Wednesday, May 01, 2024
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गणेश चतुर्थी 2017: इस शुभ मुहूर्त, पूजा विधि से करें गणपति का आगमन

इस बार श्री गणेश का घर आगमन बहुत ही शुभ है। इस बार गणेश चतुर्थी को बहुत ही शुभ संयोग लग रहा है। इसके साथ ही इस बार गणेशोत्सव 10 दिन का न होकर 11 दिन का होगा। जानिए पूजा विधि, कथा और शुभ मुहूर्त के बारें में पूर्ण जानकारी।

India TV Lifestyle Desk Edited by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: August 24, 2017 13:19 IST

lord ganesha

Image Source : PTI
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गणेश चतुर्थी की व्रत कथा
शिवपुराण में इस बारें में विस्तार से बताया गया है कि जब एक दिन माता पार्वती अपनी सखियों जया और विजया के साथ उबटन कर स्नान कर रही थी तभी भगवान शिव बिना बताए अंदर आ गए जिससे लज्जित होकर पार्वती अंदर चली गई और शिव जी बाहर चले गए। तब पार्वती ने अपनी सखियों से कहा कि शंकर जी का तो बहुत बडा गण है लेकिन मेरा नही है। अपनी सुरक्षा के लिए मुझे भी गण बनाना चाहिए। इसके बाद पार्वती नें अपना उबटन छुडाया और एक बच्चें का पुतला बनाया और उसके अंदर अपनी शक्ति से जीवन डाल दिया और वह एक सुंदर बालक बन गए। इसके बाद पार्वती नें उसे एक डंडा देकर द्वार में बैठा दिया और कहे कि बिना मेरी इजाजत कोई भी अदंर न आ पाए। इतना कहकर पार्वती अंदर चली गई।

कुछ देर बाद जब शंकर भगवान आए तो वह बालक बाहर ही बैठा हुआ था। जब शंकर जा अंदर जानें लगे तो उन्हें अंदर जानें से रोका और कहा कि में अंदर स्नान कर रही ऐप नही जा सकते हैष यह सुन शिव हंस कर चले गए। जब यब बात शिव के गणों को पता चली तो वह लोग असे भगानें के युद्ध करनें आ गए, लेकिन उस बालक नें सभी को मार भगाया और सब भागते हुए शिव के पास आए तब शिव नें ब्रह्मा जी को बुलाया कि इस बालक को हटा दे, लेकिन जब वह हटानें आए तो उनकी भी दाढी-मिछ उखाल डाली और वह भी भागते हुए शिव के पास पहुचें और पूरी बात कही जिसे सुनकर शिव क्रोधित हो गए। इसी क्रोध में शिव नें उस बालक का सिर धडं से अलग कर दिया तब उनकी क्रोध शांत हुआ।

जब पार्वती जी को उस बालक की आवाज सुनाई दी तो वह दौड़ती हुई बाहर आई और देखा कि उस बालक का सिर धड़ से अलग पड़ा है जिसे देखकर वह क्रोधित हो गई जिससे धरती में प्रलय मच गई। तब सभी देवी-देवता और श्रृषि मुनि माता से शांत होने की प्रार्थना करनें लगे और कहा कि हे देवी क्षमा करों आपके पति यहां पर उपस्थित है उनका ध्यान करों आपके क्रोध से धरती में विनाश हुआ जा रहृा है। तब माता बोली कि मेरे बेटे को किसी भी तरह जीवित करों और उसे पूज्नीय होनें का आर्शीवाद दो। तब शकंर जी अपनें गण से कहा जाओं उत्तर दिशा की ओर जन्मा ऐसे बच्चें का सर लेकर आओं जो आज ही जन्मा हो, लेकिन गण को ऐसे कोई बच्चा न मिला।

अंत में एक हाथी का बच्चा मिला। गण उसी का सर ले आए और वही सिर बालक के शरीर से जोड़ दिया गया और सभी देवी-देवताओं ने उश बालक को आर्शीवाद दिया और जो गणेश नाम सें प्रसिद्ध हुआ। साथ ही शमकर जी ने उस् अपनी पुत्र स्वीकार किया। जब यह घटना हुई उस दिन भाद्र पद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी थी। तभी यह यह त्यौहार मनाया जाता है। इस कथा को जो सच्चे मन से सुनेगा उसकी सभी मनेकामनाएं पूर्ण होगी।

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