Friday, April 26, 2024
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Rajat Sharma’s Blog: वैक्सीन के अलावा अब और कोई रास्ता नहीं

इस वक्त देश को संकट से निकालना है। अब सिर्फ तीन-चार महीने की बात है। हम सब वैक्सीनेशन के काम में लग जाएं तो बच जाएंगे। लोगों की जान भी बचेगी और जिंदगी वापस पटरी पर भी आएगी।

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated on: May 25, 2021 9:42 IST
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

कोरोना को लेकर अब ये तू-तू-मैं-मैं बंद होनी चाहिए। बड़ी मुश्किल से कोरोना के केसेज कम हुए हैं। लॉकडाउन की मार सहकर मरने वालों की संख्या कम हुई है। अब सारा जोर वैक्सीनेशन पर होना चाहिए। क्योंकि सच तो ये है कि जब तक 70 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन नहीं लगेगी, तब तक इस वायरस से छुटकारा नहीं मिलेगा। क्या हो जाएगा बार-बार ये कहने से कि वैक्सीन की कमी है ? क्या हो जाएगा मोदी को बार-बार इस बात के लिए ब्लेम करके कि राज्यों को वैक्सीन नहीं दी? फिर बीजेपी वाले आपको बताएंगे कि भारत उन गिने-चुने मुल्कों में है जिसने अपनी वैक्सीन डेवलप की। वो बताएंगे कि कैसे प्रोडक्शन बढ़ाई जा रही हैं,  कैसे दिसंबर तक दो सौ करोड़ वैक्सीन तैयार हो जाएगी।

आप पूछते रहिए कि वैक्सीन पहले क्यों नहीं तैयार करवाई। पहले ऑर्डर क्यों नहीं दिया? वो याद कराएंगे कि कांग्रेस के चीफ मिनिस्टर्स ने कहा था कि ये वैक्सीन बेकार है। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा था कि ये बीजेपी की वैक्सीन है। नतीजा ये हुआ था कि बड़ी संख्या में  हैल्थ वर्कर्स ने आज तक वैक्सीन नहीं लगवाई। गांव में आज भी वैक्सीन को लेकर लोगों में शंका है। आप कहेंगे कि कंपनी को जनवरी मे ऑर्डर क्यों दिया ? अमेरिका में कई महीनों पहले दे दिया। वो आपको बता देंगे कि हमारे यहां इमरजेंसी यूज की परमिशन जनवरी में मिली। अगर सरकार पहले ऑर्डर दे देती तो यही लोग कह देते कि जिस दवा का एप्रूवल नहीं मिला उसका ऑर्डर देना गलत था। इसीलिए मैं कहता हूं कि इस तू-तू मैं-मैं से कुछ नहीं होगा।

आप कहते रहिए कि गंगा में लाशें तैर रही थी। कहिए कि शर्म आनी चाहिए। तो वो आपको महाराष्ट्र की लाशें गिनवा देंगे। वो आपको बताएंगे कि यूपी में महाराष्ट्र के मुकाबले दो गुना आबादी है । यूपी में 16 लाख 70 हजार केसेज हैं और महाराष्ट्र में 55 लाख 80 हजार केसेज हैं। लाशें गिननी है तो महाराष्ट्र में गिनो वहां 88620 मौतें हुईं, जबकि यूपी में 19209। मुझे लगता है कि अब लाशों की गिनती का वक्त नहीं है। अगर लाशों की गिनती से कोरोना का विनाश हो सकता तो जरूर करते। पर भला तो गांव-गांव में दवाइयां पहुंचाने से होगा। घर-घर में वैक्सीनेशन का इंतजाम करने से होगा।

