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VIDEO: गरीबों की तरह जीता था स्वीपर, मरने के बाद घर से निकली नोटों की गड्डियां; निकला अकूत संपत्ति का मालिक

ओडिशा में एक सरकारी सफाईकर्मी रहने को तो गरीबों जैसा रहता था लेकिन जब मरा तो करोड़ों की संपत्ति का मालिक निकला। स्वीपर के घर में जगह जगह रुपये मिले। इसे देख हर कोई हैरान है।

Edited By: Mangal Yadav @MangalyYadav
Published : Apr 22, 2025 08:53 am IST, Updated : Apr 22, 2025 09:23 am IST
जिंदा रहते गरीब लगता था स्वीपर, मरने के बाद संपत्ति देख चौंक गए लोग- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV जिंदा रहते गरीब लगता था स्वीपर, मरने के बाद संपत्ति देख चौंक गए लोग

मलकानगिरी: ओडिशा के मलकानगिरी जिले के मुख्य अस्पताल में काम करने वाले स्वीपर डंबरू गड़ा की अचानक मौत ने न सिर्फ अस्पताल के स्टाफ को बल्कि पूरे इलाके को चौंका दिया। 33 सालों तक एक छोटे से सरकारी क्वार्टर में रहने वाले डंबरू हमेशा सादगी भरा जीवन जीते थे। ना अच्छे कपड़े, ना अच्छा खाना और ना ही कोई आराम की चीज़ें। लेकिन उनकी मौत के बाद जब घर की तलाशी हुई, तो कुछ ऐसा सामने आया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।

डंबरू के घर में हर जगह मिले पैसे

डंबरू के घर से लाखों रुपये नगद बरामद हुए। बैग, बिस्तर के नीचे, किताबों के बीच, हर जगह से नोटों की गड्डियाँ निकलीं। कहीं पचास के नोट, कहीं सौ तो कहीं पांच सौ के बंडल। कुल मिलाकर लाखों रुपये मिले। इतना ही नहीं, बैंक खातों और पीएफ मिलाकर उनकी संपत्ति करोड़ से ज्यादा बताई जा रही है।

पैसे नहीं खर्च करता था डंबरू

डंबरू पैसे छिपा-छिपाकर रखते थे, लेकिन खर्च करना शायद उनकी आदत में नहीं था। बिजली कनेक्शन होते हुए भी वो मोमबत्ती जलाकर रहते थे। महीने में 50 हजार रुपये की सैलरी मिलने के बावजूद उनके घर में एक पुराना खटोला, एक गमछा और एक पुरानी ड्रेस ही थी। कुछ साल पहले उनकी साइकिल चोरी हो गई थी, लेकिन नई साइकिल भी नहीं खरीदी – पैदल ही अस्पताल आते-जाते रहे।

सस्ते ढाबों से खाता था खाना

डंबरू ने कभी शादी नहीं की और उनके कोई निकट रिश्तेदार भी नहीं थे। पड़ोसियों के मुताबिक, वो खाना भी बाहर से मांगकर या सस्ते ढाबों से खाकर गुजारा करते थे। उनकी मौत के बाद पुलिस की मौजूदगी में जब उनके घर का ताला टूटा, तब ये सारा पैसा सामने आया।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि डंबरू की ये सारी जमा पूंजी किसकी होगी? क्योंकि उनके कोई सीधा वारिस नहीं है, और अब प्रशासन को यह तय करना होगा कि यह पैसा किसे सौंपा जाए। 

डंबरू की ये कहानी यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि आखिर किसलिए हम जीवन भर पैसा जोड़ते हैं, अगर ना उसे खुद इस्तेमाल कर सकें, और ना ही किसी को दे सकें।

ओडिशा से शुभम कुमार की रिपोर्ट

 

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