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कोलकाता रेप मर्डर केस: क्रूरता की हदें पार कीं, फिर भी फांसी की सजा से कैसे बच गया संजय रॉय?

कोलकाता आरजी कर रेप और हत्या मामले के आरोपी संजय रॉय को सियालदह कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। जब उसने क्रूरता की हदें पार कीं फिर भी वह फांसी की सजा से कैसे बच गया? जानिए इस एक्सप्लेनर में...

Written By: Kajal Kumari @lallkajal
Published : Jan 20, 2025 17:17 IST, Updated : Jan 20, 2025 17:20 IST
फांसी की सजा से कैसे बच गया संजय रॉय
Image Source : FILE PHOTO फांसी की सजा से कैसे बच गया संजय रॉय

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में महिला ट्रेनी डॉक्टर से दुष्कर्म और हत्या मामले में सियालदह कोर्ट ने मुख्य आरोपी संजय रॉय को उम्रकैद की सजा सुनाई है और 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। इस केस में सजा का ऐलान करते वक्त अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अनिरबन दास ने कहा कि यह केस रेयरेस्ट ऑफ रेयर यानी ‘‘दुलर्भ से दुर्लभतम’’ श्रेणी में नहीं आता, इसलिए अपराधी को मृत्युदंड नहीं दिया जा सकता और उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। बता दें कि घटना के बाद पूरे देश में आक्रोश देखने को मिला था और लंबे समय तक विरोध प्रदर्शन हुए थे। 

कोर्ट में वकीलों ने क्या दी दलील

कोर्ट में सीबीआई के वकील ने कहा, "यह एक ऐसा मामला है जो दुर्लभतम श्रेणी में आता है। समाज में लोगों का विश्वास बनाए रखने के लिए संजय रॉय को अधिकतम सजा दी जानी चाहिए।" इसपर संजय रॉय के वकील ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष को ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत करने चाहिए, जो यह साबित कर सकें कि दोषी के सुधार की कोई संभावना नहीं है। हम फांसी के अलावा जो भी सजा दी जाए, उसके लिए प्रार्थना करते हैं।"

संजय रॉय पर क्या धाराएं लगाई गईं

आरोपी संजय रॉय ने महिला ट्रेनी डॉक्टर से अस्पताल के ही सेमिनार हॉल में दुष्कर्म की जघन्य घटना को अंजाम दिया था और उसकी हत्या कर दी थी। इस केस में आरोपी संजय रॉय को बीएनएस की धारा 64, 66 और 103 (1) के तहत के दोषी पाया गया। संजय रॉय पर जो धाराएं लगाई गईं हैं, उन धाराओं के तहत अपराधी को अधिकतम फांसी या उम्रकैद की सजा देने का प्रावधान है, लेकिन जज ने उसे उम्रकैद की सजा दी है। अब जानते हैं इस केस को रेयरेस्ट ऑफ रेयर की श्रेणी में क्यों नहीं रखा गया।  

क्या होता है 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस'?

कानून में 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' शब्द का उपयोग उन मामलों के लिए किया जाता है, जो इतने जघन्य और भयंकर होते हैं कि उन पर मौत की सजा दी जा सकती है। ऐसे मामलों में अपराधी के कर्मों की गंभीरता, पीड़ित के प्रति अपराध का भयानक स्वरूप, और समाज पर इसके प्रभाव को ध्यान में रखकर किया जाता है। भारतीय दंड संहिता के तहत, मौत की सजा केवल उन्हीं मामलों में दी जाती है, जिन्हें अदालत 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' मानती है।

सरकार और न्यायपालिका का मानना है कि मौत की सजा केवल ऐसे अपराधों में दी जानी चाहिए जो अत्यंत विकृत, निरंतर अपराधी के चरित्र को दिखाने वाले, और समाज के लिए बेहद खतरनाक हों। बता दें कि भारत सहित अमेरिका, जापान, चीन और अरब देशों के अलावा 52 देशों ने मृत्युदंड का प्रावधान बरकरार है, वहीं 140 देशों में मौत की सजा को समाप्त कर दिया गया है।

कैसे तय होता है सजा का मापदंड

सजा का मापदंड तय कर पाना आपराधिक कानून में संभव नहीं है। इसलिए न्यायाधीशों को विवेकाधिकार दिए गए हैं, जिसके द्वारा वे सजा तय कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट यह देखता है कि विवेकाधिकार का सही प्रयोग किया गया है या नहीं। न्यायालय सभी परिस्थितियों और कृत्यों को देखकर ही फैसला देता है। यह मनमर्जी से लिया गया फैसला नहीं होता है। कई बार सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ केस की जांच न्यायाधीश केंद्रित नहीं, बल्कि यह समाज की धारणा पर निर्भर करती है और यह विशेष प्रकार के अपराधों में ही लागू की जा सकती है।

जब किसी मामले में 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' का सवाल आता है, तो अदालत का दायित्व यह होता है कि वह पूरे मामले की गहराई से जांच करे और फिर सजा तय करे। कोलकाता आर जी कर मामले में एक महिला डॉक्टर से रेप और मर्डर का केस भी एक गंभीर मामला था, जिसमें आरोपी संजय रॉय ने न केवल मर्डर किया, बल्कि महिला से क्रूरता की हदें भी पार कीं, यह अपराध भी बेहद वीभत्स था लेकिन सियालदह की कोर्ट ने इसे 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' के तहत नहीं माना। 

