Saturday, April 27, 2024
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प्रतिष्ठित कानूनविदों, पूर्व जजों ने उप राष्ट्रपति द्वारा महाभियोग के नोटिस खारिज करने को बताया सही, बंटे हुए नजर आए वकील

सोराबजी और नरीमन का मानना है कि कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्ष को सफलता मिलने की कोई संभावना नहीं थी क्योंकि प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ लाये गए महाभियोग नोटिस में उठाये गए मुद्दों में ‘ पर्याप्त गंभीरता ’ नहीं थी और उसे खारिज करने का नायडू का ‘ फैसला सही है। ’

Bhasha Edited by: Bhasha
Updated on: April 23, 2018 23:58 IST
राज्यसभा सभापति एम...- India TV Hindi
Image Source : PTI राज्यसभा सभापति एम . वेंकैया नायडू।

नई दिल्ली: सोली सोराबजी और फली नरीमन जैसे प्रसिद्ध विधिवेत्ताओं एवं पूर्व न्यायाधीशों को राज्यसभा सभापति एम . वेंकैया नायडू द्वारा प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ लाये गए महाभियोग नोटिस को खारिज किये जाने के फैसले में कोई त्रुटि नजर नहीं आई लेकिन विभिन्न राजनीतिक दलों से संबद्ध वकीलों ने अपनी पार्टियों के रुख के अनुसार प्रतिक्रिया दी।  सोराबजी और नरीमन का मानना है कि कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्ष को सफलता मिलने की कोई संभावना नहीं थी क्योंकि प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ लाये गए महाभियोग नोटिस में उठाये गए मुद्दों में ‘ पर्याप्त गंभीरता ’ नहीं थी और उसे खारिज करने का नायडू का ‘ फैसला सही है। ’ 

उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पी बी सावंत और दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एस एन ढींगरा की राय भी बिल्कुल ऐसी ही रही। उन्होंने कहा कि नायडू ने यह पाया होगा कि यह कदम राजनीति से प्रेरित होकर उठाया गया है और इसके लिए कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है। नोटिस खारिज किये जाने के फैसले के तुरंत बाद सोराबजी ने कहा कि अगर फैसले को चुनौती देने के लिए विपक्ष शीर्ष न्यायालय जाता है तो भी उन्हें उनकी सफलता के आसार नजर नहीं आते हैं। नरीमन ने कहा कि राज्यसभा के सभापति होने के नाते इस नोटिस पर फैसला करने का सांविधिक अधिकार केवल नायडू के पास था और कानूनविद की राय में भी उनका फैसला सही है। उन्होंने कहा कि महाभियोग नोटिस में पर्याप्त गंभीरता नहीं थी। 

न्यायाधीश सावंत ने कहा कि फैसला ‘ ठीक ’ है क्योंकि नायडू ने निश्चित तौर पर संबंधित लोगों की राय ली होगी। वहीं ढींगरा ने फैसले को ‘ पूरी तरह सही ’ बताया। उन्होंने कहा कि प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ लगाये गए आरोपों को लेकर कोई सबूत नहीं दिया गया है। वरिष्ठ वकील और कांग्रेस सांसद केटीएस तुलसी ने उप राष्ट्रपति के फैसले की आलोचना की और कहा कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की इजाजत नहीं दी जा सकती। भाजपा नेता और वकील अमन सिन्हा ने आरोप लगाया कि महाभियोग प्रस्ताव के जरिए कांग्रेस न्यायपालिका को धमकाना और उच्चतम न्यायालय की ईमानदारी को सवालों के घेरे में लाना चाहती थी। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सभापति का फैसला ‘ असंवैधानिक ’ और ‘ राजनीतिक ’ करार दिया और कहा कि यह प्रधान न्यायाधीश को सुरक्षित करने के लिए हुआ है।  बार काउंसिल ऑफ इंडिया के प्रमुख मनन कुमार मिश्रा ने कहा कि यह बहुत उचित फैसला है और इससे देश के सभी ‘ संवेदनशील लोग ’ खुश हुए हैं। 

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