होगा? किसी भी लीडर की परख संकट के समय होती है। नागर विमानन मंत्री राम मोहन नायडू इस संकट से निबटने में फेल हुए। लीडर का काम होता है, संकट का अंदाजा लगाना। क्या मंत्रालय को इस बात का अंदाजा नहीं था कि फ्लाइट ड्यूटी नियम बदलने से इतनी बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी, पायलट्स कम पड़ जाएंगे, उड़ाने रद्द होने लगेंगी और जब उड़ाने रद्द होंगी तो Airlines अपने किराये बढ़ाएंगी?
जब लोग एयरपोर्ट पर फंस गए, चारों तरफ से चीख पुकार मचने लगी तब जाकर मंत्री जी सक्रिय हुए और इसके बाद भी रास्ता निकालने में तीन दिन लग गए। अगर नियमों को वापस ही लेना था तो उन्हें लागू क्यों किया गया? और जब उन्हें लागू किया गया तो उनके असर का ठीक से आकलन क्यों नहीं किया गया? अगर पहले से प्लानिंग होती तो न लोगों को परेशानी होती और न मंत्रालय की बदनामी होती। (रजत शर्मा)
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