Friday, April 26, 2024
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‘राहुल गांधी की जगह सचिन पायलट हो सकते हैं प्रधानमंत्री पद के लिए बेहतर विकल्प’

राजनीतिक विश्‍लेषकों के अनुसार गुजरात चुनाव और राजस्‍थान उपचुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए संजीवनी की तरह हैं। इन नतीजों के बाद इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि क्‍या 2019 के चुनावों में कांग्रेस सत्‍ता में वापसी कर सकती है?

IndiaTV Hindi Desk Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: February 15, 2018 12:41 IST
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‘राहुल गांधी की जगह सचिन पायलट हो सकते हैं प्रधानमंत्री पद के लिए बेहतर विकल्प’

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए 2019 की राह बहुत आसान नहीं होने जा रही है। गुजरात चुनाव और राजस्‍थान उपचुनाव के नतीजों ने इस बात के स्‍पष्‍ट संकेत दिए हैं। एक साल पहले तक यह माना जा रहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्‍माई नेतृत्‍व में भाजपा आसानी से सत्‍ता में लौट आएगी इन दोनों राज्यों के चुनाव के नतीजों ने इस बात के संकेत दिए हैं कि भाजपा के लिए आगे की राह बहुत कठिन होने वाली है। इसके पीछे एक बड़ा कारण यह है कि पिछली बार भाजपा ने उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश, छत्‍तीसगढ़ और बिहार जैसे हिंदी पट्टी राज्‍यों की अधिकाधिक सीटें हासिल कर दिल्‍ली की गद्दी को हासिल करने में कामयाबी पाई थी।

राजनीतिक विश्‍लेषकों के अनुसार गुजरात चुनाव और राजस्‍थान उपचुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए संजीवनी की तरह हैं। इन नतीजों के बाद इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि क्‍या 2019 के चुनावों में कांग्रेस सत्‍ता में वापसी कर सकती है? इस साल के अंत तक राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश, छत्‍तीसगढ़ जैसे भाजपा शासित राज्‍यों में चुनाव होने जा रहे हैं। राजस्‍थान उपचुनाव के नतीजे सबके सामने है। इनके तुरंत बाद लोकसभा चुनाव होने हैं। लिहाजा यदि इन विधानसभा चुनावों में भाजपा को अपेक्षित नतीजे नहीं मिले तो इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिलेगा।

राजनीतिक विश्‍लेषक यह भी मान रहे हैं कि हिंदी पट्टी के राज्‍यों से भाजपा को मोटेतौर पर 60 सीटों का नुकसान हो सकता है। यानी इस सूरतेहाल में भाजपा को स्‍पष्‍ट बहुमत नहीं मिलेगा जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को होगा और केंद्र में वह फिर से एक बड़ी ताकत बनकर उभरेगी। मतलब यह हुआ कि कांग्रेस यदि मौजूदा 44 सीटों से आगे बढ़कर तीन अंकों तक पहुंचती है तो भाजपा की सत्‍ता में वापसी की राह में ‘रेड सिग्‍नल’ देखने को मिलेगा।

अब यहीं से बड़ा सवाल उठता है कि क्‍या कांग्रेस बदलती सियासी परिस्थितियों का लाभ उठाने के लिए तैयार है? आखिर कांग्रेस को क्‍या करना होगा जिससे कि वह भाजपा की कीमत पर वोटों को अपनी तरफ आकर्षित करने में कामयाब हो जाए? अंग्रेजी के युवा उपन्‍यासकार और स्‍तंभकार चेतन भगत ने दैनिक भास्‍कर में छपे अपने लेख में इन विषयों पर अपने विचार पेश किए हैं। उन्‍होंने अपने आर्टिकल में कहा है कि भले ही राहुल गांधी कांग्रेस के अध्‍यक्ष बन गए हैं लेकिन यदि युवा नेता सचिन पायलट को पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्‍मीदवार घोषित कर दिया जाए तो वह सर्वश्रेष्‍ठ विकल्‍प हो सकते हैं।

चेतन भगत के अनुसार यह सही है कि राहुल गांधी पार्टी के निर्विवाद नेता हैं लेकिन निष्‍पक्ष मतदाताओं में उनके नाम को लेकर बहुत आपत्तियां हैं। चुनाव में इस तरह के वोटरों की संख्‍या तकरीबन पांच फीसद होती है। ये स्विंग वोटर इधर या उधर झुकने की वजह से किसी को भी झटका दे सकते हैं। इस लिहाज से ऐसे वोटरों को साधने के लिए कांग्रेस को तत्‍काल प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार की घोषणा कर देनी चाहिए और इसके लिए सर्वश्रेष्‍ठ विकल्‍प सचिन पायलट हैं। इसके साथ ही पार्टी को तत्‍काल चुनावी मोड में आ जाना चाहिए।

राहुल गांधी (47) की तुलना में सचिन पायलट (39) युवा नेता हैं। राजस्‍थान कांग्रेस के प्रदेश अध्‍यक्ष हैं और इस प्रदेश में उनका जनाधार है। चेतन भगत के मुताबिक उनके लहजे में राहुल गांधी की तुलना में स्‍वाभाविकता है। इस कारण आम लोगों से वह राहुल की तुलना में सहज ढंग से जुड़ पाते हैं। वह पार्टी की तरफ से ‘फ्रेश’ फेस होंगे। इस तरह का फ्रेश चेहरा मीडिया, सोशल मीडिया और युवा वोटरों में अपील देता है।

इन सबके बीच यदि कांग्रेस सचिन के नेतृत्‍व में राजस्‍थान में जीत जाती है तो यह उनके पक्ष में सबसे बड़ी बात होगी। इसके साथ ही यदि कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के प्रत्‍याशी के रूप में सचिन पायलट का समर्थन करते हैं तो उनका कद भी स्‍वाभाविक ढंग से बढ़ेगा। इस तरह राहुल और सचिन की जोड़ी कमाल कर सकती है।

चेतन भगत के अनुसार कांग्रेस को अपना वैकल्पिक मॉडल पेश करना होगा। केवल भाजपा की आलोचना करने से काम नहीं चलेगा। सुस्‍त अर्थव्‍यवस्‍था और रोजगार पैदा नहीं कर पाने की मौजूदा सरकार की कमजोरियों पर प्रहार करना ठीक है लेकिन साथ ही यह भी बताना होगा कि इकोनॉमी को सुधारने के लिए वह क्‍या करेंगे? रोजगार पैदा करने के लिए उनके पास क्‍या प्‍लान हैं? क्‍या वे जनप्रतिनिधियों द्वारा सांप्रदायिक बयान देने को अपराध घोषित करेंगे? क्‍या करप्‍शन को रोकने के लिए आरटीआई जैसे नए ‘गेमचेंजर’ प्‍लान उनके पास हैं?

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