आप कहते रहिए कि कुंभ मेले से वायरस फैला। वो पूछेंगे कि क्या कुंभ मेला बीजेपी का था। क्या कांग्रेस का समर्थन करने वाले साधुओं ने वहां डेरा नहीं लगाया? आप उन्हें कुंभ की याद दिलाएंगे तो वो पूछेंगे कि जो किसान छह महीने से धरने पर बैठे हैं उनको किसी ने क्यों नहीं रोका। मोदी ने तो कुंभ के साधुओं से मेले को सिंबॉलिक करने की अपील की थी, वो मान भी गए थे। क्या विरोधी दल के किसी नेता ने किसानों से कहा कि धरना सिंबॉलिक कर लो। इसीलिए मैं कहता हूं कि एक दूसरे की कमियां गिनाने से काम नहीं चलेगा।

आप कहिए कि ऑक्सीजन की कमी थी, हॉस्पिटल में बैड की कमी थी, दवाइयों की कमी थी, इजैक्शन की कमी थी। ये सही है कि कमी थी, भारी कमी थी। ये भी सही है कि लोग परेशान हुए। लेकिन क्या जब ये सामने आया तो सरकार तमाशा देखती रही? हाथ पर हाथ धरे बैठी रही? ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए रेलवे से लेकर एयरफोर्स और नेवी तक को तुरंत लगाया गया। ग्रीन कॉरीडोर बने। विदेशों से टैंकर मंगाए गए। रातों रात नए ऑक्सीजन प्लांट खड़े हो गए। ये पूरे देश ने मिलकर किया। और ये मत भूलिए कि अंबानी और अडानी ने ऑक्सीजन सप्लाई में सबसे बड़ा योगदान दिया। तो अब क्यों नहीं कहते कि अंबानी-अडानी की ऑक्सीजन है। आज ऐसी सब बातों की जरूरत नहीं है अब ऑक्सीजन की सप्लाई पर्याप्त है। ये कैसे हुई, किसने करवाई, इन सब बातों का अब कोई मतलब नहीं। अब इंजैक्शन भी मिल रहे हैं, हॉस्पिटल्स में बैड भी हैं।  लगता है कि सबसे बुरा वक्त गुजर गया। पर बहुत नुकसान कर गया। अपने साथ छोड़ गए। लेकिन इस देश ने कभी बीती बातों पर रोना नहीं रोया। ये हमारी फितरत में नहीं, कई बार आघात लगे ,हम हर बार उठ खड़े हुए, आगे बढे़।

आप कहते रहिए दूसरी लहर आ गई सरकार ने बताया नहीं। वो भी आपको गिनवा देंगे कि मोदी ने कितनी बार बताया था। वो दिखा देंगे मोदी ने कितनी बार चिट्ठियां लिखी थी,लेकिन सच तो ये है कि किसी ने परवाह नहीं की। न सीएम ने, न डीएम ने। और सिर्फ अफसरों, मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को क्यों दोष दें। हमने क्या किया। पार्टियां की, शादियां की, लोग गले मिलने लगे, जाम टकराने लगे, सबने सोचा कोरोना तो गया। ये मत भूलिए कि कुछ लोग मांग कर रहे थे कि स्कूल खोला अब बच्चे घर पर नहीं बैठ सकते। अदालतों ने वर्चुअल हियरिंग छोड़कर आमने-सामने सुनवाई शुरू कर दी। लोग छुट्टियां मनाने निकल पड़े। फिल्मों की शूटिंग शुरू हो गई। मंदिरों में भीड़ लगनी शुरू हो गई। क्या ये सब करने को सरकारों ने कहा था? हमें भी अपने गिरेबां में झांक कर देखना चाहिए।

आप कह सकते हैं कि मोदी ने इलैक्शन रैलियां क्यों की। तो क्या सिर्फ मोदी ने रैलियां कीं। राहुल गांधी केरल में और ममता बनर्जी बंगाल में, क्या रैलियां एड्रैस नहीं कर रहे थे। हम कब तक इस बात में पड़े रहेंगे कि मेरी कमीज तेरी कमीज से सफेद है। आप कहेंगे कि रैलियों से, इलैक्शन से कोरोना फैला। तो फिर वो ये पूछेंगे कि महाराष्ट्र में,पंजाब में,और दिल्ली में जहां कोरोना सबसे तेज़ रफ्तार से बढ़ा वहां कौन सी रैलियां थी, वहां कौन से इलैक्शन थे। मुझे लगता है कि ब्लेम गेम काफी हो गया। अब टूलकिट को कुछ दिन के लिए भूल जाना चाहिए। सोशल मीडिया पर हंगामा क्रिएट करने वाली अपनी-अपनी फौजों को सीजफायर करने के लिए कहना चाहिए।

