लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों एक बड़ा सवाल गूंज रहा है कि क्या समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आजम खान अपनी पुरानी साइकिल को अलविदा कहकर बहुजन समाज पार्टी के हाथी पर सवार हो जाएंगे? आजम खान की जेल से रिहाई के ठीक बाद ये अटकलें तेज हो गई हैं। 23 महीने की सजा काटने के बाद आजम खान आज दोपहर सीतापुर जेल से बाहर आए। सियासी गलियारों में खबर है कि बसपा ने उन्हें खुला न्योता दिया है। बसपा विधायक उमाशंकर सिंह ने साफ कहा है कि अगर आजम खान पार्टी में आना चाहें तो उनका स्वागत है। उमाशंकर सिंह के न्योते के बाद यूपी के सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर जारी है।
तंजीम के बयान ने भी अटकलों को दिया बल
बता दें कि यूपी में मुस्लिम समुदाय के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले आजम खान लंबे वक्त से जेल की सलाखों के पीछे थे। उन पर कई मुकदमे चले, जिनमें से ज्यादातर में अब बेल मिल चुकी है। लेकिन उनकी रिहाई के बाद यह सवाल उठने लगा कि अब उनकी सियासी राह क्या होगी? ये अटकलें अचानक नहीं उड़ीं। कुछ हफ्ते पहले खबर आई थी कि आजम खान की पत्नी तंजीम फातिमा ने दिल्ली में बसपा सुप्रीमो मायावती से मुलाकात की है। सोशल मीडिया पर ये खबर वायरल हो गई। वहीं, जून में जेल में आजम खान से मिलने पहुंची तंजीम से पूछा गया कि क्या सपा आजम खान का समर्थन कर रही है, तो उन्होंने कहा कि 'मुझे अब किसी पर भरोसा नहीं है। अब सिर्फ अल्लाह ही मदद कर सकता है।' तंजीम के इस बयान के भी कई मायने निकाले गए।

तंजीम फातिमा ने क्या कहा यहां सुनें
9 अक्टूबर को बसपा में शामिल होंगे आजम?
बलिया के रसड़ा से बीएसपी के एकमात्र विधायक उमाशंकर सिंह ने आजम को न्योता देने के साथ ये भी जोड़ा कि समाजवादी पार्टी का PDA फॉर्मूला तो बसपा की सर्व समाज नीति की नकल है, लेकिन वह इसे सही से चला नहीं पा रहे। सियासी गलियारों में तो ये खबरें भी उड़ रही हैं कि मायावती 9 अक्टूबर को लखनऊ में बड़ा सम्मेलन करने वाली हैं, और हो सकता है कि आजम खान उसी दिन बसपा में शामिल हो जाएं। अगर ऐसा होता है तो यह समाजवादी पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका होगा, क्योंकि यूपी की सियासत में आजम 1980 के दशक से ही सक्रिय हैं और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे हैं।

...तो सपा से छिटक सकता है मुस्लिम वोट बैंक
आजम खान के बिना सपा का मुस्लिम वोट बैंक कमजोर हो सकता है। रामपुर, मुरादाबाद, संभल जैसे इलाकों में तमाम मुस्लिम आजम खान को अपना नेता मानते हैं। अगर वह पार्टी से चले गए, तो सपा का PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूला लड़खड़ा सकता है। खासकर 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले ये सपा के लिए बड़ा संकट होगा। अखिलेश यादव को नए मुस्लिम चेहरे ढूंढने पड़ेंगे, जो कि बहुत ही ज्यादा मुश्किल है।दूसरी तरफ, बसपा को फायदा होगा। मायावती की पार्टी लंबे वक्त से कमजोर हुई है, लेकिन आजम खान का आना मुस्लिम-दलित गठजोड़ को मजबूत कर सकता है। बसपा की कोर वोटिंग दलितों की है, लेकिन मुस्लिम समर्थन से वो पश्चिमी यूपी में वापसी कर सकती है।

आजम खान के अगले कदम पर टिकीं सबकी नजरें
अगर बसपा आजम खान को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रहती है तो 2027 के विधानसभा चुनावों में सूबे में बीजेपी, सपा-कांग्रेस गठबंधन और बसपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है। ऐसे में मुस्लिम वोट के बंटवारे से बीजेपी को फायदा मिल सकता है, लेकिन बसपा अगर पश्चिमी यूपी में मजबूत हुई, तो समाजवादी पार्टी के साथ-साथ बीजेपी को भी चुनौती मिलेगी। सियासी जानकार कहते हैं कि ये बदलाव यूपी की राजनीति को नया रंग दे सकता है। आजम खान की रिहाई के बाद सपा में तोड़फोड़ की आशंका बढ़ गई है, हालांकि अभी आजम ने खुद कुछ नहीं कहा है। ऐसे में फिलहाल सबकी नजरें आजम खान पर टिकी हैं।


