हिंदी सिनेमा का एक ऐसा अभिनेता जो पर्दे पर आते ही सीन, हर किरदार को अपना बना लेता है। ऐसे कम ही कलाकार होते हैं जो दर्शकों को हंसा भी लें और जब इमोशनल सीन में हों तो दर्शकों को फफक-फफक कर रोने पर मजबूर कर दें। लेकिन, संजय मिश्रा में ये कला कूट-कूटकर भरी है। उन्हें यूं ही हिंदी सिनेमा के सबसे शानदार कलाकारों में नहीं गिना जाता, उन्होंने जो भी किरदार निभाए उनमें जान फूंक दी और उन्हें अपना बना लिया। कभी दुबे जी तो कभी बाबूजी बनकर संजय मिश्रा ने दर्शकों के दिल छू लिए। बनारस की गलियों से होते हुए संजय मिश्रा मुंबई की फिल्म सिटी तक पहुंचे और आज लाखों दिलों पर राज करते हैं।
हर किरदार में हो जाते हैं फिट
संजय मिश्रा एक ऐसे अभिनेता हैं जो खुद को हर तरह के किरदार में ठीक उसी तरह घोल लेते हैं जैसे पानी में चीनी। उनके अंदर किरदार को अपने अंदर उतार लेने की कला है, जो कम ही कलाकारों में होती है। वह जितने माहिर हंसाने में हैं उतने ही दर्शकों को रुलाने में भी एक्सपर्ट हैं। गोलमाल में अपनी कॉमेडी से उन्होंने दर्शकों को खूब हंसाया और ‘आंखों देखी’ में आत्मचिंतन करने पर मजबूर कर दिया। उनकी खासियत है कि वह स्टारडम के पीछे नहीं भागते, बल्कि छोटे किरदारों से ही अपनी छाप छोड़ देते हैं।
नौकरी नहीं ध्यान है अभिनय
संजय मिश्रा का कहना है कि उनके लिए “अभिनय नौकरी नहीं, ध्यान है।” शायद इसलिए उनके किरदार पर्दे पर जीवित होते दिखाई देते हैं। संजय मिश्रा आज यानी 6 अक्टूबर को अपना 62वां जन्मदिन मना रहे हैं। आइये इस मौके पर उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें जानते हैं।
संजय मिश्रा की यादगार फिल्में
संजय मिश्रा की कुछ यादगार फिल्मों की बात करें तो इनमें ‘गोलमाल’, ‘धमाल’, ‘आंखों देखी’, ‘मसान’, ‘कड़वी हवा’, ‘किक’, 'अपना सपना मनी मनी', 'भक्षक' और ‘सन ऑफ सरदार 2’ हैं, जिनमें अपने अभिनय से संजय मिश्रा ने दर्शकों को खूब एंटरटेन किया। संजय मिश्रा की फिल्म ‘आंखों देखी’ से जुड़ा एक किस्सा भी है। संजय मिश्रा इस फिल्म के किरदार से इस तरह जुड़ गए थे कि उन्होंने प्रीमियर तक में जाने से मना कर दिया था।
पिता के निधन के बाद एक्टिंग से उठ गया था मन
संजय मिश्रा के पिता प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो में सरकारी कर्मचारी थे और दादा जी इंडियन सिविल सर्वेंट थे। लेकिन, उनका खुद का मन पढ़ाई में कभी नहीं लगा। जब उनके पिता का ट्रांसफर बनारस हुआ तो केंद्रीय विद्यालय बीएचयू से उनकी शुरुआती पढ़ाई हुई। इसके बाद पिता का ट्रांसफर दिल्ली हो गया और दिल्ली आने पर संजय मिश्रा ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा का रुख किया। भास्कर के साथ बातचीत में संजय मिश्रा ने बताया था कि उनके पिता के हाथ उनकी डायरी लगी, जिसमें लिखा था- 'मेरे बेटे ने आज मुझे मेरे दोस्तों के सामने शर्मिंदा किया, जो मेरे लिए अफसोस है।'
2 दिन पुरानी कटहल की सब्जी खाने से बिगड़ी पिता की तबीयत
संजय मिश्रा ने बताया, वह हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हुए थे और अपने परिवार की खुशी के लिए अपनी फिल्म आलू चाट देखने पहुंचे। यहां गार्ड ने उनसे फोटो क्लिक कराने की जिद शुरू कर दी, जिस पर वह भड़क गए और उसे गाली दे दी। इस पर उनके पिता ने उन्हें टोका तो उन्होंने जवाब में कहा - 'आपको क्या पता, आपसे किसी ने साथ में फोटो खिंचवाने के लिए कहा है?'ये सुनकर उनके पिता चुप रह गए। ये बात बीत गई, फिर संजय अपनी किसी फिल्म की शूटिंग दिल्ली में कर रहे थे। उन्होंने अपने पिता से साथ डिनर करने को कहा, लेकिन हां कहने के बाद भी वह नहीं पहुंचे। फोन करने पर पता चला कि दो दिन पुरानी कटहल की सब्जी खाने से उनकी तबीयत खराब हो गई है। इस पर उन्होंने पिता से कहा कि 'दो दिन पुरानी सब्जी खाने की क्या जरूरत थी?' इस पर जवाब मिला- मुझे तुम्हारी सलाह की जरूरत नहीं है। अगले ही दिन पता चला कि पिताजी नहीं रहे।
पिता की डायरी
पिता की मौत के बाद संजय मिश्रा के हाथ उनके पिता की लिखी डायरी मिली, जिसमें सिनेहमाहॉल वाली घटना का भी जिक्र था। इसमें लिखा था- 'संजय अच्छा काम करता है, लेकिन उसने मुझे पहली बार मेरे दोस्तों के सामने शर्मिंदा किया।' संजय ने जैसे ही ये लाइन पढ़ी, उनका दिमाग खराब हो गया और इसके बाद ही उन्होंने फिल्मों से दूरी बना ली।
ढाबे में किया काम
पिता की मौत के बाद एक्टिंग छोड़कर संजय मिश्रा ऋषिकेश चले गए और यहां एक ढाबे में काम करने लगे। इस दौरान उन्होंने यहां नूडल्स और ऑमलेट बेचे। यही नहीं, वह यहां बर्तन भी धोते, जिसके लिए उन्हें दिन के 150 रुपये मिलते। इसी बीच उन्हें रोहित शेट्टी का कॉल आया और संजय मिश्रा को उन्होंने 'ऑल द बेस्ट' में रोल ऑफर किया। इसके बाद संजय मिश्रा ने वापस लौटने का फैसला लिया और मुंबई आकर दूसरी पारी शुरू की।
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