Wednesday, May 08, 2024
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Rajat Sharma’s Blog: तालिबान की तारीफ़ करने वाले जान लें, वह अब भी हैवानियत कर रहा है

20 साल पहले तालिबान के शासन के वक्त उसके जुल्म को रिकॉर्ड करने के लिए स्मार्टफोन नहीं थे, लेकिन अब जमाना बदल गया है।

Rajat Sharma Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: August 19, 2021 18:29 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि हमारे देश में कुछ ऐसे तालिबान समर्थक हैं जिन्हें ये लगता है कि अफगानिस्तान में तालिबान की जीत से दुनियाभर के मुसलमानों का हौसला बढ़ेगा। ये लोग तालिबान के काबुल पर कब्जे पर उसे बधाई दे रहे हैं, तालिबानी नेताओं को सलाम पेश कर रहे हैं और उनके लिए दुआ कर रहे हैं। साथ ही ये लोग उम्मीद कर रहे हैं कि दुनिया के तमाम इलाकों में भी इसी तरह की क्रान्ति होगी। जो लोग ऐसा कह रहे हैं वे आम लोग नहीं हैं, बल्कि वे खुद को भारत के मुसलमानों का रहनुमा बताते हैं।

इनमें से ही एक ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना सज्जाद नोमानी हैं, जिन्होंने अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे की तारीफ की है। उन्होंने कहा कि ‘यह हिंदी मुसलमान आपको सलाम करता है।’ नोमानी ने कहा कि यह नया तालिबान है, पहले से अलग है, और महिलाओं की इज्जत करता है। बुधवार की देर रात मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने नोमानी के बयान से खुद को अलग कर लिया और कहा कि यह बोर्ड की आधिकारिक स्थिति नहीं है।

इसी तरह समाजवादी पार्टी के एक सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने तालिबान की जीत की तुलना भारत के स्वतंत्रता संग्राम से कर दी। इसके बाद बर्क पर राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया है। बर्क ने कहा, तालिबान ने अफगान लोगों की आजादी के लिए उसी तरह लड़ाई लड़ी, जैसे भारत के लोगों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ी थी। मेरा मानना है कि भारत में हजारों ऐसे लोग हो सकते हैं जो अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे को लेकर खुश होंगे, लेकिन सबके सामने इसे जाहिर नहीं कर रहे हैं। इन लोगों का मानना है कि तालिबान बदल गया है और वह अफगानिस्तान में महिलाओं पर जुल्म नहीं करेगा।

मैंने मंगलवार को भी ये बात कही थी और आज फिर कह रहा हूं कि तालिबान ना बदला है, ना बदला था और ना बदलेगा। बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने तालिबान के लड़ाकों के अपने विरोधियों पर जुल्म करने और यहां तक कि महिलाओं और बच्चों को बेंत मारने की तस्वीरें और वीडियो दिखाए थे। जो लोग कह रहे हैं कि तालिबान को 20 साल तक अमेरिका के खिलाफ जंग लड़ने के बाद अफगानिस्तान पर हुकूमत करने का मौका दिया जाना चाहिए, उन्हें ये वीडियो जरूर देखने चाहिए जिनमें साफ नजर आ रहा है कि तालिबान के लड़ाके अपने विरोधियों को सबके सामने मौत के घाट उतार रहे हैं, पुरानी सरकार के समर्थकों को खुलेआम प्रताड़ित कर रहे हैं, और काबुल एयरपोर्ट के बाहर महिलाओं और बच्चों की पिटाई कर रहे हैं।

जब तालिबान नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर और उनके सहयोगी 20 साल के निर्वासन के बाद मंगलवार को कतर एयर फोर्स के प्लेन से कंधार पहुंचे, तो तालिबान लड़ाकों ने उनका स्वागत किया। बरादर के पहुंचने के बाद सैकड़ों गाडियों का काफिला एयरपोर्ट से कांधार के गवर्नर हाउस के लिए निकला और इसके बाद रात में जमकर आतिशबाजी हुई। और अगली सुबह ही मौत के तांडव की तस्वीरें आ गईं। कंधार के लिए हुई लड़ाई के बाद हिरासत में लिए गए 4 अफगान कमांडरों को फांसी पर लटका दिया गया। इन कमांडरों की फांसी देखने के लिए कंधार के लोगों को स्टेडियम में बुलाया गया था।

