Saturday, April 27, 2024
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Lockdown: आखिरी वक्त में प्रियजनों की झलक तक को तरस गए हैं लोग

कोरोना वायरस के रूप में देश दुनिया में ऐसी महामारी फैली है कि लोग अंतिम समय में अपने परिजनों को अलविदा तक कहने को तरस गए हैं, अंत्येष्टि तक में शामिल नहीं हो पा रहे हैं

Bhasha Reported by: Bhasha
Published on: April 02, 2020 17:11 IST
आखिरी वक्त में...- India TV Hindi
आखिरी वक्त में प्रियजनों की झलक तक को तरस गए हैं लोग

नई दिल्ली: कोरोना वायरस के रूप में देश दुनिया में ऐसी महामारी फैली है कि लोग अंतिम समय में अपने परिजनों को अलविदा तक कहने को तरस गए हैं, अंत्येष्टि तक में शामिल नहीं हो पा रहे हैं और कई जगह अंतिम संस्कार के लिए जरूरी सामान की भी किल्लत शुरू हो गई है। दरअसल, इस महामारी को फैलने से रोकने के लिये सामाजिक मेलजोल से दूर रहने के बारे में कई दिशानिर्देश जारी किए गए हैं और लोग इनका पालन करने की भी पूरी कोशिश कर रहे हैं। सामाजिक मेलजोल से दूरी का असर अंत्येष्टि पर भी दिख रहा है जहां दोस्त, रिश्तेदार या यहां तक कि पड़ोसी भी दुख की इस घड़ी में पीड़ित परिवार को ढांढस बंधाने के लिये चाह कर भी पास नहीं आ रहे हैं। लोग अंत्येष्टि कार्यक्रम में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये शामिल हो रहे हैं।

वहीं, गांव-देहात में प्रौद्योगिकी से वंचित लोग खुद को अकेला महसूस कर रहे हैं। दिल्ली की पत्रकार रीतिका जैन के 85 वर्षीय दादा जी का 24 मार्च से शुरू हुए 21 दिनों के लॉकडाउन के दौरान गुजरात के पलीताना में निधन हो गया। लेकिन वह उनके अंतिम दर्शन नहीं कर पाई। रीतिका के पिता लॉकडाउन लागू होने से पहले मुंबई से भावनगर के लिए आनन फानन में अंतिम उड़ान से पहुंचे। लेकिन दूर रह रहे परिवार का कोई सदस्य नहीं पहुंच सका और वे लोग जूम मोबाइल ऐप के जरिये अंत्येष्टि कार्यक्रम में शामिल हुए।

रीतिका ने बताया, ‘‘शाम के वक्त पूरा परिवार जूम पर मिला, मेरे दादा जी को अंतिम विदाई दी और एक दूसरे का ढांढस बंधाया।’’ देश में कोरोना वायरस संक्रमण से अब तक 50 मौतें हो चुकी हैं और संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ कर 1,965 पहुंच गई है। अभिनेता संजय सूरी को भी इन्हीं परेशानियों का सामना करना पड़ा जब उनकी पत्नी की दादी मां का निधन हो गया। सूरी ने ट्विटर पर लिखा, ‘‘...जूम के जरिये अंत्येष्टि में शामिल होना बहुत ही अजीब सा था। अजीब वक्त!’’ सरकार ने अंत्येष्टि में शामिल होने वाले लोगों की संख्या सीमित कर 20 या इससे कम निर्धारित कर दी है। वहीं, एक शहर से दूसरे शहर जाने की भी इजाजत नहीं है। इससे, चीजें और जटिल हो गई हैं। इस परिस्थिति में अपनों को खोने के बाद अपनी भावनाओं पर काबू रख पाने में लोगों को बहुत ही मुश्किल हो रही है।

चेन्नई के उपनगर में रहने वाले केसवन (77) को अपनी 94 वर्षीय मां के निधन की सूचना शहर के एक दूर-दराज के कोने में स्थित अपने सहोदर भाई के घर पर मिली। उन्होंने सबसे पहली चिंता यही हुई कि जाएंगे कैसे। उन्होंने पीटीआई भाषा को बताया कि वह पास का इंतजार किए बगैर घर के लिए रवाना हो गए। चेन्नई निवासी के. वीरराघवन ने कहा, ‘‘कोरोना वायरस का प्रकोप इस कदर है कि जो लोग इससे पीड़ित नहीं हैं उन्हें भी इसका असर झेलना पड़ रहा है।’’ वीरराघवन के पिता की हाल ही में मृत्यु हो गई थी। लेकिन अंत्येष्टि में उनके परिवार का कोई सदस्य शामिल नहीं हो सका। हालांकि, भारतीय समाज में अंत्येष्टि हमेशा से ही सामाजिक जुड़ाव के लिये एक महत्वपूर्ण समय रहा है। लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ, जब शवदाह स्थलों या कब्रिस्तानों में लोगों के सीमित संख्या में पहुंचने की इजाजत दी गई हो।

पंजाब के लुधियाना शहर के शमशान घाट (मुक्ति धाम) के संरक्षक राकेश कपूर के मुताबिक वहां जनाजे में पहुंचने वाले लोगों की संख्या 100 से घट कर महज 20 रह गई है। हरियाणा में भी दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन किया जा रहा है। राज्य के गोरखपुर गांव निवासी सुखबीर सिंह के चाचा की हाल ही में मृत्यु हो गई थी। उन्होंने कहा कि परिवार ने सभी दिशानिर्देशों का पालन किया। उन्होंने कहा, ‘‘किसी अपने को खोने के बाद दोस्तों, पड़ोसियों और रिश्तेदारों से इस मुश्किल घड़ी में जो ढांढस मिलता है वह पाबंदियों के चलते इन दिनों नहीं मिल पा रहा है।’’

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