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''क्रीमी लेयर सिद्धांत का समर्थन करने पर अपने ही समुदाय ने की आलोचना'', बोले पूर्व CJI गवई

पूर्व CJI बीआर गवई ने ''क्रीमी लेयर'' सिद्धांत की वकालत की। उन्होंने एक पुरानी घटना का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे उनके ही समुदाय ने उनका विरोध कर दिया था।

Edited By: Vinay Trivedi
Published : Dec 07, 2025 04:58 pm IST, Updated : Dec 07, 2025 04:58 pm IST
former CJI Gavai speech- India TV Hindi
Image Source : PTI क्रीमी लेयर सिद्धांत के समर्थन में आया पूर्व CJI गवई का बयान।

नई दिल्ली: भारत के पूर्व CJI बीआर गवई ने कहा कि उन्हें एक निर्णय में यह उल्लेख करने के लिए अपने समुदाय की तरफ से आलोचना का सामना करना पड़ा कि अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण में ''क्रीमी लेयर'' सिद्धांत लागू करना चाहिए। गवई ने कहा कि डॉ. बीआर आंबेडकर मानते थे कि सकारात्मक कदम किसी पीछे चल रहे शख्स को साइकिल देने के समान है, लेकिन क्या बाबासाहेब आंबेडकर ऐसा सोचते थे कि ऐसे शख्स को कभी भी साइकिल नहीं छोड़नी चाहिए। गवई ने दावा किया कि बाबासाहेब आंबेडकर ऐसा नहीं मानते थे। हाल ही में सीजेआई पद से रिटायर हुए बीआर गवई शनिवार को मुंबई यूनिवर्सिटी में ''समान अवसर को बढ़ावा देने में सकारात्मक कदम उठाने की भूमिका'' के मुद्दे पर भाषण देने पहुंचे थे। इस दौरान, गवई ने आंबेडकर की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन किया और कहा कि आंबेडकर ना सिर्फ भारतीय संविधान के निर्माता थे बल्कि उसमें शामिल सकारात्मक कार्रवाई के भी निर्माता थे।

''क्रीमी लेयर'' को साइकिल के उदाहरण से समझाया

पूर्व CJI बीआर गवई ने पूछा, “जहां तक ​​सकारात्मक कदम का प्रश्न है, बाबासाहेब का मानना ​​था कि यह उन लोगों को साइकिल देने जैसा है जो पीछे रह गए हैं। मान लीजिए कोई 10 किलोमीटर आगे है और कोई शून्य पर तो उसे साइकिल देनी चाहिए ताकि वह 10 किलोमीटर तक तेजी से पहुंच पाए। वहां से, वह पहले से मौजूद व्यक्ति के साथ जुड़े और उसके साथ चले। क्या उन्होंने सोचा था कि उस शख्स को साइकिल छोड़कर आगे नहीं बढ़ना चाहिए?”

बीआर गवई ने की क्रीमी लेयर की वकालत

पूर्व प्रधान न्यायाधीश गवई ने कहा, “मेरे मानना है कि यह बाबासाहेब का सामाजिक और आर्थिक न्याय का दृष्टिकोण नहीं था। वह औपचारिक तौर पर नहीं बल्कि वास्तविक मायनों में सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना चाहते थे।” उन्होंने आगे कहा कि क्रीमी लेयर के सिद्धांत के मुताबिक, आरक्षण के तहत आने वाले आर्थिक और सामाजिक रूप से समृद्ध लोगों को फायदा नहीं मिलना चाहिए, भले ही वे उस पिछड़े समुदाय के मेंबर हों, जिसके लिए कोई योजना बनी हो।

क्यों झेलना पड़ा था अपने समुदाय का विरोध?

पूर्व सीजेआई ने आगे कहा कि इंद्रा साहनी एवं अन्य बनाम भारत संघ के मामले में ''क्रीमी लेयर'' सिद्धांत की बात हुई और एक अन्य केस में उन्होंने खुद कहा था कि ''क्रीमी लेयर'' को अनुसूचित जातियों पर भी लागू करना चाहिए। गवई ने कहा कि इस बयान के लिए उनको अपने ही समुदाय के लोगों की तरफ से 'व्यापक आलोचना' का सामना करना पड़ा, और उनके ऊपर यह आरोप लगा कि उन्होंने खुद आरक्षण का फायदा लेकर सुप्रीम कोर्ट का जज बनने के बाद, अब उन लोगों को बाहर करने का सपोर्ट किया जो ‘क्रीमी लेयर’ में आते हैं। पूर्व प्रधान न्यायाधीश गवई ने आगे कहा, “लेकिन लोग ये भी नहीं जानते थे कि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज के संवैधानिक पद के लिए कोई आरक्षण नहीं होता है।”

(इनपुट- भाषा)

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