तालिबान ने जिस अंदाज में इन चारों कमांडरों को फांसी पर लटकाया उससे 90 के दशक की यादें ताजा हो गईं जब वे लोगों को ऐसे ही सबके सामने मौत के घाट उतार दिया करते थे। तालिबान ने कंधार के उन कमांडरों को मारा है जो एक जमाने में कंधार के पुलिस चीफ रहे जनरल अब्दुल रज्जाक के काफी करीब थे। जनरल रज्जाक को तालिबान का काल माना जाता था और कंधार से तालिबान को निकाल बाहर करने में उनका अहम रोल था। 3 साल पहले तालिबान ने उन्हें मार डाला था लेकिन इसके बाद भी जनरल रज्जाक के कमांडर्स तालिबान से मोर्चा लेते रहे।

तालिबान ने उन लोगों को भी नहीं बख्शा जिन्होंने हथियार डाल दिए थे। कंधार के तख्त-ए-पुल जिले के चीफ हाशिम रेगवाल ने तालिबान के सामने सरेंडर कर दिया था, लेकिन बुधवार को उन्हें भी सबके सामने सूली पर लटका दिया गया। उनके साथ जिन लोगों को मौत के घाट उतारा गया उनमें पूर्व पुलिस प्रमुख और अन्य स्थानीय कमांडर थे। भारत में जो लोग अभी भी इस मुगालते में जी रहे हैं कि तालिबान अब रहमदिल हो गया है उन्हें ये वीडियो देखने के बाद एक बार फिर से सोचना चाहिए।

जलालाबाद में कुछ स्थानीय लोग अफगानिस्तान के राष्ट्रीय ध्वज की जगह तालिबान का झंडा लगाये जाने के विरोध में मार्च निकाल रहे थे। तालिबान के लड़ाकों ने इस शांतिपूर्ण ढंग से हो रहे मार्च पर गोलियां बरसाईं। इस घटना में 3 से ज्यादा लोगों की जान चली गई। प्रोटेस्ट मार्च का वीडियो ले रहे पत्रकारों को पकड़कर पीटा गया और उन्हें चेतावनी दी गई कि इस तरह का कोई भी वीडियो न लें। तालिबान लड़ाकों ने धमकी दी कि अगर वे ऐसा करते हुए दोबारा पकड़े गए तो जान से हाथ धोना पड़ सकता है।

पिछली सरकार के समर्थक माने जाने वाले अफगानों को उनके घरों से निकालकर काबुल की सड़कों पर उनकी परेड निकाली गई। उन्हें बेंत और कोड़ों से पीटा गया, उनका सिर मूंड दिया गया, उनके चेहरे पर कालिख पोती गई और फिर तालिबान उन्हें किसी अज्ञात स्थान पर ले गए। ऐसा सबके सामने किया गया जिससे आम अफगानों में दहशत फैल गई। भारत में जिन लोगों को तालिबान की कथनी पर भरोसा है उन्हें यह वीडियो देखना चाहिए और तालिबान के बारे में अपनी राय पर फिर से सोचना चाहिए।

20 साल पहले तालिबान के शासन के वक्त उसके जुल्म को रिकॉर्ड करने के लिए स्मार्टफोन नहीं थे, लेकिन अब जमाना बदल गया है। अब ज्यादातर अफगानों के पास स्मार्टफोन हैं। वे तालिबान के एक-एक जुल्म को रिकॉर्ड करते हैं और सोशल मीडिया पर डाल देते हैं। इससे कुछ ही समय के अंदर पूरी दुनिया को तालिबान की हरकतों के बारे में पता चल जाता है।

