Tuesday, April 30, 2024
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Rajat Sharma's Blog | इस बार चुनाव : मोदी बनाम विपक्ष

सबसे बड़ा सवाल ये है कि विपक्षी गठबंधन मोदी के खिलाफ किसका चेहरा आगे करेगा? कौन प्रधानमंत्री पद का दावेदार होगा? क्योंकि जैसे ही इस पर बात आएगी तो एकता तार-तार होगी क्योंकि दावेदार कई हैं और समझौते के लिए कोई तैयार नहीं हैं.

Rajat Sharma Written By: Rajat Sharma
Updated on: July 20, 2023 6:19 IST
इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।- India TV Hindi
Image Source : इंडिया टीवी इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

अब ये तो साफ हो गया है कि अगला चुनाव भारत बनाम इंडिया होगा, मोदी वर्सेस ऑल होगा. मोदी ने चैलेंज कबूल कर लिया है, और इस वक्त मोदी मजबूत ज़मीन पर खड़े दिख रहे हैं. विरोधी दलों का एक तर्क है कि 2019 के चुनाव में बीजेपी को 45 परसेंट वोट मिले थे, यानि 55 परसेंट वोट बीजेपी के खिलाफ था. अगर इस वोट को इकट्ठा रखा जाए तो कामयाबी मिल सकती है, मोदी को हराया जा सकता है.  लेकिन हकीकत ये है कि 2019 में 224 लोकसभा सीटें ऐसी थी, जिनमें बीजेपी को 50 परसेंट से ज्यादा वोट मिले थे. दूसरी बात, विपक्ष ने जो गठबंधन बनाया है, उसमें छह बड़ी पार्टियां बहुजन समाज पार्टी, तेलुगु देशम पार्टी, बीजू जनता दल, YSR कांग्रेस, भारत राष्ट्र समिति, और जनता दल-एस शामिल नहीं हैं. इन पार्टियों के लोकसभा में 57 सदस्य हैं. इन सभी पार्टियों का अपने अपने राज्यों में अच्छा खासा जनाधार है. इसलिए इन राज्यों में त्रिकोणीय मुकाबला होगा. अगर आंकड़ों को छोड़ दें, तो सबसे बड़ा सवाल ये है कि विपक्षी गठबंधन  मोदी के खिलाफ किसका चेहरा आगे करेगा? कौन प्रधानमंत्री पद का दावेदार होगा? क्योंकि जैसे ही इस पर बात आएगी तो एकता तार-तार होगी क्योंकि दावेदार कई हैं और समझौते के लिए कोई तैयार नहीं हैं.

नीतीश कुमार का मंगलवार की बैठक के बाद गायब होना, विपक्षी गठबंधन के लिए शुभ संकेत नहीं हैं, क्योंकि ये कहा जा रहा है कि नीतीश चाहते थे कि विपक्षी गठबंधन के लिए उन्होंने पहल की, मेहनत की, सबको एक साथ एक मंच पर लाए, इसलिए उन्हें संयोजक बनाया जाए और इसका ऐलान आज ही हो जाए लेकिन सिर्फ गठबंधन के नाम का ऐलान हुआ. गठबंधन के संयोजक के नाम पर चर्चा अगली बैठक के लिए टाल दी गई, इसीलिए नीतीश नाराज हो कर निकल गए. लालू को लगता है कि जब तक नीतीश केंद्र की राजनीति में नहीं जाएंगे तब तक तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ नहीं होगा, इसलिए लालू भी नीतीश के साथ हैं, वो भी प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले ही निकल गए. विरोधी दल कह रहे हैं कि बीजेपी साम्प्रदायिक पार्टी है, वो सेक्युलेरिज्म को बचाने के लिए एक साथ आए हैं, लेकिन असद्दुदीन ओवैसी कह रहे हैं कि शिवसेना बीजेपी के साथ रही, नीतीश कुमार बीजेपी के साथ रहे, ममता बीजेपी के साथ रहीं, फारुक़ अब्दुल्ला बीजेपी के साथ रहे, आज कांग्रेस के लिए सब सेक्युलर हो गए और वो कभी बीजेपी के साथ नहीं गए लेकिन कांग्रेस उन्हें बीजेपी की ‘बी’ टीम बताती है, ये कैसा सेक्युलेरिज्म है?

