Monday, April 29, 2024
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CAA को लेकर बवाल तो सबने देखा और सुना होगा, पर आप कितना जानते हैं 'भारतीय नागरिकता कानून' के बारे में?

भारत का संविधान पूरे देश के लिए एकमात्र नागरिकता उपलब्ध कराता है। नागरिकता से संबंधित प्रावधानों को भारत के संविधान द्वितीय भाग के अनुच्छेद 5 से 11 में दिया गया है।

Shashi Rai Written By: Shashi Rai @km_shashi
Updated on: December 06, 2022 11:14 IST
सांकेतिक तस्वीर- India TV Hindi
Image Source : PTI फाइल फोटो सांकेतिक तस्वीर

घुसपैठियों को देश से बाहर करने की दिशा में सबसे पहले असम में एनआरसी (NRC) यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस पर काम हुआ। लेकिन इसको लेकर यह विवाद हुआ कि बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को भी नागरिकता की लिस्ट से बाहर रखा गया है जो देश के असल निवासी हैं। तब ऐसे लोगों के समाधान के लिए सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून, 2019 बनाया है, जिसको लेकर देशभर में विरोध हो रहा है। विरोध करने वालों का कहना है कि इसमें संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो 'समानता के अधिकार' की बात करता है। 

क्या है समानता का अधिकार?

भारत उन देशों में शामिल है जो स्पष्ट रूप से अपने नागरिकों और भारत में रह रहे किसी व्यक्ति के सामान्य मानव अधिकार को मौलिक अधिकार का दर्जा देता है। यानी ऐसे अधिकार जिन्हें किसी नागरिक से छीना नहीं जा सकता है। मौलिक अधिकारों में सबसे पहले आता है- 'समानता का अधिकार'। अनुच्छेद 14 से लेकर 18 तक इस अधिकार का जिक्र है। इसके मुताबिक हर व्यक्ति कानून की नजर में बराबर है। किसी को विशेष दर्जा हासिल नहीं है। 

भारतीय नागरिकता कानून क्या है? 

भारत का संविधान पूरे देश के लिए एकमात्र नागरिकता उपलब्ध कराता है। नागरिकता से संबंधित प्रावधानों को भारत के संविधान द्वितीय भाग के अनुच्छेद 5 से 11 में दिया गया है। 

26 जनवरी 1950 और 1 जुलाई 1987 के बीच भारत में पैदा हुए सभी व्यक्तियों को अपने माता-पिता की राष्ट्रीयता की परवाह किए बिना जन्म से नागरिकता प्राप्त हुई। वहीं 1 जुलाई 1987 और 3 दिसंबर 2004 के बीच जन्म से नागरिकता दी जाती थी। 

अब कानून के तहत 4 दिसंबर, 2004 को या उसके बाद पैदा हुए लोगों के लिए अपने स्वयं के जन्म के अलावा, माता-पिता दोनों भारतीय नागरिक होने चाहिए या माता-पिता में से एक को भारतीय नागरिक होना चाहिए और दूसरा अवैध प्रवासी नहीं होना चाहिए। 

साल 2015 का संशोधन

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2015 के मूल अधिनियम में प्रवासी भारतीय नागरिक (OCI) से संबंधित प्रावधानों को संशोधित किया है। इसने भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO) कार्ड योजना और OCI कार्ड योजना को मिलाकर 'ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया कार्डधारक' नामक एक नई योजना शुरू की है। 

साल 2019 का संशोधन

नागरिक संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत भारत के तीन मुस्लिम पड़ोसी देश- पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिम प्रवासी इनमें भी 6 समुदाय- हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी को भारत की नागरिकता देने के नियम को आसान बनाया गया है। इससे पहले भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए किसी भी व्यक्ति को कम से कम 11 साल तक भारत में रहना जरूरी था। नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के तहत इस नियम को आसान बनाया गया है और नागरिकता हासिल करने की अवधि को 1 से 6 साल किया गया है। यह कानून उन लोगों पर लागू होगा जो 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आए थे। इस कानून के तहत भारत की नागरिकता हासिल करने लिए प्रवासियों को आवेदन करना होगा। 

भारत के संविधान की शुरुआत में नागरिकता

भारत का संविधान 26 जनवरी 1949 को स्वीकार किया गया था। उस दिन भारत में जो भी लोग रह रहे थे, वे सभी स्वत: भारत के नागरिक हो गए। वहीं भारत के विभाजन के कारण जो भाग पाकिस्तान में चले गए थे, उन भागों से आने वाले शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने के लिए भी संविधान में व्यवस्था की गई थी। 

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