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जब दो व्यस्क सहमति से शादी करने के लिए हों राजी तो कोई तीसरा दखल नहीं दे सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि जब दो वयस्क परस्पर सहमति से शादी करते हैं, भले ही उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो, तो कोई रिश्तेदार या तीसरा व्यक्ति इसमें न ही दखल दे सकता है और न ही धमकी या उनके साथ हिंसा नहीं कर सकता।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published : March 07, 2018 19:35 IST
Supreme court- India TV Hindi
Supreme court

नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि जब दो वयस्क परस्पर सहमति से शादी करते हैं, भले ही उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो, तो कोई रिश्तेदार या तीसरा व्यक्ति इसमें न ही दखल दे सकता है और न ही धमकी या उनके साथ हिंसा नहीं कर सकता। केन्द्र ने भी शीर्ष अदालत से कहा कि राज्य सरकारों को अंतर- जातीय या अंतर- आस्था विवाह करने के कारण जिंदगी का खतरा महसूस करने वाले ऐसे जोड़ों को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। केन्द्र ने यह भी कहा कि ऐसे दंपति को इस तरह की धमकी के बारे में विवाह अधिकारी को भी जानकारी देनी चाहिए ताकि उन्हें सुरक्षा प्रदान की जा सके। 

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड की पीठ ने कहा किवह गैर सरकारी संगठन शक्ति वाहिनी की याचिका पर विस्तृत फैसला सुनायेगी। इस संस्था ने 2010 में याचिका दायर कर ऐसे जोड़ों को झूठी शान की खातिर उन्हें मारे जाने से बचाने का अनुरोध किया है। पीठ ने कहा, ‘‘जब सहमति देकर दो वयस्क विवाह करते हैं तो कोई भी रिश्तेदार या तीसरा व्यक्ति इसका न तो विरोध कर सकता है और न ही हिंसा कर सकता है अथवा जान से मारने की धमकी दे सकता है।’’ 

शीर्ष अदालत ने यह संकेत दिया कि वह खाप पंचायतों को मान्यता नहीं देगी और कहा कि वह इसे सिर्फ कुछ लोगों का जमावड़ा या एक सामुदायिक समूह कहेगी। चीफ जस्टिस ने कहा, ‘‘ मैं फैसले में इस जाति या गांव पंचायत को खाप नहीं कहूंगा बल्कि इसे व्यक्तियों का समह या सामुदायिक समूह कह सकता हूं। केन्द्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल पिंकी आनंद ने कहा कि रिश्तेदारों या खाप पंचायतों से अपनी जान का खतरा महसूस करने वाले जोड़ों को विवाह पंजीकरण के समय ही विवाह अधिकारी को इसकी सूचना देनी चाहिए ताकि उन्हें आवश्यक संरक्षण प्रदान किया जा सके। राज्य सरकारों को भी ऐसे जोड़ों को पुलिस संरक्षण प्रदान करना चाहिए। इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचन्द्रन ने पीठ से कहा कि उन्होंने इस संबंध में कुछ सुझाव दिये हैं जबकि केन्द्र ने कहा कि उसने न्यायालय के आदेश का अनुपालन करते हुये प्रस्ताव दिये हैं। 

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