विपक्षी पार्टियां कहेंगी कि बीजेपी ने सिर्फ संख्या ज्यादा दिखाने के लिए ऐसी ऐसी पार्टियों को जोड़ लिया, जिनका नाम भी कोई नहीं जानता. ये बात सही है कि NDA में क्षेत्रीय दलों के बहुत से नेता शामिल हुए हैं. उनके नाम राष्ट्रीय स्तर पर लोग नहीं जानते लेकिन ये भी सही है कि ओमप्रकाश राजभर हों, उपेन्द्र कुशवाहा हों, चिराग पासवान हों, जीतनराम मांझी हों, अनुप्रिया पटेल हों, संजय निषाद हों, ये वो नेता हैं जिनकी जातियों का वोट जीत-हार पर असर डालता है और इन सब नेताओं का अपनी अपनी जातियों में अच्छा खासा प्रभाव है. अगर ऐसा न होता, तो नीतीश कुमार ने मांझी को मुख्यमंत्री क्यों बनाया था? कई बार बगावत करने के बाद भी उपेन्द्र कुशवाहा को मंत्री क्यों बनाया था? इसी तरह अगर ओमप्रकाश राजभर और संजय निषाद का कोई वजूद न होता तो अखिलेश यादव ने उनके साथ गठबंधन क्यों किया था? एक बार गोरखपुर की सीट अखिलेश यादव ने संजय निषाद के साथ गठबंधन करके ही जीती थी. संजय निषाद बीजेपी के साथ आए और उपचुनाव में वो सीट समाजवादी पार्टी हार गई. इसलिए ये कहना तो ठीक नहीं है कि बीजेपी ने NDA में छोटी पार्टियों को शामिल किया है. उसका कोई मतलब नहीं हैं. हाँ, इतना जरूर है कि मोदी विरोधी दलों ने एकता दिखाई तो बीजेपी को भी मजबूर होकर अपने नए पुराने साथियों को गले लगाना पड़ा. इसमे दोनों का फायदा है.

क्या विपक्षी एकता टिक पायेगी?

विपक्षी एकता कितनी मजबूत है और कब तक रहेगी, ये तो कोई नहीं कह सकता लेकिन इतना तो बैंगलुरू पहुंचे नेता भी मान रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी ने सभी विरोधियों को एक मंच पर आने के लिए मजबूर कर दिया. वरना जो कांग्रेस अरविंद केजरीवाल को पानी पी-पी कर कोसती थी, जिन केजरीवाल ने दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस का सफाया कर दिया, आज वही कांग्रेस केजरीवाल का वीडियो, उनकी बाइट अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर रही थी. और जो केजरीवाल पहले कांग्रेस को ‘मदर ऑफ करप्शन’ कहते थे, आज वो भी पूरे मन से कांग्रेस को लोकतन्त्र का रक्षक बता रहे थे. जो उद्धव ठाकरे कभी अपने कार्यकर्ताओं से कहते थे कि राहुल गांधी अगर सामने आ जाएं तो चप्पल से पिटाई करना, आज वही उद्धव कह रहे थे कि अब कांग्रेस के साथ मिलकर देश को बचाना है. ममता पिछले हफ्ते तक कांग्रेस और बीजेपी को एक जैसा बता रही थीं, जिनकी पार्टी के लोगों ने पंचायत चुनाव में काँग्रेस के कार्यकर्ताओं पर बम चलाए, आज उन्ही ममता ने राहुल को अपना फेवरेट बताया. सोमवार रात के डिनर में शामिल होने से पहले ममता ने सोनिया गांधी से लंबी बात की, मंगलवार सुबह भी बात हुई , इसीलिए बैठक आधे घंटे देर से शुरू हुई. प्रेस कॉन्फ्रेंस में नेताओं ने एक दूसरे की तारीफ की लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि शरद पवार खामोश रहे. शरद पवार सोमवार की बजाए अगले दिन बैठक में पहुंचे थे.  प्रेस कॉन्फ्रेंस में खामोशी से बैठे रहे और उसके बाद चुपचाप निकल गए. शरद राव की खामोशी बड़े सवाल पैदा करती है,  क्योंकि इस बात की उम्मीद तो बैंगलुरू पहुंचे नेता भी कर रहे थे कि महाराष्ट्र में जो हुआ, उसके बाद शरद पवार सार्वजनिक तौर पर अपना स्टैंड साफ करेंगे. लेकिन शरद पवार ने कुछ नहीं कहा. शरद पवार को बेंगलुरु में बैठकर दिल्ली की टेंशन थी. जब बेंगलुरु में प्रेस कॉन्फ्रेन्स चल रही थी, उसी वक्त 2,100 किलोमीटर दूर दिल्ली में पवार के भतीजे अजित पवार और उनके पुराने करीबी प्रफुल पटेल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गले मिल रहे थे. अजित पवार की एनसीपी एनडीए में शामिल हो चुकी थी.

