कृषि कानूनों की वापसी के बाद अब किसानों के आंदोलन को लेकर गहमागहमी बनी हुई है। भले ही पंजाब के कुछ किसानों ने ये कह दिया है कि आंदोलन अब ख़त्म होना चाहिए लेकिन आंदोलन के भविष्य को लेकर 4 दिसंबर को किसान एक बड़ी बैठक करने वाले हैं। लेकिन किसान नेताओं को सरकार से MSP पर लिखित गारंटी की मांग कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, "अगर सरकार हमारी इन सभी मागों के बारे में संतुष्ट करती है तो यहां से जाने के बारे में सोच सकते हैं।"
संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक तय कार्यक्रम के मुताबिक 4 दिसंबर को होगी। आज केवल पंजाब के 32 किसान संगठनों की बैठक होगी।
एक वर्ष से लंबे समय से चल रहा किसान आंदोलन अब शायद खत्म हो जाए और बॉर्डर पर डटे किसान अपने अपने घर वापस चले जाए। सरकार और किसान के बीच चल रही बातचीत से तो यही लग रहा है। इस सब पर इंडिया टीवी ने राकेश टिकैत से बातचीत की।
पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से चला आ रहा किसानों का आंदोलन जल्द ही समाप्त हो सकता है। किसान नेता सतनाम सिंह ने मंगलवार को कहा कि सरकार ने हमारी सभी मांगें मान ली हैं, और हम 4 दिसंबर को आंदोलन खत्म करने का फैसला ले सकते हैं। बता दें कि सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा से MSP मामले पर चर्चा के लिए 5 नाम मांगे हैं। सोनीपत कुंडली बॉर्डर पर 32 जत्थेबंदियों की बैठक खत्म हो गई है, जिसके बाद किसान नेता सतनाम सिंह का यह बयान सामने आया है।
पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से चला आ रहा किसानों का आंदोलन जल्द ही समाप्त हो सकता है। किसान नेता सतनाम सिंह ने मंगलवार को कहा कि सरकार ने हमारी सभी मांगें मान ली हैं, और हम 4 दिसंबर को आंदोलन खत्म करने का फैसला ले सकते हैं।
SKM ने एक बयान में कहा था कि कृषि कानूनों को निरस्त किया जाना किसान आंदोलन की पहली बड़ी जीत है लेकिन अन्य अहम मांगें अब भी लंबित हैं।
जहां एक ओर राकेश टिकैत ने अपने कई बयानों से ये साफ़ कर दिया है कि किसान आंदोलन तब तक ख़त्म नहीं होगा जब तक MSP पर फैसला नहीं आ जाता, तो वहीं कई किसान नेता ऐसे भी है जो आंदोलन को ख़त्म करना चाहते हैं। किसान नेता मंजीत सिंह राय भी किसान आंदोलन को वापस लेने के पक्ष में हैं। सुनिए उन्होंने कल क्या कहा था।
कल संसद के दोनों सदनों से किसान कानून वापसी बिल पास हो गया। इसे लेकर संयुक्त किसान मोर्चा ने 1 दिसंबर, यानी परसों इमरजेंसी बैठक बुलाई है। पंजाब के 32 किसान संगठनों की कल बैठक है और ज़्यादातर किसानों का यह मत है अब आंदोलन ख़त्म होना चाहिए।
संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने सोमवार को कहा कि तीनों कृषि कानून रद्द हो चुके हैं, लोग बड़े होते हैं, हुकूमत नहीं। हमने 1 तारीख को SKM की मीटिंग बुलाई है, ये इमरजेंसी मीटिंग है।
पीएम मोदी किसानों के मुद्दे पर पीछे हट गए हैं...क्या किसान भी पीछे हटेंगे और आंदोलन खत्म करेंगे ये बड़ा सवाल है..क्योंकि मोदी सरकार ने करीब-करीब किसानों की सारी बातें मान ली हैं...आज कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने खुद MSP पर कमेटी बनाने की बात कही, कमेटी में किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को शामिल करने की भी बात कही
आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ मामले वापस लेने के संबंध में तोमर ने कहा कि यह राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिनों पहले घोषणा की थी कि केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस लेगी और इस तरह सरकार ने किसानों की मांग को मान लिया।
कृषि मंत्री ने कहा, तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद अब आंदोलन का कोई मतलब नहीं रह जाता है। बड़े मन का परिचय देते हुए पीएम मोदी की अपील को मानें और किसान घर वापस लौटें।
किसान 29 नवंबर को संसद कूच करने की योजना बना चुके हैं। हालांकि आज की बैठक में इसपर भी तय होगा कि क्या किसान ट्रैक्टर से संसद कूच करेंगे या नहीं? वहीं कृषि कानूनों के अलावा अपनी अन्य मांगों पर अब दबाब बनाये जाने का प्रयास किया जाने लगा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में घोषणा की थी कि जिन 3 कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन कर रहे हैं, उन्हें वापस लिया जायेगा।
दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा किसान आंदोलन अभी जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कृषि कानून वापस लिए जाने की घोषणा के बाद भी प्रदर्शनकारी किसान दिल्ली की सीमा से हटने को राजी नहीं है। किसान आंदोलन का 1 साल पूरा होने पर इंडिया टीवी ने बात की किसान नेता राकेश टिकैत से।
सोनिया गांधी की अगुवाई में हुई इस बैठक में इस बात पर जोर दिया कि तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने संबंधी विधेयक सत्र के पहले ही दिन लाया जाए।
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने बुधवार को कहा कि कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहा किसानों का आंदोलन अभी समाप्त नहीं होगा और आगे की रूपरेखा 27 नवंबर को तय की जाएगी।
समाजवादी पार्टी प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने वादा किया कि सत्ता में वापसी होने पर वह किसान आंदोलन में जान गंवाने वाले किसानों को 25 लाख की सम्मान राशि देंगे। यह एक ऐसा चुनावी दांव है जो अगर कामयाब रहा तो उन्हें विधानसभा चुनावों में बड़ा फायदा हो सकता है।
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