Sunday, April 28, 2024
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अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, यूनिवर्सिटी एडमिशन में नस्ल जातीयता के इस्तेमाल पर लगाई रोक, बाइडेन नाखुश

अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने 29 जून को ऐतिहासिक फैसला दिया है। अपने फैसले में कोर्ट ने अमेरिकी विश्वविद्यालयों में दाखिले में नस्ल और जातीयता के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। इस निर्णय पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने आपत्ति जताई है।

Deepak Vyas Written By: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Updated on: June 30, 2023 7:01 IST
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, यूनिवर्सिटी एडमिशन में नस्ल जातीयता के इस्तेमाल पर लगाई रोक- India TV Hindi
Image Source : PTI अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, यूनिवर्सिटी एडमिशन में नस्ल जातीयता के इस्तेमाल पर लगाई रोक, बाइडेन नाखुश

America News: यूनिवर्सिटी में छात्रों के एडमिशन को लेकर अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। कोर्ट ने गुरुवार 29 जून को अपने आदेश में नस्ल और जातीयता के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस फैसले से दशकों पुरानी उस प्रैक्टिस को झटका लगा है,जिसने अफ्रीकी, अमेरिकियों और अल्पसंख्यकों के लिए एजुकेशन के मौकों को बढ़ावा दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कड़ी नाखुशी जताई है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स ने दिए गए अपने फैसले में लिखा कि  ‘छात्र के साथ एक व्यक्ति के रूप में उसके अनुभव के आधार पर व्यवहार किया जाना चाहिए। नस्ल के आधार पर नहीं‘। कोर्ट के फैसले पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की भी प्रतिक्रिया आई है। उन्होंने कहा, ‘इसने हमें यह दिखाने का मौका दिया कि हम एक सीट से कहीं अधिक योग्य हैं।‘

यूनिवर्सिटी मे एडमिशन से जुड़े कोर्ट के फैसले से मैं असहमतः जो बाइडेन

समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा कि वह विश्वविद्यालय प्रवेश निर्णयों में नस्ल और जातीयता के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने वाले अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से दृढ़ता से असहमत हैं। उन्होंने कहा कि यह फैसला दशकों की मिसाल से दूर चला गया।

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य जज ने कही ये बात

चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स ने बहुमत की राय में लिखा कि हालांकि एक्शन अच्छे इरादे से लिया गया और अच्छे विश्वास में लागू किया गया लेकिन यह हमेशा के लिए नहीं रह सकता है। उन्होंने यह भी लिखा कि यह दूसरों के प्रति असंवैधानिक भेदभाव है। इसी के साथ चीफ जस्टिस ने लिखा कि ‘छात्र के साथ एक व्यक्ति के रूप में उसके अनुभवों के आधार पर व्यवहार किया जाना चाहिए, नस्ल के आधार पर नहीं।‘

इन लोगों के शैक्षिक अवसरों को बढ़ावा देने वाली प्रैक्टिस को झटका!

रिपोर्ट के मुताबिकए कोर्ट के फैसले से दशकों पुरानी उस प्रैक्टिस को बड़ा झटका लगाए जिसने अफ्रीकी.अमेरिकियों और अन्य अल्पसंख्यकों के लिए शैक्षिक अवसरों को बढ़ावा दिया है। एएफपी की रिपोर्ट में कहा गया कि महिला के गर्भपात के अधिकार की गारंटी को पलटने के एक साल बाद कोर्ट ने रूढ़िवादी बहुमत ने 1960 से चली आ रहीं उदार नीतियों को समाप्त करने के लिए फिर से अपनी तत्परता दिखाई है। 

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