मिसाइल के तय ऊंचाई और गति तक पहुंचते ही बूस्टर मोटर अलग हो जाता है और टर्बोफैन इंजन आगे के प्रक्षेपण के लिए स्वत: ही काम करने लगता है। इसी खासियत की वजह से यह रॉकेट से विमान और फिर मिसाइल में तब्दील हो जाती है।
डीआरडीओ के एक वैज्ञानिक ने मिसाइल के प्रक्षेपण के तुरंत बाद कहा कि परीक्षण की सभी शुरुआती प्रक्रिया सफल रहीं। उन्होंने बताया कि विस्तृत आकलन के लिए ट्रैकिंग प्रणाली से डेटा हासिल किया जा रहा है। एडवांस्ड सिस्टम्स लैबोरेटरी (एएसएल) द्वारा विकसित ठोस र
भारतीय सेना को सालों के इंतजार के बाद आखिरकार 2020 तक मध्यम दूरी की सतह से हवा में प्रहार करने वाली यह मिसाइल मिल जाएगी।
अवाडी में सेना के लिए कॉम्बैट विहिकिल्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टिब्लिशमेंट ने इसका टेस्ट किया गया, लेकिन अर्धसैनिक बल इन टैंक्स का इस्तेमाल नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में करने में रुचि दिखा रहे हैं। इसके लिए टैंक में कुछ संशोधनों करने की जरूरत होगी। अ
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