Saturday, May 18, 2024
Advertisement

आजाद भारत का पहला भाषण देने से पहले रोये थे नेहरू, लाहौर से आया था फोन

14 अगस्त 1947, भारत टुकड़ों में बंट चुका था। मोहम्मद अली जिन्नाह की जिद्द ने हिंदुस्तान के मुकद्दर में ऐसा जख्म लिख दिया था, जिससे आज भी रह-रहकर दर्द रिसता रहता है।

Reported by: Lakshya Rana @LakshyaRana6
Published on: August 14, 2021 23:13 IST

नई दिल्ली: 14 अगस्त 1947, भारत टुकड़ों में बंट चुका था। मोहम्मद अली जिन्नाह की जिद्द ने हिंदुस्तान के मुकद्दर में ऐसा जख्म लिख दिया था, जिससे आज भी रह-रहकर दर्द रिसता रहता है। पंजाब और बंगाल, जल रहे थे। लाशों की गिनती मुश्किल थी, लहू में डूबी तलवारों की प्यास बढ़ती जा रही थी और मजलूमों की चीखों की गूंज ने दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू को हिला दिया था।

फोन की घंटी बजी

उस रात नेहरू....इंदिरा गांधी, फिरोज गांधी और पद्मजा नायडू के साथ खाने की मेज पर बैठे ही थी कि फोन की घंटी बजी। नेहरू ने फोन उठाया, फोन पर दूसरी ओर मौजूद शख्स से बात की और फोन रख दिया। अब तक उनके चेहरे का रंग उड़ चुका था। नेहरू ने अपने चेहरे को अपने हाथों से ठक लिया और जब चेहरे से हाथ हटाए तो उनकी आंखें आंसुओं से भर चुकी थीं। क्योंकि, वो फोन लाहौर से आया था।

लाहौर में मार-काट मची थी

लाहौर के नए प्रशासन ने हिंदू और सिख इलाकों का पानी बंद कर दिया था। लोग प्यास से पागल हो रहे थे। जो भी पानी के लिए घरों से निकता, उन्हें चुन-चुनकर मारा जा रहा था। लाहौर की गलियों में हिंसा की आग लगी हुई थी। लोग तलवारें लिए रेलवे स्टेशन पर घूम रहे थे ताकि वहां से भागने वाले सिखों और हिंदुओं को मारा जा सके। ये जानकर नेहरू टूट से गए थे। 

इंदिरा ने बढ़ाई हिम्मत!

नेहरू ने कमजोर से शब्दों में कहा, ‘मैं आज देश को कैसे संबोधित कर पाऊंगा, जब मुझे पता हैं मेरा लाहौर जल रहा है।’ जब नेहरू ये सब कह रहे थे, तब इंदिरा वहीं उनकी पास खड़ी थीं, उन्होंने अपने पिता को संभाला और भाषण पर ध्यान देने के लिए। फिर, ठीक 11 बजकर 55 मिनट पर संसद के सेंट्रल हॉल में नेहरू की आवाज गूंजी।

20वीं सदी के सबसे जोरदार भाषण!

नेहरू के इस भाषण को 20वीं सदी के सबसे जोरदार भाषणों में माना गया है। पूरी दुनिया इस भाषण की गवाह बनी। दिल्ली में भी लाखों लोग जमा थे। मूसलाधार बारिश हो रही थी और संसद में नेहरू ऐलान कर रहे थे- ‘आधी रात को जब पूरी दुनिया सो रही है, भारत जीवन और स्वतंत्रता की नई सुबह के साथ उठेगा।’ उनके इस भाषण को नाम दिया गया 'A Tryst with Destiny'.

महात्मा गांधी ने नहीं सुना 

नेहरू जब भाषण दे रहे थे, तब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दिल्ली में नहीं थे। गांधी बंगाल के नोआखली में अनशन पर बैठे थे। सरदार पटेल और नेहरू के बुलाने पर भी वह दिल्ली नहीं आए थे। यहां तक की गांधी ने नेहरू का भाषण भी नहीं सुना था। वह उनके भाषण से पहले ही करीब 9 बजे सोने के लिए चले गए थे।

रात ठीक 12 बजे...

जैसे ही घड़ी के दोनों कांटे 12 पर पहुंचे, शंख बजने लगे। वहां मौजूद लोगों की आंखों से आंसू बहने लगे और महात्मा गांधी की जय के नारों से संसद का संट्रल हॉल गूंज उठा। संसद के बाहर इकट्ठा हुए हजारों भारतीयों की खुशी का भी ठिकाना न रहा। एक दूसरे से अंजान लोग भी एक दूसरे को खुशी से गले लगा रहे थे और आंखों से बिना इजाजत ही आंसू बहे जा रहे थे।

माउंटबेटन से मिलने पहुंचे नेहरू

आधी रात के बाद जवाहर लाल नेहरू और राजेंद्र प्रसाद, लोर्ड माउंटबेटन से मिलने पहुंचे। उन्होंने माउंटबेटन को भारत का पहला गर्वनर जनरल बनने का औपचारिक न्योता दिया। माउंटबेटन ने न्योता स्वीकार किया और अपने मेहमानों को पोट वाइन ऑफर की। माउंटबेटन ने तीन ग्लास भरे। दो ग्लास मेहमानों को देकर उन्होंने अपना गिलास उठाया और हाथ हवा में ऊंचा करके कहा- टू इंटिया।

खाली लिफाफा...

नेहरू ने माउंटबेटन को इसी मुलाकात के दौरान एक लिफाफा दिया और कहा कि इसमें कल शपथ लेने वाले मंत्रियों की लिस्ट है। इसके बाद नेहरू और राजेंद्र प्रसाद चले गए। अब माउंटबेटन ने नेहरू का दिया लिफाफा खोलकर देखा, तो उनकी हंसी निकल गई। क्योंकि, लिफाफे में कुछ नहीं था, वह एकदम खाली था। जल्दबाजी में नेहरू उसमें मंत्रियों के नाम की लिस्ट रखनी ही भूल गए थे।

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement