1942 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐतिहासिक पड़ाव था। इस आंदोलन ने न सिर्फ ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत की लहर पैदा की, बल्कि भारतीय जनता ने 'समानांतर सरकारें' यानी कि Parallel Governments बनाकर यह दिखा दिया कि वे न केवल विरोध कर सकते हैं, बल्कि खुद शासन चलाने की हिम्मत और काबिलियत भी रखते हैं। ये समानांतर सरकारें बताती हैं कि भारतीय जनता ने आजादी की जंग को कितने जोश और जज्बे से लड़ा। आइए, आज आपको 1942 में बनी 3 प्रमुख समानांतर सरकारों बलिया, तमलुक, और सतारा के बारे में बताते हैं।
उत्तर प्रदेश के बलिया में बनी थी समानांतर सरकार
जब 1942 में महात्मा गांधी ने 'भारत छोड़ो' का नारा दिया, तो बलिया की जनता ने इसे दिल से अपनाया। लोगों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत कर दी और स्थानीय अधिकारियों को खदेड़ दिया। चित्तू पांडेय, जो एक मशहूर स्वतंत्रता सेनानी थे, ने बलिया में 'राष्ट्रीय सरकार' की स्थापना की, जिसे लोग 'बलिया रियासत' कहते थे। इस दौरान जेल से कैदियों को रिहा कराया गया, साथ ही ब्रिटिश कलेक्टर और अन्य अधिकारी भाग खड़े हुए। कुछ दिनों तक बलिया में पूरी तरह स्वराज (खुद का शासन) कायम रहा।
लेकिन ब्रिटिश सेना ने जल्द ही भारी दमन शुरू किया, बलिया पर फिर से कब्जा कर लिया, और चित्तू पांडेय को गिरफ्तार कर लिया। बलिया की यह घटना दिखाती है कि भारतीय जनता सिर्फ नारे लगाने या प्रदर्शन करने तक सीमित नहीं थी। वे शासन की बागडोर अपने हाथ में लेने को तैयार थे। यह छोटा सा प्रयास आज़ादी की जंग में एक बड़ा प्रतीक बन गया।
1942 में बंगाल में बनी थी 'तमलुक राष्ट्रीय सरकार'
मिदनापुर जिले के तमलुक में 17 अगस्त 1942 से 1944 तक सत्येन बोस, अतुल्य घोष, सुशील धारा और अर्जुन घोष के नेतृत्व में "तमलुक राष्ट्रीय सरकार" (Tamralipta Jatiya Sarkar) स्थापित की गई थी। इस सरकार ने ब्रिटिश शासन को पूरी तरह नकारते हुए एक संगठित और व्यवस्थित स्वशासन का उदाहरण पेश किया। उन्होंने ब्रिटिश पुलिस की जगह अपनी स्वयं की रक्षा व्यवस्था (Volunteer Force) बनाई, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सेवाओं की शुरुआत की, और अपनी न्यायपालिका स्थापित की जहां स्थानीय लोग आपसी विवादों का समाधान करते थे।

तमलुक के क्रांतिकारियों ने एक गुप्तचर नेटवर्क भी बनाया गया जो ब्रिटिश हुकूमत की गतिविधियों पर नजर रखता था। यह सरकार लगभग 2 वर्षों तक सफलतापूर्वक चली और भारत छोड़ो आंदोलन की सबसे लंबी और संगठित समानांतर सरकार बनी। अंततः 8 अगस्त 1944 को महात्मा गांधी के आग्रह पर इस सरकार को भंग कर दिया गया।
नाना पाटिल ने सतारा में बनाई थी समानांतर सरकार
महाराष्ट्र के सतारा में 1942 में नाना पाटिल के नेतृत्व में एक गुप्त समानांतर सरकार बनाई गई, जिसे 'प्रतिष्ठान सरकार' कहा जाता था। यह सरकार ब्रिटिश शासन के खिलाफ चुपके से काम करती थी और एक प्रकार की 'शैडो गवर्नमेंट' थी। नाना पाटिल, जिन्हें लोग क्रांतिकारी और नायक मानते थे, इस सरकार के प्रमुख नेता थे। इसने ब्रिटिश कानूनों का पूरी तरह बहिष्कार किया, अपने स्तर पर कर संग्रह शुरू किया, स्थानीय न्याय और सुरक्षा व्यवस्था कायम की, साथ ही गरीबों की मदद और भूमि सुधार जैसे सामाजिक कार्य भी किए।
नाना पाटिल के नेतृत्व में यह गुप्त सरकार लगभग दो साल तक चली और ब्रिटिशों के लिए सिरदर्द बनी रही। बाद में नाना पाटिल को उनके साहस और नेतृत्व के लिए स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सम्मानित किया गया और वह लोकसभा सांसद भी बने।
समानांतर सरकारों का क्या हुआ असर?
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, बलिया, तमलुक और सतारा में स्थापित समानांतर सरकारें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया कलेवर दिया। इसके अलावा आजमगढ़ के तरवां में भी 1942 में कुछ दिनों तक एक समानांतर सरकार चली थी। इन सरकारों ने दिखाया कि भारतीय जनता न केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ सकती थी, बल्कि अपने दम पर शासन भी चला सकती थी। बलिया की रियासत, तमलुक की राष्ट्रीय सरकार और सतारा की प्रतिष्ठान सरकार ने जनता की हिम्मत और एकजुटता को उजागर किया। इनके जरिए गरीबों की मदद, शिक्षा और न्याय जैसे काम हुए, जो आजादी के बाद के भारत के लिए प्रेरणा बने। ये सरकारें स्वशासन की क्षमता का प्रतीक थीं जिन्होंने अंग्रेजों की हर गलत थ्योरी को ध्वस्त किया।



