Friday, April 26, 2024
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आईटी एक्ट की रद्द की गई धारा 66ए के इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 'आश्चर्यजनक', केंद्र को जारी किया नोटिस

उच्चतम न्यायालय ने उसके द्वारा 2015 में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कानून की धारा 66ए को निरस्त करने के बावजूद लोगों के खिलाफ इस प्रावधान के तहत अब भी मामले दर्ज किए जाने पर सोमवार को “आश्चर्य’ व्यक्त किया और इसे ‘चौंकाने’ वाला बताया।

IndiaTV Hindi Desk Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: July 05, 2021 17:29 IST
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जारी किया नोटिस- India TV Hindi
Image Source : PTI FILE PHOTO सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जारी किया नोटिस

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने उसके द्वारा 2015 में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कानून की धारा 66ए को निरस्त करने के बावजूद लोगों के खिलाफ इस प्रावधान के तहत अब भी मामले दर्ज किए जाने पर सोमवार को “आश्चर्य’ व्यक्त किया और इसे ‘चौंकाने’ वाला बताया। कानून की उस धारा के तहत अपमानजक संदेश पोस्ट करने पर तीन साल तक की कैद और जुर्माना का प्रावधान था। न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़’ (पीयूसीएल) की ओर से दायर आवेदन पर केंद्र को नोटिस जारी किया। 

पीठ ने पीयूसीएल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारीख से कहा, “क्या आपको नहीं लगता कि यह आश्चर्यजनक और चौंकाने वाला है? श्रेया सिंघल फैसला 2015 का है। यह वाकई चौंकाने वाला है। जो हो रहा है, वह भयानक है।” पारीख ने कहा कि 2019 में अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि सभी राज्य सरकारें 24 मार्च 2015 के फैसले को लेकर पुलिस कर्मियों को संवेदनशील बनायें, बावजूद इसके इस धारा के तहत हजारों मामले दर्ज कर लिए गए। पीठ ने कहा, “हां, हमने वे आंकड़े देखें हैं। चिंता न करें, हम कुछ करेंगे।” 

पारीख ने कहा कि मामले से निपटने के लिए किसी तरह का तरीका होना चाहिए क्योंकि लोगों को परेशानी हो रही है। केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि आईटी अधिनियम का अवलोकन करने पर देखा जा सकता है कि धारा 66ए उसका हिस्सा है और नीचे टिप्पणी है जहां लिखा है कि इस प्रावधान को रद्द कर दिया गया है। वेणुगोपाल ने कहा, “जब पुलिस अधिकारी को मामला दर्ज करना होता है तो वह धारा देखता है और नीचे लिखी टिप्पणी को देखे बिना मामला दर्ज कर लेता। अब हम यह कर सकते हैं कि धारा 66ए के साथ ब्रैकेट लगाकर उसमें लिख दिया जाए कि इस धारा को निरस्त कर दिया गया है। हम नीचे टिप्पणी में फैसले का पूरा उद्धरण लिख सकते हैं।”

न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा,“आप कृपया दो हफ्तों में जवाबी हलफनामा दायर करें। हमने नोटिस जारी किया है। मामले को दो हफ्ते के बाद सूचीबद्ध किया जाए।” शीर्ष अदालत पीयूसीएल के नए आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया है कि 15 फरवरी 2019 के आदेश और उसके अनुपालन के लिए कदम उठाने के बावजूद आवेदक ने पता लगाया है कि आईटी कानून की धारा 66ए के तहत अब भी मामले दर्ज किए जा रहे हैं और न सिर्फ थानों में बल्कि भारत की निचली अदालतों में भी इसके मामले हैं। 

एनजीओ ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि वह केंद्र सरकार को धारा 66 ए के तहत दर्ज मामलों के सभी आंकड़ों एवं प्राथमिकी संबंधी सूचनाएं एकत्रित करने का निर्देश दे। साथ में यह भी निर्देश दे कि वह यह जानकारी भी हासिल करे कि देश में इस धारा के तहत अदालतों में कितने मामले लंबित हैं। पीयूसीएल ने यह भी अनुरोध किया कि शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री (संबंधित उच्च न्यायालयों के जरिए) देश की सभी जिला अदालतों को 2015 के फैसले का संज्ञान लेने के लिए पत्र भेजे ताकि किसी भी व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले किसी भी प्रतिकूल परिणाम का सामना न करना पड़े। 

एनजीओ ने कहा कि केंद्र को सभी थानों के लिए परामर्श जारी करना चाहिए कि वे निरस्त धारा 66ए के तहत मामले दर्ज न करें। सात जनवरी 2019 को पीयूसीएल के आवेदन पर सुनवाई करते हुए, पीठ ने कहा था कि यह चौंकाने वाला है कि 2015 में शीर्ष अदालत द्वारा आईटी अधिनियम की धारा 66 ए को खत्म करने के बाद भी इसके तहत लोगों पर मुकदमा चलाया जा रहा है। पीठ ने केंद्र से जवाब मांगा था और संबंधित अधिकारियों को उसके आदेशों का उल्लंघन करने के लिए जेल भेजने की चेतावनी दी थी। 

शीर्ष अदालत ने 24 मार्च 2015 को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को "प्रमुख" करार दिया था और यह कहते हुए इस प्रावधान को रद्द कर दिया था कि "जनता के जानने का अधिकार सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए से सीधे तौर पर प्रभावित होता है।” महाराष्ट्र के ठाणे जिले के पालघर में सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर दो लड़कियों- शाहीन ढाडा और रिनू श्रीनिवासन को गिरफ्तार किए जाने के बाद अधिनियम की धारा 66ए में संशोधन के लिए कानून की छात्रा श्रेया सिंघल ने पहली बार 2012 में इस मुद्दे पर जनहित याचिका दायर की थी। 

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