संजय रॉय को क्यों नहीं मिली फांसी

अदालत ने कहा कि इस अपराध में संजय के मानसिक और शारीरिक हालात के आधार पर उसकी सजा का निर्धारण किया गया। साथ ही, यह भी ध्यान में रखा गया कि उसके खिलाफ कभी किसी गंभीर अपराध का इतिहास नहीं मिला था। संजय के प्रति अदालत का दृष्टिकोण यह था कि उसका अपराध इतनी भयावहता से भरा हुआ नहीं था कि इसे 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' श्रेणी में डाला जा सके। इसके अलावा, अदालत ने उसकी उम्र और मानसिक स्थिति को भी ध्यान में रखा।

आरजी कर केस की पूरी टाइमलाइन

9 अगस्त: कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के सेमिनार हॉल की तीसरी मंजिल पर महिला ट्रेनी डॉक्टर का शव अर्धनग्न अवस्था में पाया गया।

10 अगस्त: कोलकाता पुलिस ने आरोपी सिविक वालंटियर संजय रॉय को हिरासत में लिया। पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों ने पहली बार विरोध प्रदर्शन शुरू किया।

12 अगस्त: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता पुलिस को मामले को सुलझाने के लिए 7 दिन की समयसीमा दी और कहा कि अन्यथा वह इस मामले को सीबीआई को सौंप देंगी। आरजी कर के प्रिंसिपल संदीप घोष ने विरोध के बीच अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

13 अगस्त: कलकत्ता हाई कोर्ट ने मामले को 'बेहद वीभत्स' बताया। कोर्ट ने प्रदर्शनकारी डॉक्टरों से काम पर लौटने का आग्रह किया। इसके साथ ही NHRC ने भी मामले का संज्ञान लिया। आरजी कर के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष को लंबी छुट्टी पर जाने का आदेश देते हुए हाई कोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दिया। इसके बाद सीबीआई ने आरोपियों को हिरासत में लिया।

14 अगस्त: केस की जांच के लिए 25 सदस्यों वाली सीबीआई टीम का गठन किया गया और इसके साथ ही एक फोरेंसिक टीम भी बनाई गई। इस बीच, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने विरोध रैली निकालने की घोषणा की और सैकड़ों छात्रों, लोगों और सामाजिक संगठनों ने सड़कों पर उतरकर जघन्य अपराध के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।

15 अगस्त: भीड़ ने आरजी कर अस्पताल में घुसकर आपातकालीन विभाग और नर्सिंग स्टेशन में तोड़फोड़ की, जिसके बाद आईएमए ने 24 घंटे के लिए देशभर में चिकित्सा सेवाएं बंद करने का आह्वान किया। 

16 अगस्त: पुलिस ने तोड़फोड़ के आरोप में 19 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया।

18 अगस्त: घटना का स्वतः संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 20 अगस्त को तय की।

19 अगस्त: सीबीआई ने संदीप घोष से पूछताछ की। जांच एजेंसी को आरोपी पर पॉलीग्राफ टेस्ट करने की अनुमति दी गई और कोर्ट ने इसे पास कर दिया।

20 अगस्त: तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने डॉक्टरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक नेशनल प्रोटोकॉल तैयार करने के लिए 10 सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन किया। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और कोलकाता पुलिस को स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का भी निर्देश दिया।

21 अगस्त: केंद्र सरकार ने केंद्रीय बलों को आरजी कर अस्पताल की सुरक्षा संभालने का निर्देश दिया। कोलकाता पुलिस ने तोड़फोड़ के मामले में तीन अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया। मुख्य आरोपी के साथ-साथ छह अन्य पर लाई डिटेक्शन टेस्ट किए गए।

25 अगस्त: सीबीआई ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष, पूर्व एमएसवीपी संजय वशिष्ठ और 13 अन्य के आवास पर छापा मारा।

26 अगस्त: पश्चिम बंग छात्र समाज ने 27 अगस्त को नबन्ना अभियान मार्च की घोषणा की और पश्चिम बंगाल की सीएम का इस्तीफा मांगा।

2 सितंबर: संदीप घोष को 2 सितंबर को आरजी कर अस्पताल में वित्तीय धोखाधड़ी के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया।

14 सितंबर: सीबीआई ने संदीप घोष और बलात्कार और हत्या मामले में एफआईआर दर्ज करने में देरी और सबूत गायब होने के आरोप में कोलकाता पुलिस के एक अधिकारी अभिजीत मंडल को गिरफ्तार कर लिया।

3 अक्टूबर: पीड़िता के लिए न्याय की मांग करते हुए कोलकाता में WBJDF के डॉक्टर भूख हड़ताल पर बैठे और डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए कई मांगें भी कीं।

7 अक्टूबर: बलात्कार और हत्या मामले में आरोपी संजय रॉय के खिलाफ सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की।

21 अक्टूबर: CM ममता बनर्जी के साथ लंबे समय से लंबित बैठक के बाद, WBJDF ने अपनी 17 दिन की भूख हड़ताल खत्म कर दी।

4 नवंबर: सियालदह कोर्ट में एकमात्र चार्जशीटेड आरोपी संजय रॉय के खिलाफ सीबीआई ने आरोप तय किए।

11 नवंबर: सियालदह कोर्ट में आरजी कर बलात्कार और हत्या मामले में ट्रायल शुरू हुआ।

12 नवंबर: चार्जशीट दाखिल करने में देरी के कारण बलात्कार और हत्या मामले में अभिजीत मंडल और संदीप घोष सहित आरोपियों को जमानत मिल गई। बलात्कार और हत्या मामले में बंद कमरे में सुनवाई  शुरू हुई।

29 नवंबर: सीबीआई ने आरजी कर वित्तीय अनियमितताओं के मामले में 125 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की जिसमें पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष का नाम शामिल था।

18 जनवरी: सियालदह सेशन कोर्ट ने संजय रॉय को दोषी करार दिया।

20 जनवरी: सियालदह कोर्ट ने आरोपी संजय रॉय को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

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