Sunday, December 15, 2024
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'मुस्लिम महिला पति से कर सकती है भरण-पोषण की मांग', जानें कोर्ट के फैसले पर मुसलमानों के विभिन्न वर्गों ने क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि मुस्लिम महिला पति से भरण-पोषण की मांग कर सकती हैं। इस मामले पर मुस्लिम समाज के अलग-अलग वर्गों की प्रतिक्रिया आने लगी है।

Edited By: Avinash Rai @RaisahabUp61
Published : Jul 11, 2024 7:43 IST, Updated : Jul 11, 2024 7:43 IST
Muslim woman can demand maintenance from husband know what different sections of Muslims said on the- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO प्रतीकात्मक तस्वीर

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मुस्लिम महिलाओं को लेकर एक बड़ा फैसला दिया। जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा कि समर्थ होने पर कोई शख्स अपनी पत्नी, बच्चे या माता-पिता के भरण-पोषण से इनकार नहीं कर सकता। ऐसा करने पर अदालत उसे भरण-पोषण के लिए मासिक भत्ता देने का आदेश दे सकती है। अदालत के फैसले पर तीन तलाक के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ने वाली सहारनपुर निवासी सुप्रीम कोर्ट की वकील फराह फैज ने आईएएनएस के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत कहते हुए कहा कि तीन तलाक पीड़ित महिला अपने पति से खुद के लिए व अपने बच्चों के भरण पोषण के लिए भत्ते की मांग कर सकती है। वकील फराह फैज ने कहा, सीआरपीसी की धारा 125 हर महिला के लिए है। इसमें 10 हजार रुपया महीना गुजारा भत्ता तय किया गया था। 

मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिए अपने फैसले में कहा कि धारा 125 के मुताबिक गुजारा भत्ता 1986 एक्ट मुस्लिम वूमेन प्रोटेक्शन लाइफ ऑफ़ मैरिज के आधार पर मुस्लिम महिला गुजारा भत्ते की मांग कर सकती है। शरीयत का हवाला देते हुए फराह फैज ने कहा कि शरीयत में भी कहा गया है जब आप किसी महिला को तलाक दे रहे हैं और अगर आपका तलाक हो जाता है, आप किसी महिला को अपने घर से विदा करते हैं, तो उसका स्त्री धन आपको वापस करना होगा। फैज ने कहा, सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के बाद महिलाओं को बहुत सहूलियत हो जाएगी, तलाक के बाद उनके भरण पोषण का संकट खत्म हो जाएगा।

क्या बोले सीनियर वकील वसीम ए कादरी

सीनियर वकील एस वसीम ए कादरी ने सुप्रीम कोर्ट के बुधवार को दिए गए फैसले पर कहा कि, कोर्ट ने एक लैंडमार्क जजमेंट दिया है। महिला को इम्पावरमेंट किया गया है, ये एक हिस्टोरिकल जजमेंट है। उन्होंने कहा कि, “आज की तारीख में ये जजमेंट सिर्फ मुस्लिम या तलाकशुदा महिलाओं पर ही लागू नहीं होगा, बल्कि ये एक कॉमन जजमेंट है, जो महिलाओं के कद को बढ़ाता है।" इस फैसले पर भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता तुहिन सिन्हा ने कहा, सुप्रीम कोर्ट का आज का निर्णय ऐतिहासिक है। पिछले 38 वर्ष से चली आ रही नाइंसाफी, जो पूर्व प्रधानमंत्री गांधी के द्वारा शुरू की गई थी, आज खत्म हुई। राजीव गांधी ने शाहबानो केस में मुसलमान औरतों के पक्ष में दिए गए फैसले को संसद से पलट दिया था। 

मुस्लिम धर्म गुरु की क्या है राय?

