Thursday, May 02, 2024
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Pradosh Vrat: कब है मार्गशीर्ष माह का सोम प्रदोष व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

Pradosh Vrat: इस बार मार्गशीर्ष माह का पहला प्रदोष व्रत 21 नवंबर 2022 के दिन है। प्रदोष व्रत के दिन मनचाहे वरदान के लिए भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए।

Written By : Acharya Indu Prakash Edited By : Poonam Yadav Published on: November 16, 2022 7:58 IST
मार्गशीर्ष माह का सोम प्रदोष व्रत- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV मार्गशीर्ष माह का सोम प्रदोष व्रत

हर माह के कृष्ण और शुक्ल, दोनों पक्षों की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत होता है। सप्ताह के सातों दिनों में से जिस दिन प्रदोष व्रत पड़ता है, उसी के नाम पर उस प्रदोष का नाम रखा जाता है। इस बार मार्गशीर्ष माह का पहला प्रदोष व्रत 21 नवंबर 2022 के दिन कृष्ण पक्ष में सोमवार को पड़ रहा है। किसी भी प्रदोष व्रत में प्रदोष काल का बहुत महत्व होता है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर की पूजा करनी चाहिए। कहते हैं इस दिन जो व्यक्ति भगवान शंकर की पूजा करता है और प्रदोष व्रत करता है, वह सभी पाप कर्मों से मुक्त होकर पुण्य को प्राप्त करता है और उसे उत्तम लोक की प्राप्ति होती है।  

सोम प्रदोष शुभ मुहूर्त

इस साल मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 21 नवंबर 2022 को सुबह 10:07 बजे से शुरू होकर 22 नवंबर 2022 को सुबह 08:49 बजे समाप्त होगी। इस दिन भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा का सबसे सही समय शाम को 05:25 से रात्रि 08:06 बजे तक रहेगा।

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सोम प्रदोष व्रत पूजा विधि

सोम प्रदोष व्रत को रखने के लिए प्रात:काल उठकर स्नान करें।। इसके बाद विधि-विधान से व्रत करें। पूरे दिन शिव मंत्र का मन में जप करें। शाम के समय एक बार फिर स्नान करने के बाद प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की गाय के दूध, गंगाजल, पुष्प, रोली-चंदन, धूप, दीप, कपूर, फल, बेलपत्र, मिष्ठान्न, शहद, श्रृंगार की सामग्री आदि से पूजा करनी चाहिए। पूजा के अंत में भगवान शिव की आरती जरूर करना चाहिए। हेमाद्रि के व्रत खण्ड-2 में पृष्ठ 18 पर भविष्य पुराण के हवाले से बताया गया है कि त्रयोदशी की रात के पहले प्रहर में जो व्यक्ति किसी भेंट के साथ शिव प्रतिमा के दर्शन करता है- वह सभी पापों से मुक्त होता है | अतः आज के दिन रात के पहले प्रहर में शिवजी को कुछ न कुछ भेंट अवश्य करना चाहिए। 

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सोम प्रदोष व्रत का धार्मिक महत्व

पंचांग के अनुसार रात्रि के प्रथम प्रहर, यानी सूर्योदय के बाद शाम के समय को प्रदोष काल कहते हैं। प्रदोष व्रत के बारे में मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव समुद्र मंथन से निकले विष को पीकर नीलकंठ कहलाए थे। 

(आचार्य इंदु प्रकाश देश के जाने-माने ज्योतिषी हैं, जिन्हें वास्तु, सामुद्रिक शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र का लंबा अनुभव है। इंडिया टीवी पर आप इन्हें हर सुबह 7.30 बजे भविष्यवाणी में देखते हैं)

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