मोदी को अपनी जीत पर भरोसा क्यों ?

बेंगलुरु में विपक्षी गठबंधन की बैठक शुरू होने से पहले ही मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विरोधी दलों पर करारा प्रहार किया. कहा, जो पार्टियां राज्यों में एक दूसरे के खून के प्यासे हैं, वो बेंगलुरु में गलबहियां कर रहे हैं, देश की जनता सब देख रही है, सब समझ रही है. मोदी ने कहा कि जो लोग उन्हें कोस रहे हैं, उनके लिए वो सिर्फ प्रार्थना ही कर सकते हैं.  मोदी ने कहा कि बेंगलुरु में कट्टर भ्रष्टाचारियों का सम्मेलन हो रहा है. उन्होंने अवधी की एक कविता सुनाई और एक पुराने हिंदी गाने का जिक्र करते हुए कहा कि इन लोगों के चेहरे और हैं, लेबल कुछ और है, विपक्ष के लोगों ने जो दुकान खोली है, उसमें दो चीजों की गारंटी मिलती है - जातिवाद का जहर और असीमित भ्रष्टाचार. मोदी ने बेंगलुरु में जुटे नेताओं की hierarchy (पदानुक्रम) भी बता दी, कहा, जो जितना बड़ा भ्रष्ट है, गठबंधन में उसका सम्मान उतना ही ज्यादा है. जो भ्रष्टाचार के मामले में ज़मानत पर है, उनका सम्मान थोड़ा कम है और जो भ्रष्टाचार के मामले में सजा पा चुके हैं, उनका कद बड़ा है, उन्हें विशेष आमंत्रित के तौर पर बुलाया गया है. मोदी ने कहा कि बेंगलुरु में जो लोग जुटे हैं, उनका मकसद मोदी को हराना नहीं, खुद को बचाना है क्योंकि ज्यादातर के खिलाफ बड़े बड़े घोटालों में जांच चल रही है. इनकी बैठक का एक ही एजेंडा है - अपना परिवार बचाओ, भ्रष्टाचार बढ़ाओ. 

मोदी ने ठीक कहा कि विरोधी गठबंधन में ज़्यादातर वो पार्टियां हैं, जिनके नेताओं के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के केस दर्ज हुए हैं, लेकिन ये भी सही है कि CBI और ED के मामलों ने ही इन नेताओं को एक साथ, एक मंच पर आने को मजबूर किया. ये कोई सीक्रेट नहीं है. ये नेता ख़ुद कहते हैं कि उनकी लड़ाई BJP से कम,  ED और CBI से ज़्यादा है. अगर मोदी ने विरोधी दलों के नेताओं पर इतने ज़्यादा केस नहीं किए होते, तो शायद केजरीवाल और ममता बनर्जी, कांग्रेस के साथ कभी हाथ न मिलाते. बेंगलुरु में कुछ पार्टियों के जो नेता इकट्ठे हुए, उन्हें लगता है कि मोदी ने हर संस्थान पर क़ब्ज़ा कर लिया है, विरोधियों को न मीडिया पर विश्वास है, न न्यायपालिका पर. न्यायपालिका के बारे में वो कुछ कह नहीं सकते, इसलिए सारा ग़ुस्सा मीडिया पर उतरता है. इसीलिए शाम को एनडीए की बैठक में मोदी ने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि इस बार चुनाव में 50 परसेंट से भी ज्य़ादा वोट मिलेंगे और एनडीए तीसरी बार अपनी सरकार बनाएगी. (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 18 जुलाई, 2023 का पूरा एपिसोड

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