नई दिल्ली/बीजिंग: दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं, भारत और चीन के बीच रिश्ते अब नई दिशा में बढ़ रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीतियों ने इन दोनों पड़ोसी देशों को एक-दूसरे के करीब लाने में अहम भूमिका निभाई है। खास तौर पर व्यापार और आर्थिक सहयोग को लेकर दोनों देशों में नई उम्मीदें जागी हैं, जो पिछले कुछ सालों में तनावपूर्ण रहे रिश्तों के बाद एक बड़ा बदलाव है।
चीन की तरफ से दोस्ती का पैगाम
इस साल मार्च में जब ट्रंप ने चीन के खिलाफ व्यापारिक तनाव बढ़ाया, बीजिंग ने भारत के साथ आर्थिक सहयोग की इच्छा जताई। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक गोपनीय पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने आपसी सहयोग की संभावनाओं पर चर्चा की।
इस पत्र में शी ने अमेरिकी नीतियों से चीनी हितों पर पड़ने वाले असर की चिंता जताई और एक क्षेत्रीय अधिकारी को भारत के साथ कूटनीतिक पहल करने का जिम्मा सौंपा। यह संदेश बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंचा। इसके बाद, बीजिंग ने भारत-चीन रिश्तों की तारीफ में बयान जारी किया। चीनी उपराष्ट्रपति हान झेंग जैसे वरिष्ठ नेताओं ने भी दोनों देशों के बीच बेहतर होते रिश्तों की सराहना की।

डोवल ने निभा रहे अहम भूमिका
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल इस नई दोस्ती की बुनियाद रखने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। सीमा वार्ता के लिए भारत के विशेष प्रतिनिधि डोवल ने दिसंबर 2024 और जून 2025 में चीन का दौरा किया। जून में भारत ने चीन के साथ रिश्ते सुधारने की ठोस कोशिशें शुरू कीं, खासकर जब अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता मुश्किल हो रही थी।
जुलाई में, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 5 साल बाद बीजिंग में अपने चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात की। इस दौरान जयशंकर ने व्यापार में रुकावटों और चीन की हालिया रेयर अर्थ मेटल्स के एक्सपोर्ट से जुड़ी पाबंदियों पर चिंता जताई, जो भारत की सप्लाई चेन को प्रभावित कर रही थीं। जवाब में, चीन ने खाद और रेयर अर्थ मेटल्स की सप्लाई का भरोसा दिलाया।
रिश्ते सुधारने के लिए उठे ठोस कदम
दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने के कई ठोस कदम उठे हैं। अगले महीने से भारत और चीन के बीच सीधी फ्लाइट फिर से शुरू होने की तैयारी है। चीन ने भारत को यूरिया निर्यात पर पाबंदियां हटाई हैं, जबकि भारत ने चीनी नागरिकों के लिए टूरिस्ट वीजा सेवाएं फिर से शुरू की हैं। इसके अलावा, व्यापारिक सहयोग भी बढ़ रहा है। गौतम अडानी की अगुवाई वाला अडानी ग्रुप चीनी इलेक्ट्रिक वाहन कंपनी BYD के साथ बैटरी उत्पादन के लिए साझेदारी पर विचार कर रहा है। रिलायंस इंडस्ट्रीज और JSW ग्रुप भी चीनी कंपनियों के साथ व्यापारिक समझौते तलाश रहे हैं।
2020 में शुरू हुई तल्खी में आ रही कमी
2020 के सीमा विवाद के बाद भारत-चीन रिश्तों में तनाव था, लेकिन अब दोनों देश पुराने क्षेत्रीय विवादों को सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यही वजह है कि अगस्त तक रिश्तों में सुधार के स्पष्ट संकेत दिखे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 7 साल बाद 1 सितंबर को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के लिए चीन जाएंगे, जो तियानजिंग में होगा। यह दौरा दोनों देशों के बीच बढ़ती नजदीकियों का प्रतीक है।

चीन को आर्थिक सुधार की उम्मीद
चीन की अर्थव्यवस्था इस समय मंदी और डिफ्लेशन से जूझ रही है, खासकर इलेक्ट्रिक वाहन और सोलर पैनल जैसे क्षेत्रों में अतिरिक्त उत्पादन की समस्या है। भारत की 1.4 अरब की युवा आबादी चीन के लिए एक बड़ा बाजार है, खासकर जब अमेरिका और यूरोप में व्यापारिक रुकावटें बढ़ रही हैं। भारत भी चीनी निवेश को अपनी मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने के लिए जरूरी मान रहा है।
मोदी सरकार का लक्ष्य है कि मैन्युफैक्चरिंग का जीडीपी में योगदान 25% तक पहुंचे। ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के मुताबिक, अगर अमेरिकी टैरिफ जारी रहे, तो भारत के अमेरिका जाने वाले निर्यात का 60% हिस्सा बंद हो सकता है, जिससे जीडीपी में करीब 1% की कमी आ सकती है।
क्या दिख रही है भविष्य की राह?
अमेरिका ने भारत को रूस से तेल खरीदने के कारण 50% टैरिफ लगाया, जिससे भारत सरकार नाराज है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि ट्रंप ने भारत को दुश्मन की तरह ट्रीट करके दिल्ली और बीजिंग को करीब लाने में मदद की। भारत और चीन के बीच बढ़ती नजदीकियां न सिर्फ आर्थिक, बल्कि कूटनीतिक और रणनीतिक दृष्टि से भी अहम हैं। दोनों देशों के नेताओं ने बार-बार आर्थिक संभावनाओं की बात की है, लेकिन भरोसे की कमी ने रास्ता रोक रखा था। अब ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी ने दोनों को एक नया मौका दिया है, जिससे भारत-चीन रिश्तों में नई गर्मजोशी दिख रही है।