भारत में जो लोग मानते हैं कि तालिबान महिलाओं के प्रति नरमी बरतेगा, उन्हें एक और वीडियो देखने के बाद अपनी राय बदल देनी चाहिए। बुधवार को तालिबान के लड़ाकों ने काबुल इंटरनेशनल एयरपोर्ट के बाहर देश छोड़कर जाने के लिए फ्लाइट का इंतजार कर रही महिलाओं और बच्चों की पिटाई कर दी। तालिबान के लड़ाकों ने महिलाओं और मासूम बच्चों पर कोड़े और बेंत बरसाए। वे देश छोड़कर जाने की कोशिश कर रहे अफगानों की भीड़ को तितर-बितर करना चाहते थे।

मौलाना सज्जाद नोमानी जैसे लोग जो तालिबानी कमांडरों को सलाम-ए-मोहब्बत पेश कर रहे हैं, उन्हें ये तस्वीरें और वीडियो देखकर अपनी बात पर शर्म आएगी। जमात-ए-इस्लामी हिंद ने भी तालिबान का स्वागत किया है। जमात के अध्यक्ष सैयद सदातुल्ला हुसैनी ने अफगानिस्तान में शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता पर कब्जा करने के लिए तालिबान की तारीफ की। उन्होंने कहा, ‘यह जानकर खुशी हो रही है कि अफगानों (तालिबान पढ़ें) की दृढ़ता और संघर्ष के कारण साम्राज्यवादी ताकतों को उनके देश से बाहर निकलना पड़ा।’

जमात प्रमुख ने कहा, ‘तालिबान के पास इस्लाम की उदार और रहमदिल व्यवस्था का एक व्यावहारिक उदाहरण दुनिया के सामने पेश करने का मौका है। इस्लाम सभी को अपने धर्म मानने की स्वतंत्रता देता है। हमें उम्मीद है कि अफगानिस्तान के नए शासक इस्लाम की इन शिक्षाओं का सख्ती से पालन करेंगे और दुनिया के सामने एक ऐसे इस्लामी कल्याणकारी राज्य का उदाहरण पेश करेंगे जहां हर कोई भय और आतंक से मुक्त हो।’

जमीनी हकीकत जमात-ए-इस्लामी चीफ की इन पाक उम्मीदों पर पानी फेर देती हैं। अफगानिस्तान की महिलाएं और लड़कियां काबुल एयरपोर्ट पर तैनात अमेरिकी फौजियों से मदद की गुहार लगा रही हैं, उन्हें मुल्क से बाहर निकालने की अपील कर रही हैं हैं। काबुल एयरपोर्ट के भीतर का एक वीडियो सामने आया है जिसमें वहां से निकाले जाने का इंतजार कर रही कुछ लड़कियां अफगानिस्तान का कौमी तराना गाना गा रही हैं, और इसके जरिए अपना दर्द बयां कर रही हैं। ये लड़कियां बता रही हैं कि वे कैसे बेघर हो चुकी हैं, खौफ के साए में जी रही हैं और उनकी आजादी छिन चुकी है।

महिलाओं को पर्याप्त अधिकार देने की बात करने वाले तालिबान ने बल्ख प्रांत की पहली महिला गवर्नर सलीमा मजारी का अपहरण कर लिया है। सलीमा ने तालिबान के विरोध में हथियार उठाए थे। यहां तक कि जब अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी काबुल से भाग गए थे, तब भी सलीमा ने बल्ख प्रांत में रहने का फैसला किया। आखिरकार तालिबान ने उन्हें पकड़ लिया। अब उनका कोई अता-पता नहीं है।

