Saturday, April 27, 2024
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Papmochani Ekadashi 2021: पापमोचनी एकादशी आज, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

प्रत्येक चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पापमोचनी एकादशी का व्रत करने का विधान है। चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि इस बार 7 अप्रैल को पड़ रही है।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: April 06, 2021 22:59 IST
Papmochani Ekadashi 2021: जानिए कब है पापमोचनी एकादशी? साथ ही जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत क- India TV Hindi
Image Source : INSTAGRAM/ANGEL_RADHIKAA Papmochani Ekadashi 2021: जानिए कब है पापमोचनी एकादशी? साथ ही जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

प्रत्येक चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पापमोचनी एकादशी का व्रत करने का विधान है। चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि इस बार 7 अप्रैल को पड़ रही है। लिहाजा इस दिन पापमोचनी एकादशी का व्रत किया जायेगा।  वैसे तो वर्षभर में 24 एकदाशियां पड़ती हैं, लेकिन जब अधिकमास या मलमास आता है, तो इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। सालभर की सभी एकादशियों का व्रत भगवान विष्णु के निमित्त किया जाता है | एकादशी व्रत में श्री विष्णु की पूजा- अर्चना करने और उनके निमित्त कुछ उपाय करने से आपको विशेष रूप से लाभ मिलेगा। 

एकादशी के दिन व्रत और पूजा-पाठ करके आप भगवान विष्णु का आर्शीवाद प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही दांपत्य जीवन सुखमय रहने के साथ परिवार में खुशहाली रहेगी। 

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पापमोचनी एकादशी के दिन बन रहे ये शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि आरंभ: 07 अप्रैल, तड़के 2 बजकर 10 मिनट से

एकादशी तिथि समापन: 08 अप्रैल, तड़के 2 बजकर 29 मिनट तक
एकादशी व्रत पारण मुहूर्त: 08 अप्रैल, गुरुवार दोपहर 01 बजकर 39 मिनट से शाम 04 बजकर 11 मिनट तक.

पापमोचनी एकादशी की पूजा विधि

प्रात:काल सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा पर घी का दीपक जलाएं। जाने-अनजाने में आपसे जो भी पाप हुए हैं उनसे मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु से हाथ जोड़कर प्रार्थना करें। इस दौरान 'ऊं नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जप निरंतर करते रहें। एकादशी की रात्रि प्रभु भक्ति में जागरण करे, उनके भजन गाएं। भगवान विष्णु की कथाओं का पाठ करें। द्वादशी के दिन उपयुक्त समय पर कथा सुनने के बाद व्रत खोलें।

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एकादशी व्रत दो दिनों तक होता है लेकिन दूसरे दिन की एकादशी का व्रत केवल सन्यासियों, विधवाओं अथवा मोक्ष की कामना करने वाले श्रद्धालु ही रखते हैं। व्रत द्वाद्शी तिथि समाप्त होने से पहले खोल लेना चाहिए लेकिन हरि वासर में व्रत नहीं खोलना चाहिए और मध्याह्न में भी व्रत खोलने से बचना चाहिये। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो रही हो तो सूर्योदय के बाद ही पारण करने का विधान है।

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा

व्रत कथा के अनुसार चित्ररथ नामक वन में मेधावी ऋषि कठोर तप में लीन थे। उनके तप व पुण्यों के प्रभाव से देवराज इन्द्र चिंतित हो गए और उन्होंने ऋषि की तपस्या भंग करने हेतु मंजुघोषा नामक अप्सरा को पृथ्वी पर भेजा। तप में विलीन मेधावी ऋषि ने जब अप्सरा को देखा तो वह उस पर मन्त्रमुग्ध हो गए और अपनी तपस्या छोड़ कर मंजुघोषा के साथ वैवाहिक जीवन व्यतीत करने लगे।

कुछ वर्षो के पश्चात मंजुघोषा ने ऋषि से वापस स्वर्ग जाने की बात कही। तब ऋषि बोध हुआ कि वे शिव भक्ति के मार्ग से हट गए और उन्हें स्वयं पर ग्लानि होने लगी। इसका एकमात्र कारण अप्सरा को मानकर मेधावी ऋषि ने मंजुधोषा को पिशाचिनी होने का शाप दिया। इस बात से मंजुघोषा को बहुत दुःख हुआ और उसने ऋषि से शाप-मुक्ति के लिए प्रार्थना करी।

क्रोध शांत होने पर ऋषि ने मंजुघोषा को पापमोचनी एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करने के लिए कहा। चूंकि मेधावी ऋषि ने भी शिव भक्ति को बीच राह में छोड़कर पाप कर दिया था, उन्होंने भी अप्सरा के साथ इस व्रत को विधि-विधान से किया और अपने पाप से मुक्त हुए।

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