बिहार विधानसभा चुनाव जोरों पर है। सभी के मन में एक ही सवाल है कि इस बार बिहार का मुख्यमंत्री कौन होगा? बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बीच जब सियासत के समीकरणों पर बहस छिड़ी हुई है, तब एक ऐसा नाम फिर से सुर्खियों में है जो बिहार की राजनीति का अनोखा अध्याय है। हम बात कर रहे हैं अब्दुल गफूर की, जिन्हें सियासी गलियारों में 'चाचा गफूर' भी कहा जाता था।
बिहार में अब तक बने 23 मुख्यमंत्री
ये बिहार के इकलौते मुस्लिम मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने 1973-75 के बीच राज्य की कमान संभाली थी। आजादी के बाद 73 सालों में बिहार को 23 मुख्यमंत्रियों का गौरव प्राप्त हुआ है, लेकिन मुस्लिम समुदाय से सिर्फ यही एक चेहरा सत्ता के शिखर पर पहुंचा। आइए, जानते हैं चाचा गफूर के जीवन की कुछ ऐसी रोचक बातें, जो उनके सियासी सफर को बयां करती हैं।
किसान परिवार में अब्दुल गफूर का हुआ जन्म
अब्दुल गफूर का जन्म 1918 में गोपालगंज जिले के छोटे से गांव सिराजपुर में एक किसान परिवार में हुआ था। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पढ़ाई के दौरान ही स्वतंत्रता का जज्बा जागा। वे महात्मा गांधी के कट्टर प्रशंसक थे, लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज से भी प्रभावित हुए। 1941 में फॉरवर्ड ब्लॉक जॉइन किया, लेकिन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफ्तार हो गए। जेल से रिहा होने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए। मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ उन्होंने जोरदार अभियान चलाया था।
अब्दुल गफूर ऐसे बने बिहार के सीएम
चाचा गफूर 1952 में पहली बार विधायक बने और बरौली विधानसभा सीट को अपना गढ़ बनाया, जहां से वह चार बार चुनाव जीते। 1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद केदार पांडेय सीएम बने, लेकिन आंतरिक कलह से सरकार लड़खड़ा गई। इंदिरा गांधी ने अल्पसंख्यक चेहरा देने के लिए 2 जुलाई 1973 को गफूर को बिहार का 13वां मुख्यमंत्री बनाया। वे राज्य के पहले और इकलौते मुस्लिम सीएम बने।
सिर्फ 21 महीने चला सीएम का कार्यकाल
सीएम रहते अब्दुल गफूर ने भ्रष्टाचार पर कड़ा रुख अपनाया, कई सुधार लागू किए। लेकिन उनका कार्यकाल सिर्फ 21 महीने चला। 11 अप्रैल 1975 को इंदिरा ने उन्हें हटा दिया और जगन्नाथ मिश्र को सीएम का पद सौंप दिया गया। चाचा गफूर ने सीएम बनने के बाद गोपालगंज को जिला का दर्जा दिलवाया था, जो उनके गृह क्षेत्र के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। गोपालगंज से वे दो बार सांसद भी बने। बाद में वह राजीव गांधी सरकार में आवास और शहरी विकास मंत्री रहे।
सीएम रहते कराई लाठीचार्ज, 8 छात्रों की गई जान
सीएम रहते गफूर का कार्यकाल बिहार राजनीति का सबसे विवादास्पद दौर था। 1974 में जयप्रकाश नारायण (JP) के नेतृत्व में भ्रष्टाचार विरोधी छात्र आंदोलन भड़का था। 4 नवंबर 1974 को पटना के गांधी मैदान में युवाओं पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया, जिसमें 8 छात्र मारे गए। तब गफूर सरकार पर 'हिंसा' का आरोप लगा था। इस घटना ने जेपी आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर धक्का दिया, जो बाद में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल (1975) का कारण बनी। गफूर ने खुद कहा था, 'आंदोलन को कुचलना जरूरी था, वरना अराजकता फैल जाती।'
ताड़ी पीने के थे शौकीन
सीएम रहते हुए भी चाचा गफूर बिना सिक्योरिटी के सफेद फिएट कार खुद चलाते। हर शाम पटना के बेली रोड पर रुककर पान की दुकान से बीड़ा लेते। ऐसा भी कहा जाता है कि वे ताड़ी पीने के शौकीन थे। उनके अंदर ये एक ऐसी आदत थी, जो मुस्लिम समुदाय के लोगों में दुर्लभ थी।
नीतीश की समता पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष भी बने
1996 में अब्दुल गफूर नीतीश कुमार की समता पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष बने और गोपालगंज से सांसद चुने गए। उनकी विरासत आज भी जिंदा है। पोते आसिफ गफूर बिहार कांग्रेस के महासचिव हैं और 2010 में बरौली विधानसभा से चुनाव भी लड़े थे। 10 जुलाई 2004 को 86 साल की आयु में उनका निधन हो गया था। बिहार में करीब 17% मुस्लिम आबादी होने के बावजूद, गफूर के बाद कोई मुस्लिम सीएम नहीं बन सका है।