अफगान मीडिया में काम करने वाली महिला ऐंकर्स और रेडियो प्रजेंटर्स को ड्यूटी पर नहीं आने को कहा गया है। उन्हें साफ बता दिया गया है कि उन्हें नौकरी से निकाला जा चुका है क्योंकि नई सरकार में महिलाओं को काम करने की इजाजत नहीं है। महिला कर्मचारियों को अफगानिस्तान के सरकारी न्यूज चैनल से ‘अनिश्चित काल के लिए सस्पेंड’ कर दिया गया है। सरकारी न्यूज चैनल की एक प्रमुख ऐंकर खदीजा अमीन से उनके बॉस ने कहा कि अब उन्हें दफ्तर आने की जरूरत नहीं है। उनसे कहा गया कि तालिबान ने सरकारी टेलीविजन पर महिलाओं के काम पर लौटने पर बैन लगा दिया है।

महिलाओं के साथ-साथ तालिबान अब बच्चों की जिंदगी भी नरक बनाने पर तुला है। अफगानिस्तान के शेबेरगान प्रोविंस के बेगा इलाके में एक बहुत बड़ा अम्यूजमेंट पार्क था। इस बार्क का नाम बोखदी पार्क था जहां बच्चे खेलन आते थे, लेकिन अब यहां चारों तरफ राख ही राख है। तालिबान ने इस पार्क को इस्लाम के खिलाफ बताकर आग लगा दी। तालिबान का कहना है कि इस्लाम में संगीत और पब्लिक एंटरटेनमेंट की मनाही है, इसलिए इस अम्यूजमेंट पार्क की कोई जरूरत नहीं है।

ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि तालिबान के लड़ाके लोगों के घरों में घुसकर पैसे और महंगे सामान की लूटपाट कर रहे हैं। तालिबान के लड़ाके अमीर लोगों से उनकी लग्जरी गाड़ियां छीन रहे हैं। काबुल के सबसे बड़े ट्रांसपोर्टर्स में से एक हशमत गनी ने सोशल मीडिया पर कहा कि तालिबान के लड़ाके उनके घर आए और उनकी लग्जरी कारों की चाबियां लेकर चले गए। काबुल एयरपोर्ट के पास हो रही फायरिंग के दौरान फुटपाथ पर बैठी खौफजदा महिलाओं और बच्चों के वीडियो ने दुनियाभर के लोगों की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है।

मौलाना सज्जाद नोमानी को बताना चाहिए कि क्या सबके सामने फांसी देने वाले, अम्यूजमेंट पार्क को जलाने वाले, महिलाओं और बच्चों समेत तमाम आम लोगों पर जुल्म ढाने वाले सच्चे मुसलमान हैं? उनके जैसे लोगों को यह जानकर मायूसी होगी कि भले ही अफगान सेना ने हथियार डाल दिए हों लेकिन अफगानिस्तान की बहादुर जनता ने इस्लामी कट्टरपंथियों के सामने घुटने नहीं टेके है। जलालाबाद में तालिबान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी हुए। विरोध कर रहे लोगों को तितर-बितर करने के लिए तालिबान के लड़ाकों ने फायरिंग की। ऐसे भी वीडियो सामने आए हैं जिनमें अफगानिस्तान की बहादुर आवाम ने तालिबान का झंडा उतारकर अपना राष्ट्रध्वज फहरा दिया।

अफगानिस्तान की पंजशीर घाटी में विरोध का बिगुल बज गया है। यहां नॉर्दर्न अलायंस ने फिर से संगठित होना शुरू कर दिया है। देश के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने खुद को नया केयरटेकर प्रेसिडेंट भी घोषित कर दिया है। वह जांबाज अफगान कमांडर अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद के लड़ाकों से जुड़ गए हैं। अहमद शाह मसूद की 2001 में तालिबान ने हत्या कर दी थी। नॉर्दर्न अलायंस ने बुधवार को दावा किया कि उसने चरिकर इलाके को फिर से अपने कब्जे में ले लिया है। चरिकर वह इलाका है जो काबुल और मजार-ए-शरीफ को जोड़ता है। इसी के साथ देश में गृह युद्ध की संभावनाएं बढ़ती जा रही हैं।

