Friday, April 26, 2024
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भूख से जंग: रोजाना 19 लाख बच्चों को खाना खिला रही है एक संस्था

एक ऐसा देश, जहां विश्व में कुपोषित बच्चों की सबसे अधिक संख्या निवास करती है, वहां वक्त की जरूरत छोटे-छोटे कदम उठाने की नहीं, बल्कि बड़ी-बड़ी छलांग लगाने की है।

IANS Written by: IANS
Updated on: December 24, 2018 10:00 IST
प्रतीकात्मक तस्वीर- India TV Hindi
Image Source : PTI प्रतीकात्मक तस्वीर

जयपुर: एक ऐसा देश, जहां विश्व में कुपोषित बच्चों की सबसे अधिक संख्या निवास करती है, वहां वक्त की जरूरत छोटे-छोटे कदम उठाने की नहीं, बल्कि बड़ी-बड़ी छलांग लगाने की है। और, बड़ी छलांगें भी ठीक ऐसी, जैसे कि बेंगलुरू के NGO द्वारा 2020 तक राष्ट्र के स्कूलों में प्रतिदिन 50 लाख बच्चों का पेट भरने का रखा गया लक्ष्य। अक्षय पात्र फाउंडेशन के प्रबंधन को लगता है कि केवल इस तरह के बड़े कदम ही फर्क ला सकते हैं। फाउंडेशन का दावा है कि वो बच्चों की भूख मिटाने और शिक्षा के समर्थन में विश्व के सबसे बड़े स्कूल आहार कार्यक्रम को चलाता है।

इस फाउंडेशन के लिए 50 लाख स्कूली बच्चों को खाना खिलाना कोई लंबी दूरी का सपना नहीं है, बल्कि एक साध्य चुनौती है, क्योंकि वो प्रतिदिन 19 लाख बच्चों को पहले से ही खाना खिला रहा है। अक्षय पात्र फाउंडेशन की राजस्थान इकाई के अध्यक्ष रतनगड गोविंद दास का कहना है कि भारत के 12 राज्यों में 40 से ज्यादा रसोईघरों में विभिन्न जातियों और पंथों के करीब सात हजार लोग साथ मिलकर बच्चों को गर्म पकाया हुआ खाना परोसते हैं। हर एक रसोईघर में एक लाख बच्चों के लिए खाना बनाने की क्षमता है।

ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2018 के मुताबिक, वैश्विक भूख सूचकांक की 119 देशों की सूची में भारत का स्थान 103 नंबर पर है, जो कि 4.6 करोड़ से ज्यादा कुपोषित बच्चों का घर है। वैश्विक भूख सूचकांक 2018 की रिपोर्ट कहती है कि पांच साल की उम्र के कम से कम पांच भारतीय बच्चों में से एक कमजोर है (लंबाई के अनुरूप बहुत ही कम वजन), जो कि विकट अल्पपोषण को दर्शाता है। कमजोर बच्चों की उच्च दर वाला एकमात्र देश युद्धग्रस्त दक्षिण सूडान है।

दास का कहना है कि फाउंडेशन एक अकेले मकसद के साथ एक छत के नीचे सभी जातियों और धर्मो के लोगों को काम करने के लिए भर्ती करता है। संस्थान का मकसद ये सुनिश्चित करना है कि भारत में कोई भी बच्चा भूख के कारण शिक्षा से वंचित न रहे। राजस्थान में अक्षय पात्र रसोईघर में बीते पांच साल से काम कर रहे मुकेश माली का कहना है, "हम सुनिश्चित करते हैं कि हमारी रसोइयों में स्वच्छता और सफाई के मानकों का पालन किया जाए। मैं और मेरे अन्य सहकर्मी खाना बनाना पसंद करते हैं, क्योंकि ये एक तरह की संतुष्टि देता है कि हम बहुत से बच्चों की भूख को शांत कर रहे हैं। जयपुर के इस रसोईघर से खाना दूर-दराज की जगहों पर जाता है।"

अक्षय पात्र फाउंडेशन की रसोइयों में बने खाने को प्रसाद भी कहा जाता है। इसका कारण बताते हुए दास ने कहा कि खाना बनाए जाने के बाद सबसे पहले इसे भगवान को समर्पित किया जाता है और उसके बाद इसे स्कूलों में पहुंचाया जाता है। अजमेर के टीकमचंद स्कूल के प्रशासनिक प्रमुख बी.डी. कुमावत का कहना है कि स्कूल में आने वाले अधिकतर छात्र पास की कच्ची बस्ती से आते हैं। इस स्कूल में फाउंडेशन से ही खाना आता है।

उन्होंने कहा, "वे काफी गरीब पृष्ठभूमि से आते हैं और इसलिए ये खाना यहां उन्हें एक आशीर्वाद के रूप में परोसा जाता है। खाने की गुणवत्ता और स्वाद अच्छा होता है। इसलिए वे स्कूल आना पसंद करते हैं। मजेदार बात ये है कि खाने के वितरण के बाद स्कूल की हाजिरी में वृद्धि हुई है।"

बेंगलुरू में साल 2000 में शुरू हुई फाउंडेशन की मध्यान्ह भोजन योजना भारत के स्कूलों में खाना परोसे वाली सबसे बड़ी योजना है। राजस्थान में अपने 11 रसोईघरों से अकेले ही ये फाउंडेशन दो लाख से ज्यादा बच्चों का पेट भरती है। दास ने कहा, "संगठन 2020 तक प्रत्येक दिन 50 लाख बच्चों को खाना खिलाने के अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर है।"

दास का कहना है कि लाभार्थी छात्रों के परिजन भी इस कार्यक्रम से काफी खुश हैं। उन्होंने कहा, "जैसा कि हम वंचित बच्चों को खाना खिलाने पर मुख्य रूप से काम कर रहे हैं, उनके परिजन राहत महसूस कर रहे हैं कि उनके बच्चों को कम से कम दिन में एक बार तो पोषण युक्त खाना मिल रहा है, जिसके लिए उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है।"

अक्षय पात्र की क्षेत्रीय गुणवत्ता प्रमुख दिव्या जैन का कहना है कि फाउंडेशन सुनिश्चित करता है कि भोजन छात्रों की आहार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करता है। उन्होंने कहा, "हम खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता में उच्च मानक ISO 22000 का पालन करते हैं। हमारे द्वारा यहां पकाया जाने वाला खाना अच्छे से बनाया जाता है और मेन्यू भी अच्छी तरह से डिजाइन किया गया है। यहां कम से कम हाथों का प्रयोग किया जाता है और इसमें अच्छे पोषण मूल्य होते हैं। स्वाद अच्छा होने के कारण बच्चे इस भोजन को पसंद करते हैं।"

दास का कहना है कि इससे परिजन भी अपने बच्चों को निरंतर स्कूल भेजने और उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। दास ने कहा, "एक सर्वे के मुताबिक जिन सरकारी स्कूलों में मध्यान्ह भोजन परोसा जाता है, उन स्कूलों की हाजिरी में काफी वृद्धि देखी गई है।" उन्होंने कहा, "भूख, कुपोषण, खराब स्वास्थ्य और लैंगिक असमानता शिक्षा प्राप्त करने में बाधा हैं। इस मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम के माध्यम से हमने इन समस्याओं से सामना करने का प्रयास किया है। इसके अलावा, इस कार्यक्रम ने एक मिलनसार माहौल प्रदान किया है, जहां विभिन्न पृष्ठभूमि के बच्चे एक-दूसरे से बातचीत करते हैं और जाति-व्यवस्था की बाधाओं को तोड़ते हैं।"

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