नयी दिल्ली: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के नतीजे के 21 दिन बाद ऐसा पहली बार हुआ जब लोगों को महसूस हो रहा है कि महाराष्ट्र को नया मुख्यमंत्री मिलने वाला है। पहली बार शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की ज्वाइंट मीटिंग हुई और तीनों दलों के नेता मुंबई में एकसाथ बैठे। वहीं सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के बीच चुनाव बाद गठबंधन को सत्ता हासिल करने के लिये मतदाताओं से की गई धोखेबाजी घोषित करने की मांग की गई।
इस याचिका के अगले कुछ दिनों में सुनवाई के लिये सूचीबद्ध होने की उम्मीद है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली शिवसेना के रुख में बदलाव कुछ और नहीं बल्कि लोगों द्वारा राजग में जताए गए भरोसे के साथ विश्वासघात है।
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा केंद्र को भेजी गई उस रिपोर्ट के बाद प्रदेश में मंगलवार को राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके द्वारा तमाम प्रयास करने के बावजूद राज्य में मौजूदा स्थिति को देखते हुए स्थिर सरकार का गठन असंभव है।
प्रमोद पंडित जोशी की तरफ से दायर जनहित याचिका में केंद्र और राज्य को यह निर्देश देने की भी मांग की गई है कि वो शिवसेना, कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की तरफ से आने वाले मुख्यमंत्री की नियुक्त करने से बचें।
अधिवक्ता बरुन कुमार सिन्हा द्वारा दायर की गई याचिका में कहा गया, “शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस का यह कृत्य अनैतिक और सरकार बनाने के लिये दावे की संवैधानिक योजनाओं के विरोधाभासी है।” याचिका में कहा गया कि दो या अन्य राजनीतिक दलों के बीच चुनाव बाद गठबंधन संविधान के तहत मान्य नहीं है क्योंकि यह जनादेश नहीं है।