आज अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा खतरे में वे लोग हैं जिन्होंने इंसानियत और जम्हूरियत का साथ देते हुए तालिबान की मुखालफत की थी। इन लोगों ने पिछले 20 सालों में युद्ध से तबाह अफगानिस्तान का बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण करने वाले अमेरिका, नाटो सहयोगियों और भारत का साथ दिया था। इन अफगानों को यकीन था कि अगर तालिबान ने कभी सिर उठाया तो दुनिया के ये बड़े-बड़े ताकतवर मुल्क उनका साथ देंगे, उन्हें बचाएंगे। इन लोगों की उम्मीदों ने अब दम तोड़ दिया है।

अफगानिस्तान के आम नागरिक इस बात से बेहद नाराज हैं कि अमेरिका ने अचानक उन्हें तालिबान के रहमो करम पर छोड़ दिया। अफगानिस्तान में करीब 86 हजार लोग ऐसे हैं जिनसे अमेरिकन आर्मी और नाटो सहयोगियों ने सुरक्षा देने का वादा किया था। स्वीडन और नीदरलैंड जैसे मुल्कों के डिप्लोमैट्स चुपचाप भाग गए। उन्होंने तो अपने दूतावास में काम करने वाले अफगान स्टाफ को बताया तक नहीं कि वे जा रहे हैं। यूक्रेन के लोग तो अमेरिका के सैन्य सहयोगी थे, वे भी इस संकट में फंसे हुए हैं और खौफ में हैं। यूरोप के कई मुल्कों ने पिछले 10-12 साल में करीब 20 हजार अफगानों को अपने-अपने मुल्कों से जबरन वापस अफगानिस्तान भेजा था। आज ये सारे लोग खौफजदा है, और तालिबान के निशाने पर हैं। उन्हें नहीं पता कि अगर तालिबान उनके दरवाजे पर आ गया तो क्या होगा।

और अब देखिए कि भारत ने क्या किया। भारत ने न सिर्फ अपने दूतावास के सारे स्टाफ को वहां से निकाला, बल्कि वहां जिन अफगानों ने शरण ली थी और जो भारत आना चाहते थे, उन्हें भी साथ ले आए। यहां तक कि भारत तिब्बत सीमा पुलिस के 3 स्निफर डॉग्स को भी सुरक्षित वापस लाया गया। भारत अकेला ऐसा मुल्क है जो अफगान नागरिकों को इमरजेंसी ई-वीजा जारी कर रहा है। भारत ने अफगानिस्तान में रहने वाले हिंदू और सिख परिवारों की पुकार के बाद उन्हें पहले वीजा दिया क्योंकि उनके रिश्तेदार यहां रहते हैं।

कुछ लोगों ने इसका मतलब यह लगा लिया कि अफगानिस्तान से आने वाले मुसमलानों को भारत वीजा नहीं देगा। मैंने होम मिनिस्ट्री का वह नोटिफिकेशन देखा है, जिसमें साफ लिखा है कि यह इमरजेंसी वीजा की सुविधा ‘सारे अफगान नागरिकों’ के लिए है। इसमें किसी मजहब का जिक्र नहीं है। असल में लोगों को यह समझना पड़ेगा कि भारत अकेला ऐसा मुल्क है जहां अफगानिस्तान के लोग पूरे सम्मान के साथ रहते हैं, चाहे वे अफगान राजनेता हों, ब्यूरोक्रेट हों या आम नागरिक।

2016 से भारत अफगानिस्तान की क्रिकेट टीम का घर बना हुआ है। यही वजह है कि अफगानिस्तान के नागरिक जानते हैं कि भारत में सिर्फ उन्हें पनाह नहीं मिलती, बल्कि एक इज्जतदार और सुरक्षित जिंदगी भी मिलती है। इसलिए भारत में रहकर तालिबान का गुणगान करने वालों को ऐसा करने से पहले कम से कम 10 बार सोचना चाहिए। देश में कुछ लोगों की विचारधारा अलग हो सकती है, पर वे तालिबान के जुल्म और हैवानियत का कैसे साथ दे सकते हैं? (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 18 अगस्त, 2021 का पूरा एपिसोड

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