Friday, April 26, 2024
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Battle of Saragarhi: आज ही के दिन 21 सिख सैनिकों ने 10 हजार अफगानों को हराया था

12 सितंबर 1897 को सारागढ़ी की लड़ाई में 21 सिखों ने 10 हजार की संख्या में अफगान की सेना को धूल चटा दी थी। इस जंग ने कुर्बानी और वीरता की एक नई कहानी लिखी थी।

IndiaTV Hindi Desk Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: September 12, 2020 12:27 IST
Battle of Saragarhi- India TV Hindi
Image Source : HISTORY EXTRA Battle of Saragarhi: आज ही के दिन 21 सिख सैनिकों ने 10 हजार अफगानों को हराया था

नई दिल्ली: सैनिकों की वीरता और अदम्य साहस ने सारागढ़ी के जंग को इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए अमर कर दिया है। 12 सितंबर 1897 को सारागढ़ी की लड़ाई में 21 सिखों ने 10 हजार से ज्यादा अफगान सैनिकों को धूल चटा दी थी। इस जंग ने कुर्बानी और वीरता की एक नई कहानी लिखी थी। सारगढ़ी की लड़ाई पर ही केसरी फिल्म भी बनी थी।

पाकिस्तान में है सारागढ़ी का किला

सारागढ़ी का क़िला पाकिस्तान के उत्तर पश्चिम सीमांत इलाके के कोहाट ज़िले में करीब 6000 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। 1880 के दशक में अंग्रेज़ों ने वहां पर तीन चौकियां बनाईं लेकिन अफगानों ने इसका विरोध किया। बाद में अंग्रजों को यह जगह खाली करनी पड़ी। 1891 में अंग्रेज़ों ने दोबारा अभियान चलाया और उन्हें गुलिस्तां, लॉक्हार्ट और सारागढ़ी में तीन छोटे क़िले बनाने की इजात मिल गई। फिर भी स्थानीय अफगान अंग्रेजों के विरोध में खड़े हो गए। 

अफगानों ने किले पर कब्जे के लिए कई हमले किए
27 अगस्त से 11 सितंबर 1897 के बीच अफगानों ने सारागढ़ी के किले पर कब्जे के लिए कई हमले किए। लेकिन 36वीं सिख रेजिमेंट ने हर बार उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। अंत में 12 सितंबर 1897 को 10 हजार अफगानों ने सारागढ़ी के किले पर हमला कर दिया।

12 सितंबर की सुबह किले को घेर लिया
12 सितंबर की सुबह करीब 10 हजार अफगानों ने किले को चारों तरफ से घेर लिया। हमला होते ही  सिग्नल इंचार्ज ‘गुरुमुख सिंह’ ने लेफ्टिनेंट कर्नल जॉन हॉफ्टन को जानकारी दी। किले तक तुरंत मदद पहुंचाना काफी मुश्किल था। सैनिकों को मोर्चे पर डटे रहने का आदेश मिला। लांसनायक लाभ सिंह और भगवान सिंह ने अपनी रायफल उठा ली और दुश्मनों पर टूट पड़े। दुश्मनों को गोली से भूनते हुए आगे बढ़ रहे भगवान सिंह शहीद हो गए।  

दुश्मनों के खेमे में हडकंप मच गया
सिख सेना के सिपाही गुरमुख सिंह ने अंग्रेज अधिकारी से कहा- 'हम भले ही संख्या में कम हो रहे हैं, पर अब हमारे हाथों में 2-2 बंदूकें हो गई हैं।  हम आख़िरी सांस तक लड़ेंगे', इतना कह कर वह भी जंग में कूद पड़े। उधर सिखों के हौसले से, दुश्मनों के खेमे में हडकंप मच गया। उन्हें ऐसा लगा कि कोई बड़ी सेना अभी भी किले के अन्दर है।

लड़ते-लड़ते सुबह से रात हो गई
अफगानों ने किले पर कब्जा करने के लिए दीवार तोड़ने की कोशिशें की लेकिन वे सफल नहीं हो सके। हवलदार इशर सिंह अपनी टोली के साथ 'जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल' का नारा लगाया और दुश्मनों पर टूट पड़े। दोनों तरफ से गुत्थमगुत्था हुई जांबाज सिखों ने 20 से अधिक दुश्मनों को मार गिराया। लड़ते-लड़ते सुबह से रात हो गई और आखिरकार सभी 21 सिपाही शहीद हो गए। लेकिन तब तक वह करीब 500 से 600 अफगानियों को मार चुके थे। इस लड़ाई ने दुश्मनों का थका दिया और उनकी रणनीति भी फेल हो चुकी थी। नतीजा ये हुआ कि वे ब्रिटिश आर्मी से अगले दो दिन में ही हार गए।

शहीद सिपाहियों को मिला विक्टोरिया क्रॉस
ब्रिटिश पार्लियामेंट 'हाउस ऑफ़ कॉमंस' इन सिपाहियों की बहादुरी की तारीफ की थी। सभी 21 शहीद जवानों को परमवीर चक्र के बराबर विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया। ब्रिटेन में आज भी सरागढ़ी की इस लड़ाई को शान से याद किया जाता है। वहीं भारतीय सेना की सिख रेजीमेंट 12 सितम्बर को हर साल 'सरागढ़ी दिवस' मनाती है।

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