Sunday, April 28, 2024
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जब गांधी को मंदिर प्रवेश से किया गया मना, विलायत जाने के कारण रोका

गांधी को 1925 में कन्याकुमारी भगवती अम्मान मन्दिर में प्रवेश की अनुमति देने से मना कर दिया गया था। मन्दिर अधिकारियों ने यह अनुमति इसलिए नहीं दी क्योंकि गांधी इंग्लैंड गये थे। मन्दिर के रिकार्ड से यह बात पता चलती है कि गांधी ने मंदिर के बाहर ही खड़े होकर पूजा-अर्चना की थी।

Bhasha Reported by: Bhasha
Published on: September 30, 2019 16:23 IST
Gandhi- India TV Hindi
Image Source : PTI प्रतिकात्मक तस्वीर

तिरूवनंतपुरम। हिन्दू मन्दिरों में समानता तथा निचली जातियों को मन्दिर में प्रवेश दिलाने के लिए आंदोलन छेड़ चुके राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को स्वयं कन्याकुमारी के एक मन्दिर में प्रवेश देने से मना कर दिया गया था। इसके पीछे उनका धर्म या जाति नहीं वरन् उनका सात समुंदर पार विलायत यात्रा पर जाना था।

गांधी को 1925 में कन्याकुमारी भगवती अम्मान मन्दिर में प्रवेश की अनुमति देने से मना कर दिया गया था। मन्दिर अधिकारियों ने यह अनुमति इसलिए नहीं दी क्योंकि गांधी इंग्लैंड गये थे। मन्दिर के रिकार्ड से यह बात पता चलती है कि गांधी ने मंदिर के बाहर ही खड़े होकर पूजा-अर्चना की थी। उस समय गांधी त्रावणकोर रियासत गये हुए थे तथा इस विख्यात मन्दिर के दर्शन करने गये थे। उन्होंने मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं देने की घटना पर ‘नवजीवन’ में प्रकाशित एक आलेख में अपना क्षोभ प्रकट किया था।

गांधी ने कहा था कि उन्हें मन्दिर की परिक्रमा करने की अनुमति तो गयी किंतु उसके आगे बढ़ने से मंदिर के प्रभारी ने मना कर दिया। ‘‘कन्याकुमारी के दर्शन’’ शीर्षक इस आलेख में उन्होंने कहा, ‘‘वहां भी मेरी प्रसन्नता पर दुख को कोई प्रभाव नहीं पड़ा। मुझे पूरे मंदिर की परिक्रमा करने की अनुमति दे दी गयी किंतु मुझे मंदिर के भीतरी हिस्से में नहीं जाने दिया गया क्योंकि मैं इंग्लैंड गया था।’’

गांधी का यह आलेख 29 मार्च 1929 को प्रकाशित हुआ था। उस समय भारतीय हिन्दू समाज में समुद्र पार करना और विदेश जाना खराब माना जाता था। जो लोग इस मान्यता का उल्लंघन करते थे उन्हें त्रावणकोर के मन्दिरों में प्रवेश नहीं करने दिया जाता था। ऐसे लोग शुद्धिकरण की प्रक्रिया के बाद ही मंदिरों में प्रवेश पा सकते थे।

इससे खिन्न गांधी ने लिखा था, ‘‘इसे कैसे सहन किया जा सकता है? क्या कन्याकुमारी प्रदूषित हो सकती है? क्या इस परंपरा का प्राचीन काल से पालन हो रहा है,’’ उन्होंने इस स्थल के सौन्दर्य और नीरवता का उल्लेख करते हुए कहा कि वह उस स्थल पर भी गये थे जहां स्वामी विवेकानन्द ध्यान किया करते थे।

इस आलेख का प्रारंभ उस स्थल के वर्णन एवं उसके भूगोल से हुआ था और यह इस अपील के साथ समाप्त होता है कि इस तरह की परंपराओं पर विराम लगना चाहिए। इसमें यह याद दिलाया गया है कि ऐसा करना प्रत्येक हिन्दू का दायित्व है। आलेख में कहा गया, ‘‘मेरी अंतरात्मा चीख रही है कि ऐसा नहीं हो सकता। यदि ऐसा किया गया तो यह पापपूर्ण है। जो पापपूर्ण हो उसे नहीं रहना चाहिए अथवा वह अपनी प्राचीनता के कारण प्रशंसा के योग्य बन जाती है।’’

गांधी ने कहा, ‘‘परिणामस्वरूप, इस बात को लेकर मेरा विश्वास और बढ़ गया है कि इस कलंक को हटाने लिए बलशाली प्रयास करना, प्रत्येक हिन्दू का दायित्व है।’’ बहरहाल, बाद में यह तस्वीर अपने आप बदल गयी। त्रावणकोर के दूरदर्शी राजा श्री चित्रा तिरूनाल बलराम वर्मा ने विदेशी यात्रा के नाम पर मंदिर प्रवेश पर लगी रोक को हटा दिया।

मंदिर प्रवेश से गांधी को रोके जाने के आठ साल बाद 1933 में त्रावणकोर के राजा इंग्लैंड, बेल्जियम, जर्मनी, स्विटजरलैंड और इंटली की विस्तारित यात्रा पर गये। चार साल बाद उन्होंने ऐतिहासिक मंदिर प्रवेश उद्घोषणा के अवसर पर हुए समारोह में विशेष अतिथि के रूप में गांधी को बुलाया। इसके बाद उनके राज्य के तहत आने वाले मन्दिरों में तथाकथित निचली जातियों के प्रवेश पर लगी रोक को हटा दिया गया।

महात्मा गांधी 1937 में जब त्रावणकोर आये थे तो उनसे जुड़ी यादें 106 वर्षीय के अय्यपन पिल्लै के स्मृति कोष में अभी तक सुवासित हैं। उस समय वह युवा थे। स्वतंत्रता सेनानी एवं गांधीवादी पिल्लै ने महात्मा गांधी की 150 जन्मवर्ष पर देश भर में हो रहे आयोजनों के बीच पीटीआई भाषा को बताया, ‘‘उस दिन का स्मरण कर मैं आज भी रोमांचित हूं। गांधीजी आये और यहां वर्तमान विश्वविद्यालय स्टेडियम में आयोजित एक सार्वजनिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इसके उपरांत वह समाज के निचले तबके के लोगों के साथ मन्दिर गये।’’ त्रावणकोर रियासत का 1956 में तमिलनाडु में विलय हो गया था। 

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