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Explainer: मुर्दा को ऐसे जिंदा रखते हैं, बच्चों को पेड़ में चुनवा देते हैं...विचित्र परंपरा सुन हो जाएंगे हैरान

इंडोनेशिया की टोराजा जनजाति की अनोखी परंपरा के बारे में जानकर आप हैरान होंगे। इस जनजाति में व्यस्कों की मौत के बाद उन्हें घर में ही रखा जाता है, जैसे वो जीवित हों, वहीं बच्चों की मौत के बाद पेड़ों में उन्हें दफनाया जाता है। जानें इस अनोखी परंपरा के बारे में...

Written By: Kajal Kumari @lallkajal
Published : Oct 14, 2025 09:46 am IST, Updated : Oct 14, 2025 02:06 pm IST
इंडोनेशिया की टोराजा जनजाति- India TV Hindi
Image Source : WIKIPEDIA इंडोनेशिया की टोराजा जनजाति

Explainer: इंडोनेशिया की टोराजा जनजाति में मौत के बाद व्यस्कों और बच्चों को दफनाने की अनोखी परंपरा रही है। यहां मौत के बाद उस शव को जीवित इंसान की तरह ट्रीट किया जाता है। रोजाना शव के लिए खाना-पानी, कपड़े, साफ-सफाई, यहां तक कि सिगरेट वगैरह का इंतजाम भी किया जाता है। आपसी बातचीत में भी उसके लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है, मानो वे जिंदा हों। मौत के बाद दूसरों को कहा जाता है कि फलां सदस्य बस बीमार है। परिवार के सदस्य की डेडबॉडी को घर के एक कमरे में ताबूत में लिटाकर रखा जाता है और उसे जीवित इंसान की तरह ही ट्रीट किया जाता है।

शवों को घर में रखने का अनोखा रिवाज

दरअसल, इंडोनेशिया के दक्षिणी सुलावेसी द्वीप पर रहने वाली टोराजा जनजाति में यह एक आम रिवाज है। इस समुदाय के लोग शव को दफनाए जाने से पहले काफी समय तक उसे घर में ही रखते हैं। इसकी खास वजह ये है कि इस समुदाय  में अंतिम संस्कार बहुत खर्चीला होता है। संस्कार में कई पशुओं की बलि देकर पूरे समाज को खिलाना-पिलाना होता है। इस तरह अंतिम संस्कार कई दिनों तक चलता है। इसमें काफी खर्च होता है और इसके लिए काफी पैसे की जरूरत होती है। इसीलिए किसी की मौत के बाद जब तक उसके अंतिम संस्कार के लिए पैसे नहीं जुट जाते, परिवार मृत सदस्य को अपने साथ ही वैसे ही रखता है, जैसे वह जीवित हो।

दफनाने के बाद भी शव को खोदकर निकालते हैं

शव खराब ना हो, इसके लिए मुर्दे के भीतर इंजेक्शन से फार्मेलिन रसायन डाला जाता है, ताकि वह सड़े नहीं। डेडबॉडी को ताबूत में लिटाकर उसके लिए बाकायदा खाना, नाश्ता, पानी आदि का इंतजाम होता है। रोज शव के कपड़े बदले जाते हैं और रात को ढीले कपड़े पहनाए जाते हैं। परिवार के सदस्य मृतक के शव से ऐसा व्यवहार और बातचीत करते हैं जैसे वह जिंदा हो।  अंतिम संस्कार कर देने के बाद भी मृतक का परिवार अक्सर शवों को खोदकर निकालते हैं, उन्हें कपड़े उतारते हैं, साफ़ करते हैं, और उन्हें नए और ताज़ा कपड़े पहनाते हैं, फिर उन्हें बच्चों या नए सदस्यों से मिलवाते हैं।

टोराजा जनजाति की अनोखी परंपरा

Image Source : WIKIPEDIA
टोराजा जनजाति की अनोखी परंपरा

 
शव को दफनाने के बाद भी साल में एक बार कब्र से शव को निकालकर बाकायदा नहलाया-धुलाया जाता है और बाल संवारकर नए कपड़े पहनाए जाते हैं। स्थानीय भाषा में इस रिवाज को माएने कहा जाता है, जिसका मतलब होता है, शवों को साफ करने का समारोह। इस दौरान बुजुर्गों ही नहीं, बच्चों के शवों को भी बाहर निकाला जाता है। शवों को कब्रों से निकालकर वहां ले जाया जाता है, जहां व्यक्ति की मौत हुई थी। फिर उसे गांव लाया जाता है। गांव तक लाने के दौरान सीधी रेखा में चला जाता है। इस दौरान मुड़ना या घूमना वर्जित होता है।  
 

क्यों है ऐसा रिवाज

टोराजा लोग जहां डेड बॉडीज को जमीन के भीतर दफनाने के बजाय ताबूत में रखकर गुफाओं में रखते हैं। वहीं इस समुदाय के अमीर लोग अपने परिजनों के लकड़ी के पुतले बनवाकर भी रखते हैं,  ताकि उन्हें युवा पीढ़ी से दोबारा मिलवाया जा सके। इसे मानेने अनुष्ठान कहा जाता है। यह अनोखी परंपरा इस विश्वास पर आधारित है कि मृत्यु एक महान यात्रा का एक और हिस्सा है। इस समुदाय में अंतिम संस्कार एक उत्सव होता है, जबकि दुनिया के बाकी हिस्सों में इसे विभिन्न संस्कृतियों के लोग शोक मनाकर व्यक्त करते हैं। यदि किसी पुरुष या महिला की मृत्यु उनके साथी के जीवित रहते हुए हो जाती है, तो वे शव को तब तक सुरक्षित रखते हैं जब तक कि उनका जीवनसाथी उनके साथ परलोक यात्रा या पूया में शामिल न हो जाए।

बच्चों की मौत के बाद शवों के साथ करते थे ऐसा

टोराजा कबीला परिवार में बच्चों की मौत के बाद ना तो परिवार उसे ना जलाता है, ना दफनाता है, बल्कि मरे बच्चों को जीवित पेड़ के तने में ही चुनवा दिया जाता है। ये प्रथा, जिसे ‘पासिलिरान’ या ‘बेबी ट्री बुरियल’ कहते हैं। कहा जाता है कि सरकारी नियमों के कारण आखिरी बार ये परंपरा 50 साल पहले निभाई गई थी। यहां नवजात शिशुओं या छोटे बच्चों के शवों को जीवित पेड़ों के खोखले तनों में रखा जाता था। इस प्रथा को "बेबी ट्री दफन" कहा जाता था, जिसके पीछे यह मान्यता थी कि बच्चा प्रकृति में समा जाएगा और पेड़ के साथ मिलकर जीवित रहेगा।  

बेबी ट्री

Image Source : WIKIPEDIA
बेबी ट्री

इसके लिए बच्चों के शव को कपड़े में लपेटा जाता था और फिर पेड़ के तने में बनाए गए छेद में रखा जाता था। इसके बाद, पेड़ का फाइबर या ताड़ के रेशों से उस छेद को सील कर दिया जाता था। यह माना जाता था कि ऐसा करने से बच्चा प्रकृति की गोद में समा जाता है, और बच्चे की आत्मा पेड़ के रूप में हमेशा के लिए परिवार के पास रहती है। हालांकि यह प्रथा अब दुर्लभ हो गई है और आधुनिकता और सरकारी नियमों के कारण लगभग समाप्त हो चुकी है। यह परंपरा दक्षिण सुलावेसी प्रांत के तना तोराजा में स्थित कम्बिरा जैसे गांवों में देखी जाती थी।

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