बसपा प्रमुख मायावती 9 अक्तूबर यानी गुरुवार को लखनऊ में कांशीराम की पुण्यतिथि पर बड़ी रैली करेंगी। 2021 के बाद मायावती का ये पहला बड़ा कार्यक्रम होगा। इसमें लाखों बसपा कार्यकर्ताओं के शामिल होने की उम्मीद है। पूरे लखनऊ शहर में बसपा की होर्डिंग लगाई गई हैं। बसपा के कार्यक्रमो की होर्डिंग्स में मायावती,कांशीराम और डॉ आंबेडकर की ही तस्वीर नज़र आती है लेकिन इस बार मायावती के भाई आनन्द कुमार और भतीजे आकाश आनन्द की होर्डिंग्स अलग से नज़र आ रही हैं।
कई जिलों से आएंगे बसपा कार्यकर्ता
कार्यक्रम कांशीराम स्मारक में होगा लेकिन रैली में आये कार्यकर्ताओ के ठहरने के लिए पार्टी ने रमाबाई अम्बेडकर मैदान में इंतज़ाम किये हैं। बसपा के मुख्य कॉर्डिनेटर अखिलेश अम्बेडकर का कहना है कि बीएसपी का रिकॉर्ड रहा है कि पार्टी जो रिकार्ड बनाती है उसे तोड़ने का काम करती है। पहले से भी ज़्यादा भीड़ होगी और ये कार्यक्रम तय कर देगा कि 2027 में मायावती की सरकार बनेगी।
यूपी में घटा है मायावती का जनाधार
मायावती 2012 से सत्ता से बाहर हैं। यूपी विधान सभा मे बसपा का एक ही विधायक है और लोकसभा चुनाव में तो बसपा एक भी सीट नहीं जीत पाई है। बसपा का वोट शेयर भी लगातार गिर रहा है। अब बसपा का वोट शेयर घटकर 9.38 फीसदी ही रह गया है। मायावती को 2007 के विधानसभा चुनाव में 16 फीसदी दलित वोट मिला था जो 2022 के विधान सभा चुनाव में घटकर 9.96 रह गया। ऐसे में माना जा रहा है कि कांशीराम की पुण्यतिथि के बहाने मायावती अपनी खोई हुई ताकत वापस पाना चाहती हैं।
अखिलेश यादव मनाएंगे कांशीराम की पुण्यतिथि
सिर्फ मायावती ही नहीं अखिलेश यादव भी कल कांशीराम की पुण्यतिथि मनाएंगे। पार्टी कार्यालय में कांशीराम की पुण्यतिथि पर हो रहे कार्यक्रम में शामिल होंगे। पिछले लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव का पीडीए यानि पिछड़ा ,दलित और अल्पसंख्यक फार्मूला काम आया और कांग्रेस के साथ मिलकर अखिलेश ने 43 लोकसभा सीट जीत ली। इनमें 37 सीट अकेले सपा ने जीती।
बता दें कि यूपी में 21 फीसदी दलित वोटर हैं। पीडीए में डी यानि दलित वोट की ताकत अखिलेश यादव जानते हैं। हालांकि इस आयोजन पर मायावती और बीजेपी समाजवादी पार्टी पर सवाल खड़े कर रही हैं। मायावती ने सोशल साइट एक्स पर लिखा है कि समाजवादी पार्टी ने कभी कांशीराम का सम्मान नही किया उधर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने इंडिया टीवी से कहा कि समाजवादी पार्टी हमेशा से दलित विरोधी रही है। सपा अब वोट बैंक की राजनीति के लिए काशीराम को याद कर रही है।