इस फैसले को लेकर मुस्लिम स्कॉलर सूफियान निजामी ने भी अपनी बात रखी। मुस्लिम स्कॉलर सूफियान निजामी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बड़ा बयान देते हुए कहा कि, "पति की जिम्मेदारी है कि वो ईद्दत के दौरान महिला का खर्च उठाए। अगर इस्लामी मजहब के जरिए रिश्ता कायम किया गया है और फिर किसी कारणवश वो रिश्ता नहीं रहा, तो फिर तलाक के जरिए रिश्ते से बाहर निकलकर आजाद हो जाएं।" निजामी ने कहा कि, "तलाक के बाद पति की जिम्मेदारी है कि ईद्दत के दौरान पत्नी का खर्च उठाए और उसे जीनव निर्वहन के लिए खर्चा दे और फिर ईद्दत के खर्च के बाद दोनों आजाद हैं। शरीयत में ईद्दत के बाद खर्चे के लिए मना किया गया है। शरीयत की यही तालीम है। वहीं कानून की क्या राय है, इस पर कानून के जानकार ही अपनी राय दे सकते हैं।"

मुस्लिम समाज की महिलाओं की क्या है राय?

तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के हित में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले के बाद शायरा बानो खुश हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना की है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि अब तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर कर अपने पति से भरण पोषण के लिए भत्ता मांग सकती हैं। शायरा बानो उत्तराखंड राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष भी हैं। शायरा बानो खुद तीन तलाक पीड़िता रह चुकी हैं। शायरा बानो ने तीन तलाक को लेकर साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए रिट दायर की थी। ये उनका संघर्ष ही था, जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में उनके पक्ष में फैसला सुनाया था। इसके बाद देश में साल 2018 में तीन तलाक को लेकर कानून बना और इस तरह से तलाक देने वालों पर मुकदमा दर्ज करके जेल भेजने का प्रावधान बनाया गया। 

शायरा बानो बोलीं- उनके पति ने स्पीड पोस्ट से दिया तीन तलाक

सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले पर शायरा बानो ने कहा कि ये फैसला तमाम मुस्लिम महिलाओं के हक में है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी रहेगी। इससे तीन तलाक में भी कमी आएगी और मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक स्थिति अच्छी होगी। शायरा बानो ने बताया कि उनके पति ने उनको अकारण ही स्पीड पोस्ट द्वारा तीन तलाक दिया था। पति प्रॉपर्टी डीलर थे और मैं एक हाउस वाइफ थी। मेरे संघर्ष में परिजनों ने सपोर्ट दिया। मैंने सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के खिलाफ याचिका डाली और मुझे न्याय भी मिला। तीन तलाक का कानून बनने के बाद मुस्लिम महिलाएं अपने लिए न्याय की गुहार लगा रही हैं। शायरा बानो ने बताया कि तीन तलाक कानून बन जाने के बाद मुझे उत्तराखंड राज्य महिला आयोग में उपाध्यक्ष का पद दिया गया और मैं महिलाओं के लिए काम कर रही हूं। 

शायरा बानो बोलीं- तीन तलाक में आएगी कमी

शायरा बानो लगातार पीड़ित महिलाओं के हक एवं अधिकार के लिए लड़ाई लड़ती रही हैं। उन्होंने बताया कि वह महिला उत्पीड़न मामले में पहले दोनों पक्षों को बैठाकर समझाने की कोशिश करती हैं। स्थानीय महिलाओं ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जाहिर की और कहा कि इससे तीन तलाक के केस में कमी आएगी, क्योंकि कई लोग शादी के बाद कहीं और अफेयर करके अपनी पत्नी को तलाक दे देते हैं। तलाक सामान्य बात हो गई है। लेकिन, अब कोर्ट के फैसले के बाद शायद तलाक में कमी देखने को मिलेगी। एक अन्य महिला ने कहा कि तलाक होने के बाद पति से खर्चा मिलना ही चाहिए। महिलाओं को अपने खर्चे के अलावा बच्चों को भी पालना होता है। इस कदम से महिलाओं को कुछ राहत मिलेगी। तलाक में कमी आएगी। बता दें कि यह फैसला हर धर्म की महिलाओं पर लागू होगा और मुस्लिम महिलाएं भी इसका सहारा ले सकती हैं। इसके लिए उन्हें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कोर्ट में याचिका दाखिल करने का अधिकार है। इस संबंध में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने फैसला सुनाया है।

(इनपुट-आईएएनएस)

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