सर्वे के दौरान 80 फ़ीसद लोगों ने ईश-निंदा सहित भेदभाव करने वाले तमाम कानूनों को ख़त्म करने की मांग की। रिपोर्ट में स्कूलों-कॉलेजों की किताबों से नफ़रत फ़ैलाने वाली बाते हटाने और ज़िला प्रशासन, पुलिस तथा अदलत के अधिकारियों से ग़ैर मुसलमानों की सुरक्षा करने की सिफ़ारिश की है।
पैटन डेवलपमेंट ऑर्गनाइज़ेशन के राष्ट्रीय संयोजक सरवर बारी का कहना है कि सर्वे के दैरान पाया गया कि ईश-निंदा कानून से अल्पसंख्यकों के लिये मुसिबतें बढ़ी ही हैं। “पाकिस्तान के 80 फ़ीसद से ज़्यादा लोगों का मानना है कि ईश-निंदा क़ानून का इस्तेमाल अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हो रहा है लेकिन राजनीतिज्ञ इस पर बात करने से कतरातें हैं।”
रिपोर्ट में ग़ैर मुसलमानों के लिये 5 प्रतिशत कोटे और राजनीतिक दलों से अल्पसंख्यक शाखा बंद कर चुनावो में ग़ैर-मुसलमानों को 10 प्रतिशत टिकट देने की भी सिफ़ारिश की गई है।
लेखक डॉ. रवीश नदीम ने कहा कि रिपोर्ट को अंग्रेज़ी से ऊर्दू में अनुवाद करना एक दर्दनाक अनुभव रहा। “मुझे लगता है कि हमारे पास उप्लब्धियों के नाम पर दुनियां को दिखाने के लिये कुछ है नहीं और जो कुछ बचा है उसका वजूद भी दामव पर लगा हुआ है। इस समय राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद से निबटने के लिये योजना बनाने और उसे लागू करने की ज़रुरत है। ग्राम की बजाय देश के शहरी इलाकों के लिये योजनाएं बनाकर ही उग्रवाद को ख़त्म किया जा सकता है।”