हमारे यहां जो हुआ, उससे पूरी दुनिया में जैसी बदनामी हुई, वो अब न हो। जब दुनिया हमें ये बताए कि हमारे यहां लोग इसलिए मरे क्योंकि हमारे यहां हैल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं था। तो हम भी पूछ सकते हैं कि अमेरिका में तो सबसे एडवांस हैल्थ सिस्टम है वहां क्यों दुनिया में सबसे ज्यादा लोग मरे? ये ठीक है कि हमारे यहां श्मशानों में लाशों की लाइनें थी। लेकिन अमेरिका में जिन अखबार वालों ने ये तस्वीरें छापी उनसे पूछना पड़ेगा कि क्या अमेरिका के कब्रिस्तानों में जगह कम नहीं पड़ी, क्या वहां फ्रीजर वाले ट्रकों में लाशों को कई-कई दिन तक नहीं रखना पड़ा?

इसीलिए हमारे देश में आज आपस में झगड़ने की जरूरत नहीं हैं । इस वक्त देश को संकट से निकालना है। सबको मिलकर सुनिश्चित करना है कि अब हॉस्पिटल न होने से,ऑक्सीजन न होने से,कोई मौत के मुंह में न जाए। अब सिर्फ तीन-चार महीने की बात है। हम सब वैक्सीनेशन के काम में लग जाएं तो बच जाएंगे। लोगों की जान भी बचेगी और जिंदगी वापस पटरी पर भी आएगी। दुनिया में कई मुल्क ऐसे हैं जिनमें वैक्सीन में देरी हुई, वहां अब भी लोग इंतजार में हैं लेकिन वहां लोगों ने मास्क लगाया। हमारी तरह सिर्फ गले में नहीं लटकाया।

जो लोग अमेरिका और यूरोप से कंपेयर करते हैं उन्हें ये नहीं भूलना चाहिए कि इन देशों में किसी ने नकली इंजैक्शन नहीं बेचे। किसी ने ऑक्सीजन की होर्डिंग नहीं की। लोग दवाइयां अपने घरों में दबाकर नहीं बैठे। किसी ने हॉस्पिटल बैड के लिए पैसे नहीं मांगे। किसी ने लाशों के कफन उतार कर नहीं बेचे। वहां तो कोई सोच भी नहीं सकता कि कोई वैक्सीन की फर्जी वेबसाइट बनाकर लोगों को लूटेगा। वहां कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि मरते हुए लोगों को इंजैक्शन की शीशी में पानी भरकर बेच दिया जाएगा। ऑक्सीजन सिलेंडर के नाम पर फायर एक्सटिंग्विशर बेच दिया जाएगा।

आज आरोप लगाने का नहीं, अपनी आत्मा से सवाल पूछने का समय है। अगर हम सुरक्षित रहना चाहते हैं तो ये याद रखें कि तीन हफ्ते पहले न ऑक्सीजन थी,न हॉस्पिटल, न बैड। अब सब कुछ अवेलेवल है। इसलिए कि सबने अपनी पूरी ताकत लगाई थी। अब जनता ये नहीं जानना चाहती कि गलती किसकी थी, राज्य सरकारों की या केन्द्र सरकार की, हॉस्पिटल की या सप्लायर की। अब लोग राहत चाहते हैं। इस मुसीबत से छुटकारा चाहते हैं, इसलिए बहसबाजी बंद हो। वैक्सीनेशन पर फोकस हो क्योंकि इसके अलावा और कोई रास्ता भी नहीं है। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 24 मई, 2021 का पूरा एपिसोड

 

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