Saturday, April 27, 2024
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2017 से 2019 तक 24 हजार से अधिक बच्चों ने की आत्महत्या, NCRB ने जारी किया आंकड़ा

संसद में हाल में पेश राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक 14-18 आयु वर्ग के कम से कम 24,568 बच्चों ने वर्ष 2017-19 के बीच आत्महत्या की। इनमें 13,325 लड़कियां शामिल हैं।

IndiaTV Hindi Desk Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: August 01, 2021 18:03 IST
2017 से 2019 तक 24 हजार से अधिक बच्चों ने की आत्महत्या, NCRB ने जारी किया आंकड़ा - India TV Hindi
Image Source : PTI FILE PHOTO 2017 से 2019 तक 24 हजार से अधिक बच्चों ने की आत्महत्या, NCRB ने जारी किया आंकड़ा 

नयी दिल्ली। सरकार के एक आंकड़े के मुताबिक देश में वर्ष 2017-19 के बीच 14-18 आयु वर्ग के 24 हजार से अधिक बच्चों ने आत्महत्या की है, जिनमें परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने से आत्महत्या करने के चार हजार से अधिक मामले शामिल हैं।

संसद में हाल में पेश राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक 14-18 आयु वर्ग के कम से कम 24,568 बच्चों ने वर्ष 2017-19 के बीच आत्महत्या की। इनमें 13,325 लड़कियां शामिल हैं। अगर इन्हें वर्षवार देखा जाए तो 2017 में 14-18 आयु वर्ग के कम से कम 8,029 बच्चों ने आत्महत्या की थी, जो 2018 में बढ़कर 8,162 हो गई और 2019 में यह संख्या बढ़कर 8,377 हो गई।

इस आयु वर्ग में आत्महत्या के सबसे अधिक मामले मध्य प्रदेश से सामने आए जहां 3,115 बच्चों ने आत्महत्या की, इसके बाद पश्चिम बंगाल में 2,802, महाराष्ट्र में 2,527 और तमिलनाडु में 2,035 बच्चों ने आत्महत्या की। आंकड़ों में कहा गया कि 4,046 बच्चों ने परीक्षा में फेल होने से, 639 बच्चों ने विवाह से जुड़े मुद्दों पर आत्महत्या की, इनमें 411 लड़कियां शामिल हैं। इसके अलावा 3,315 बच्चों ने प्रेम संबंधों के चलते और 2,567 बच्चों ने बीमारी के कारण, 81 बच्चों ने शारीरिक शोषण के तंग आ कर आत्महत्या कर ली।

आत्महत्या के पीछे किसी प्रियजन की मौत, नशे का आदी होना, गर्भधारण करना, सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल होना, बेरोजगारी, गरीबी आदि वजहें भी बताई गईं। बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था ‘क्राई- चाइल्ड राइट्स एंड यू’ की मुख्यकार्यकारी अधिकारी पूजा मारवाह ने कोरोना वायरस संक्रमण के कारण हालात खराब होने पर चिंता जताते हुए स्कूल पाठ्यक्रमों में जीवन कौशल प्रशिक्षण को शामिल करने और स्वास्थ्य देखभाल और कुशलता के एजेंडे में मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करने पर जोर दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘छोटे बच्चे अक्सर आवेग में आ कर आत्महत्या की कोशिश करते हैं। ये भाव दुख से, भ्रम से, गुस्से, परेशानी, मुश्किलों आदि से जुड़े हो सकते हैं। किशोरों में आत्महत्या के मामले दबाव, खुद पर विश्वास की कमी, सफल होने का दबाव आदि बातों से जुड़े हो सकते हैं और कुछ किशोर आत्महत्या को समस्याओं का हल मान लेते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि प्रत्येक बच्चा और किशोर गुणवत्तापरक मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और मानसिक-सामाजिक सहयोग तंत्र पाने का हकदार है। उनका अच्छा मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करके उनके व्यक्तित्व को पूरी तरह से निखर कर सामने लाने में मदद मिलेगी और वे समाज के जिम्मेदार सदस्य बनेंगे।’’

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