Sunday, February 16, 2025
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Explainer: भारत और तालिबान के बीच दोस्ती से राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर क्या हो सकते हैं नफा-नुकसान?

अफगानिस्तान में तालिबानियों के सत्ता में आने के बाद से ही नई दिल्ली और काबुल के बीच संबंध पूरी तरह से बिगड़ चुके थे। मगर पिछले दिनों दुबई में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से हुई मुलाकात ने दोनों देशों के बीच संबंधों को फिर से नई पटरी पर लाने की कवायद शुरू कर दी।

Written By: Dharmendra Kumar Mishra @dharmendramedia
Published : Jan 19, 2025 14:26 IST, Updated : Jan 19, 2025 14:27 IST
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री की दुबई में तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी स
Image Source : ANI भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री की दुबई में तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात करते हुए।

Explainer: पिछले दिनों भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री की दुबई में तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से हुई मुलाकात ने एक नई चर्चा को जन्म दे दिया है। कई देश यह सोचकर हैरान हैं कि जिस भारत ने तालिबान से हमेशा दूरी बनाए रखी, उसने अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता के 3 साल से अधिक गुजर जाने के बाद से अचानक से संबंध सुधारने की दिशा में कदम बढ़ाने क्यों शुरू कर दिए। भारत को इससे राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर क्या-क्या नफा-नुकसान हो सकते हैं? भारत और तालिबान के बीच हुई इस पहली उच्च स्तरीय वार्ता पर विदेशों में भी पैनी नजर रखी जा रही है। खासकर पाकिस्तान, चीन और अमेरिका इसे लेकर सबसे ज्यादा सतर्क है।

बता दें कि भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते कई दशकों से गर्मजोशी भरे रहे हैं। हालांकि इसमें अफगानिस्तान की परिस्थितियों में बदलाव के चलते उतार-चढ़ाव भी आते रहे हैं। भारत ने अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता आने से पहले 500 से अधिक विभिन्न योजनाओं में 3 अरब डॉलर से भी ज्यादा का निवेश कर रखा था। मगर तालिबानियों के सत्ता में आने के बाद से भारत ने अपने संबंध पूरी तरह से खत्म कर लिए थे। अफगानिस्तान के तालिबानी शासन को अभी तक किसी भी देश ने मान्यता नहीं दी है, लेकिन करीब 3 दर्जन देशों ने उससे अपने राजनीतिक और कूटनीतिक संबंधों को बनाए रखा है। मगर भारत अब तक राजनीतिक और कूटनीतिक संबंधों से भी दूर रहा था।

अचानक भारत ने तालिबान के आगे क्यों बढ़ाया दोस्ती का हाथ

विशेषज्ञों के अनुसार अफगानिस्तान में तालिबानियों के सत्ता में आने के बाद अचानक आ रहे भू-राजनीतिक बदलाव और परिस्थितियों को देखते हुए भारत ने संभवतः यह कदम उठाया है। तालिबानियों की सत्ता से पहले अफगानिस्तान और भारत के मजबूत संबंध रहे, लेकिन उसके बात चीन और पाकिस्तान ने तालिबान से दोस्ती बढ़ानी शुरू कर दी थी। यह भारत के लिए एक तरह से रणनीतिक रूप से झटका था। मगर पिछले दिनों तालिबान और अफगानिस्तान में ठन गई तो भारत ने काबुल में फिर से कूटनीतिक बढ़त बनाने के इरादे से मैदान में कूद गया। यह देखकर अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाने में जुटा चीन भी चकरा गया है। दुबई में भारत और तालिबान शासन के बीच हुई वार्ता के बाद तालिबान नई दिल्ली के साथ रानजीतिक और व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने की इच्छा जाहिर की है। वहीं भारत ईरान के चाबहार पोर्ट के जरिये व्यापार को बढ़ाने पर फोकस किया है। ईरान का चाबहार पोर्ट भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। 

भारत को क्या हो सकता है नफा-नुकसान

भारत ने तालिबान की तरफ ऐसे वक्त में दोस्ती का हाथ बढ़ाया है, जिससे अफगानिस्तानी शासन को स्वीकारोक्ति का दबाव अन्य देशों पर भी पड़ सकता है। यह तालिबान के लिए अच्छा होगा। इसलिए तालिबान भी भारत से दोस्ती को गहरा करना चाहता है। भारत ने तालिबान से साफ कहा है कि उसके साथ संबंध तभी फिर से बहाल होंगे, जब वह वादा करके कि अपनी धरती का इस्तेमाल किसी तरह की आतंकी गतिविधियों के लिए नहीं होने देगा। तालिबान ने इस पर सहमति जताई है। अफगानिस्तान में भारत की मौजूदगी बढ़ने से उसे राजनीतिक और कूटनीतिक बढ़त हासिल होगी। खासकर चीन और पाकिस्तान के खिलाफ भारत रणनीतिक रूप से इस क्षेत्र में बढ़त हासिल कर लेगा।

मगर तालिबान से दोस्ती बढ़ाने से दूसरी ओर भारत की उस छवि पर विपरीत असर पड़ सकता है, जो उसका आतंकवाद विरोधी रवैया रहा है। तालिबान को भारत समेत दुनिया के तमाम देश आतंकियों के तौर पर देखते रहे हैं। भारत खुद एक समय में तालिबान का दुनिया में सबसे बड़ा विरोधी रहा है। यहां तक कि भारत ने तालिबानी शासन को मान्यता देने की बात सोचने वाले देशों को भी चेतावनी दे दी थी। इस वजह से आज तक कोई देश खुलकर तालिबानी शासन को मान्यता नहीं दे सका। मगर भारत और तालिबान के बीच हुई यह बातचीत एक तरह से उसको भारत की ओर से मान्यता देने जैसा ही है। 

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